राजस्थान में तीन सीटों के चुनाव नतीजों के बाद प्रतिपक्ष में श्रेय लेने की होड़ मची हुई है और सत्तापक्ष में पराजय की तोहमत किसी और पर मढ़ने के लिए बलि के बकरे की तलाश की जा रही है। राजस्थान में दो लोक सभा और एक विधान सभा सीट के उपचुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी की करारी हार ने दिल्ली को चिंता में डाल दिया है।इन चुनावो में न धार्मिक धुर्वीकरण काम आया ,न बीजेपी का संगठन कौशल।जनता को जैसे ही मौका मिला ,बीजेपी को उसकी हैसियत का आइना दिखा दिया।

विपक्ष ने भी ऐसा कुछ नहीं किया कि वो इस जीत का सेहरा अपने सर बांधे। इसे फरियाद के दरवाजे और अभिव्यक्ति के रास्ते बंद कर देने की परिणीति के रूप मे देखा जा रहा है।मीडिया के बड़े हिस्से ने चार साल तक सरकार के पक्ष में ऐसी झांकी सजाये रखी कि सरकार को पता ही नहीं लगा कि वो जनता से कितनी दूर चली गई है।

इन चुनावो में तीन जिलों की सत्रह विधान सभा सीटें थी।इसमें अलवर और अजमेर लोक सभा क्षेत्र शामिल है। इन सभी सीटों पर बीजेपी बुरी तरह हारी।हार जीत का अंतर् भी बहुत रहा।हतप्रभ और परेशान राज्य बीजेपी अध्यक्ष अशोक परनामी इतना ही कह पाए कि वे कारणों की समीक्षा के बाद ही कुछ कह पाएंगे।

गरीबी ,बेरोजगारी ,न्याय और विकास ही महत्वपूर्ण इन चुनावो में अलवर में बीजेपी की पराजय ने यह बता दिया कि हिंदुत्व ,गोरक्षा और जाति समीकरणों से मतदाता प्रभावित नहीं होता। उसके लिए गरीबी ,बेरोजगारी ,न्याय और विकास कार्य ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ समय में अलवर हिंदुत्व की प्रयोगशाला के रूप में उभरा था।मगर यहाँ कांग्रेस के डॉ करण सिंह यादव ने बीजेपी के जसवंत यादव को 1 लाख 96 हजार वोटो के बड़े अंतर् से हराया है।

बीजेपी उम्मीदवार यादव राजस्थान की बीजेपी सरकार में मंत्री भी है। उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगे थे।लेकिन मतदाता ने उन्हें खाली हाथ लौटा दिया। अलवर में मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे के जम कर प्रचार किया और खुद ने कई कई बार दौरे भी किये।हालांकि कांग्रेस अजमेर की जीत को ही सबसे बड़ी फतह बता रही है। मगर विश्लेषक कहते है अलवर के नतीजे ज्यादा अहमियत रखते है।

इन चुनावो में अलवर और अजमेर की लोक सभा सीट और भीलवाड़ा में मांडलगढ़ विधान सभा क्षेत्र,तीनो स्थानों पर बीजेपी के वोट प्रतिशत में बड़ी कमी आई है। जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है।अलवर में पिछले लोक सभा चुनाव की मोदी लहर में बीजेपी ने साठ प्रतिशत वोट झटक लिए थे। मगर अभी उप चुनाव में बीजेपी को कुल मतदान का चालीस प्रतिशत ही मिला जबकि कांग्रेस पिछले चुनाव के वक्त मिले 33 प्रतिशत वोटो के मुकाबले 58 फीसद वोट लेने में सफल रही। अजमेर में विगत लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 56 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार उसे 44 प्रतिशत पर ही सब्र करना पड़ा।

विश्लेषक कहते है समाज का हर वर्ग सरकार से परेशान था।दिक्क्त यह भी है कि अवाम के दर्द को स्वर देने के विपक्ष भी गैर हाजिर था।विपक्ष अलवर में कथित गोरक्षको के हाथो पहलु खान की हत्या के मुद्दे पर मुखर नजर नहीं आया।उस वक्त मेव बिरादरी के युवको ने अपने दम पर आवाज उठाई या दिल्ली से आये सामाजिक कार्यकर्त्ता हर्ष मंदर बोलते दिखे।

ऐसे ही राजसमंद में अफ़राजुल की हत्या के वक्त भी विपक्ष खामोश रहा। वर्ष 2015 में नागौर के डांगावास में पांच दलितों की बेदर्दी से हत्या पर भी प्रतिपक्ष चुपी साधे रहा और नागरिक अधिकार संगठन ही दलितों के आंसू पोंछते दिखाई दिए।प्रेक्षक कहते है एक एक कर सरकारी उपक्रम बंद किये जा रहे है। सरकारी स्कूलों को पी पी पी मॉडल के जरिये निजी हाथो में सौंपा जा रहा है। मगर विपक्ष कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर पाया। ऐसे में जनता ने मौका मिलते ही इन उप चुनावो में बीजेपी को सबक सीखा दिया।

सरकार के लिए कुछ घटनाये जगाने का पैगाम भी लेकर आई। मगर बीजेपी सरकार ने परवाह नहीं की। पिछले साल वामपंथी किसान संगठनों ने शेखावाटी अंचल और उससे लगते जिलों में बड़ा आंदोलन किया। राज्य में सी पी एम का कोई विधायक नहीं है। मगर पार्टी के पूर्व विधायक अमराराम ने किसानो को संगठित किया और दस दिन तक शेखावाटी में सड़के जाम किये रखी।कांग्रेस अपनी बड़ी मौजूदगी के बावजूद भी ऐसा बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई।कांग्रेस ने जनता को उसके हाल पर छोड़े रखा। क्योंकि उसे लगता था कि बीजेपी से मायूस और परेशान जनता खुद ब खुद उसकी तरफ मुड़ आएगी। उसका यह विश्वास सही निकला।एक पूर्व विधायक ने कहा लोग बहुत गुस्से में थे।जब जनता क्रुद्ध होती है तो न हिंदुत्व काम आता है न गाय।

पिछले विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने बेरोजगार युवको को रोजगार के मुद्दे पर अपने साथ कर लिया था। मगर इन चार सालो में कई मौके आए जब शिक्षित बेरोजगार सरकार से भिड़ते रहे।उन्हें लगा उन्हें ठगा गया है। क्योंकि रोजगार के अवसर कही नजर नहीं आये। इन चुनावो में यही युवा समूह सरकार के विरुद्ध सक्रिय नजर आये।प्रेक्षक कहते है उप चुनावो के नतीजे जयपुर और दिल्ली दोनों सरकारों के विरुद्ध जनादेश है।

क्योंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव के वक्त बाड़मेर में एक सरकारी कार्यक्रम के जरिये राज्य सरकार और मुख्य मंत्री राजे की तारीफ की।यह मतदाताओं को संदेश था। मगर लोगो ने इसे अनसुना कर दिया।एक विश्लेषक का कहना था जब हाई कमांड कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था ,मीडिया सरकार के छवि निर्माण में ही लगा रहा और न मंत्री सुनते थे, न सरकारी अधिकारी।ऐसे हालात में जैसे ही मतदाता को मौका मिला ,उसने अपना फैसला सुना दिया। यह चुनाव परिणाम सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए बहुत कुछ कह जाता है।