तमिलनाडु के किसानों का लगातार गंभीर एवं चिंताजनक स्थिति से गुजरना जारी है. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के तहत मक्के के लिए 212 रूपए एवं कपास के लिए 482 रूपए के महंगे प्रीमियम अदा करने के बाद राज्य के विभिन्न भागों में किसानों को फ़सल बीमा के एवज में मात्र 5 रूपए, 7 रूपए एवं 10 रूपए के चेक मिले हैं.

तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के ओद्दंचत्रम तालुक के मंजनैक्केन पट्टी, पोडुवर पट्टी तथा कालीपट्टी गांव के किसानों को निजी बीमा कंपनियों एवं राज्य सहकारी बैंकों द्वारा मक्का एवं कपास की फसलें बर्बाद होने के एवज में मात्र 5 रूपए, 10 रूपए एवं 20 रूपए के चेक दिए गये हैं.

नेशनल साउथ इंडियन रिवर इंटरलिंकिंग एग्रीकल्चरिस्टस एसोसिएशन के अध्यक्ष पी. अय्याकन्नु ने द सिटिज़न को बताया, “फसल बीमा की राशि के तौर पर 5 रूपए और 10 रूपए दिए जाने का मुद्दा यह दर्शाता है कि कैसे देश के किसानों के साथ गुलामों एवं दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा सलूक किया जा रहा है. कृषि के निजीकरण एवं बाजारीकरण के इस दौर में राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा किसानों के मुद्दों को रत्ती भर भी तवज्जो नहीं दिया जा रहा है.”

तमिलनाडु कावेरी डेल्टा फार्मर्स एसोसिएशन के महासचिव एस. रंगनाथन ने इस लेखक को बताया, “फसल बीमा की राशि के तौर पर 5 रूपए और 10 रूपए देकर किसानों को मूर्ख बनाया जा रहा है.” उन्होंने आगे जोड़ा, “जब 2016 में चरणबद्ध फसल बीमा की घोषणा की गयी थी, तो हमलोग बहुत खुश हुए थे. लेकिन अब हमलोगों को पता लगा कि मुआवजे की गणना की वास्तविक विधि को हमलोग समझ नहीं पाये थे. इस योजना के बारे में किसानों, बीमा कंपनियों एवं सरकारी अधिकारियों के बीच कोई स्पष्ट नजरिया नहीं है.”

तंजावुर के वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता जीवा कुमार ने द सिटिज़न को बताया, “मात्र 5 रूपए, 10 रूपए एवं 20 रूपए के चेकों का वितरण किसानों के आत्मसम्मान के साथ मजाक है. राज्य एवं केंद्र की सरकारें भले ही इस योजना का ढोल पीट रही हों, लेकिन त्रुटिपूर्ण गणना और कार्यान्वयन की वजह से फ़सल बीमा योजना अपने मकसद में नाकामयाब रही है. इसमें व्यापक सुधार की जरुरत है.”

ज्वाइंट तमिलनाडु फार्मर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष कक्करै सुकुमारन ने बेबाकी से कहा, “यह किसनों और खेती के पेशे के साथ भद्दा मजाक है.” उन्होंने आगे जोड़ा, “आपसी एकता के अभाव में एक समूह के तौर पर बिखरे होने की वजह से राज्य एवं केंद्र की सरकारें किसानों को गंभीरता से नहीं लेतीं. निजी बीमा कंपनियों की वजह से ये सारी गड़बड़ियां हुई हैं. इन कंपनियों ने प्रीमियम के रूप में किसानों से करोड़ों रूपए वसूले हैं. यही नहीं, मुआवजे की राशि देने में आनाकानी करने के अलावा इन कंपनियों ने बेहद कम राशि के चेक जारी कर किसान समुदाय का उपहास कर रही है.”

डिंडीगुल जिले के ओद्दंचत्रम तालुक के चतिरा पट्टी के अलगी अन्नान ने अपने ज्वार की फसल के लिए प्रीमियम के रूप में 112 रूपए अदा किया. लेकिन अकाल की वजह से फ़सल बर्बाद होने की एवज में उन्हें अभी तक फ़सल बीमा की राशि नहीं मिल पायी है. वे अब बेहद चिंतित हैं और उन्होंने इस लेखक को बताया कि वे इस बात को लेकर कतई आश्वस्त नहीं हैं कि प्रीमियम भरने के बावजूद उन्हें मुआवजे की राशि मिल भी पायेगी.

फ़सल बीमा की राशि को जारी करने में संबद्ध अधिकारियों द्वारा की जा रही देरी को लेकर राज्य के विभिन्न भागों में कई बार प्रदर्शन हुए हैं. और अब नाममात्र की मुआवजे की राशि के मामले ने स्थिति और नाजुक बना दिया है. विपक्षी दल द्रमुक ने इस मसले पर हाल में राज्य विधानसभा में अन्नाद्रमुक सरकार पर जोरदार हमला बोला. नतीजतन, तमिलनाडु सरकार के मंत्रियों ने मुआवजे की इस अपमानजनक राशि को “लिपिकीय गलती” करार दिया और इस गलती को जल्द ही दुरुस्त करने का वादा किया.

प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 जनवरी 2016 को धूम – धड़ाके के साथ की गयी थी. इसके लिए पहले से चली आ रही बीमा योजनाओं - मसलन राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, मौसम आधारित फसल बीमा योजना एवं संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना – को वापस ले लिया गया था. इस योजना का मकसद अनापेक्षित कारणों से फसल का नुकसान होने पर किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने, किसानों की आमदनी को स्थिर बनाने और खेती के रचनात्मक एवं आधुनिक तरीके अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित कर सतत कृषि उत्पादन को सहारा देना था.

लेकिन विभिन्न अध्ययनों एवं रिपोर्टों ने देश के विभिन्न राज्यों में इस योजना के असफल होने को रेखांकित किया है. और तमिलनाडु इसका अपवाद नहीं है.