उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने गृह क्षेत्र, गोरखपुर, में बाबा राघवदास अस्पताल के दौरे के दौरान युवा चिकित्सक कफ़ील खान से कहा था, “तुम समझते हो कि बाहर से सिलिंडर मंगवाकर तुमने कई जानें बचा ली हैं और एक हीरो बन गये हो, तो हम इस बारे में देखेंगे.” यह वाकया था इन्सेफेलाइटिस के इलाज के लिए जरुरी ऑक्सीजन की कमी की वजह से 70 बच्चों की मौत के बाद का.

डॉ खान चर्चा में तब आये थे जब उन्होंने मरते बच्चों की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन जुटाने के लिए जीतोड़ कोशिश की थी. गोरखपुर के चिकित्सा जगत में सबलोग यह मानते हैं कि अगर इस डॉक्टर ने पहल न की होती तो मौतों का आंकड़ा कहीं ज्यादा होता. हालांकि, उसका शुक्रगुजार होने और पुरस्कारों, जिसे आम तौर पर राज्य सरकार खैरात की तरह इस्तेमाल करती है, से नवाजने के बजाय आदित्यनाथ ने अस्पताल के दौरे के समय अन्य कर्मचारियों के सामने उस डॉक्टर को बुरी तरह डांट दिया था. वह तो उस वार्ड का प्रभारी नहीं था और दूसरे वार्ड में ड्यूटी दे रहा था. फिर भी, आगे आकर वह बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए रातभर काम में जुटा रहा. सारे टेलीविज़न कैमरों ने उसके इस प्रयास को दर्ज किया और उसका साक्षात्कार लिया. साक्षात्कार के दौरान अपनी शुरूआती प्रतिक्रियाओं में से एक मेंउसनेआपूर्तिकर्ता एजेंसी को बकाये का भुगतान न किये जाने की वजह से अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी होने की बाबत जानकारी दी थी. आपूर्तिकर्ता एजेंसी पुष्पा सेल्स ने अस्पताल और राज्य सरकार को कई स्मरण – पत्र भेजकर भुगतान की याद दिलाये जाने के बावजूद भुगतान की दिशा में कोई प्रगति न होने पर चेतावनी दी थी कि पिछले बकायों के भुगतान के बाद ही ऑक्सीजन की आपूर्ति को आगे जारी किया जायेगा.

योगी आदित्यनाथ को बोलते हुए सुनने वाले सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री के “तुम्हें एक सबक सिखा दूंगा” वाले रवैये के तत्काल बाद डॉ खान को निलंबित कर दिया गया. उस वक़्त द सिटिज़न ने जब उनसे बात करने की कोशिश की थी तो वे बेहद डरे हुए थे और कुछ भी बोलने में घबरा रहे थे. उन्होंने सिर्फ यही कहकर अपना फ़ोन बंद कर दिया था कि “वे मेरे पीछे पड़े हैं और मैं कुछ नहीं बोल सकता”. उन्हें जानने वाले दूसरे लोगों ने बताया कि वे काफी डरे हुए और जबरदस्त मानसिक दबाव में थे. एक वरिष्ठ डॉक्टर ने द सिटिज़न को बताया, “ डॉ खान एक अच्छे, जाने – पहचाने और मेहनती इंसान हैं. उन्होंने वही किया जो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने वाला कोई भी डॉक्टर करता. उन्हें उस अपराध के लिए दंडित किया और जेल भेजा गयाहै जो उनका है ही नहीं.”

डॉ खान को अपनी गिरफ्तारी का अंदेशा था, लेकिन वे इस विश्वास के साथ उम्मीद कर रहे थे कि न्याय प्रबल होगा. पर वे गलत थे. पिछले साल सितम्बर में उन्हें दो अन्य डॉक्टरों के साथ गिरफ्तार किया लिया गया. शुरुआत में उन्हें उन दोनों डॉक्टरों के साथ बंद रखा गया. लेकिन दो दिन बाद, उन्हें आम अपराधियों वाले वार्ड में स्थानान्तरित कर दिया गया. सूत्रों ने बताया कि हाल में उनसे मिलने के सभी प्रयास नाकाम साबित हुए. हाल के दिनों में मुलाकातियों को डॉ खान से इस बहाने के आधार पर नहीं मिलने दिया गया कि “वे जबरदस्त तनाव से गुजर रहे हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है”.

डॉ खान की जमानत याचिका ख़ारिज होने और उन्हें जेल में बंद हुए लगभग छह महीने गुजर चुके हैं. राज्य सरकार द्वारा नौ लोगों पर दर्ज प्राथमिकी में उनका नाम शामिल है और इस मामले की जांच के लिए गठित स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा उन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया. इसके बाद इस मसले की जिलाधिकारी द्वारा और फिर राज्य के मुख्य सचिव द्वारा उच्चस्तरीय जांच हुई जिसमें डॉ खान पर समय रहते अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित न करने, बगैर उपयुक्त अनुमति के छुट्टी पर जाने और नियम के विरुद्ध प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप लगाया गया.