एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देश के 39 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और गैर सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, 50 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। एक चैंकाने वाला तथ्य यह भी है कि इन कुपोषित बच्चों में कई बच्चे तो अपर क्लास से भी हैं। पूरे विश्व का पाॅचवा कुपोषित बच्चा उत्तर प्रदेश से है। उत्तर-प्रदेश में लगभग 40 लाख गर्भवती महिलायें, 1 करोड़ से ज्यादा किशोरियाॅ और लगभग 2.5 करोड़ बच्चे आज सरकारी योजनाओं के अव्यावहारिक क्रियान्वयन व भ्रष्टाचार के चलते कुपोषण के शिकार हैं। इन्हें ठीक से पौष्टिक पॅजीरी भी नहीं मिल पा रही है।

वर्ष 2013 में कुपोषण की समस्या से निजात दिलाने के लिए भारत सरकार ने ’खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ संसद से पारित करवाया फिर उसे पूरे देश में लागू करवाया। इस अधिनियम की धारा 6 में यह प्रावधान है कि ’आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से 3 साल से 6 साल तक के बच्चों के लिए पका-पकाया भोजन (हाट कूक्ड मील) दिया जायेगा। उन्हें अनुपूरक पोषाहार के रूप में दूध, दलिया और मौसमी फल दिया जायेगा।’ इसी प्रकार जन्म से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए ’टेक होम राशन’ की व्यवस्था है। बच्चों को उचित पोषण मिल सके, उन्हें 250 ग्राम प्रोटीन, खनिज, लवण व विटामिन्स मिल सके, इसी के लिए घर ले जाने वाले राशन (टेक होम राशन) की व्यवस्था की गयी है। गर्भस्थ शिशु को जरूरी पोषण दिये जाने के लिए गर्भवती माता को ’हाट कुक्ड मील’ व ’टेक होम राशन’ दोनों की अनिवार्य व्यवस्था आॅगनवाड़ी केन्द्रों से की गयी है। इसमें ए0पी0एल0 या बी0पी0एल0 वाला चक्कर भी नहीं है। यह खाद्य सुरक्षा सभी के लिए हैै।

यदि सरकार किन्ही कारणों से इन सभी लाभार्थियों को उक्त राशन नही मुहैया करा पाती तो भारत सरकार के ’असाधारण गजट वर्ष 2017’ के तहत सरकारों को ’प्रति बच्चा-प्रतिदिन’ के निर्धारित दर से धनराशि का मुआवजा लाभार्थियों को देना अनिवार्य है। इस कानून में यह भी वर्णित है कि ’भोजन सामाग्री केी खरीद को पैकेंट में बंद करना, तैयार करना और आंगनवाड़ी केन्द्रों तक पहुंचाने की व्यवस्था स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से की जायेगी। ’टेक होम राशन’ के मामले में यह प्रावधान किया गया है।’ भारत सरकार ने ’राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को 1999 से लागू किया है, जिसमें महिलाओं के ’स्वयं सहायता समूहों’ को वित्तीय सहयोग प्रदान कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का प्रावधान है। अभी बीत दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने भी स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अगरबत्ती, चिप्स,पापड़,दलिया,पॅजीरी,दाल,मूॅगफली आदि बनाने की इच्छा जाहिर की थी। उ0प्र0 के सभी जिलों में ’राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ लागू है। ऐसे में अगर ’खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ का भी पालन ईमानदारी से हो जाय तो स्वयं सहायता समूह की कार्यरत 40 लाख महिलाओं को प्रतिवर्ष 5000 करोड़ रूपये की धनराशि योजना को चलाने के लिए प्राप्त होती रहेगी। इससे जहॉ महिलाओं की बेरोजगारी दूर होगी, वहीं आॅगनवाड़ी केंद्रों के लाभार्थियों को स्थानीय रूचि के हिसाब से पोषक भोजन भी प्राप्त होता रहेगा। भोजन में स्थानीय रूचि का विशेष महत्व होता है।

7 अक्टूबर 2004 को भारत के सर्वोच न्यायालय ने एक आदेश पारित किया था कि पूरे देश के आंगनवाड़ी कार्यक्रमों में लाभार्थियों को भोजन सामाग्री पहुंचाने या क्रय करने में ठेकेदारों को प्रतिबंधित किया जाय और यह काम ’महिला स्वयं सहायता समूहों’ को दिया जाय।

इतना सबके बावजूद, उ0प्र0 की योगी सरकार ने ’सुप्रीम कोर्ट के आदेश’ और ’खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ का उल्लंघन करते हुए ठेकेदारों को 3-3 वर्ष के लिए पोषण सप्लाई का ठेका दिलाने का फैसला कैबिनेट से करा लिया है। यह पोषण सप्लाई पॅजीरी का है, जो विगत 25 वर्षों से धड़ल्ले से चल रहा है। लगभग 15 हजार करोड़ रूपये का ठेका उन्ही कंपनियों को दिया गया है, जिन पर योगी सरकार ने कभी सवाल उठाया था। वैसे भी भोजन में पॅजीरी को योगी सरकार ने अपने श्वेत-पत्र में खारिज कर दिया था फिर किसके दबाव में सरकार ने देवेश फुड्स, कमेस्टर फुड्स इत्यादि कंपनियों को प्रदेश में पोषण के नाम पर पॅजीरी बाॅटने का ठेका दे दिया है। यह हैरान कर देने वाला कदम है। दूसरे राज्यों में ’टेक होम राशन’ के अंतर्गत मूंग की दाल, अरहर की दाल, चावल, छोहारा, दलिया, मेवा या अन्य ड्राई-फ्रूड्स बाॅटा जा रहा है तो अपने यहॉ पॅजीरी बांटी जा रही है। वैसे भी इस पॅजीरी को पूरे प्रदेश के बच्चों और माताओं ने अस्वीकार कर दिया है, लिहाजा इसका पूरा फायदा ठेकेदार कंपनियां उठा रही हैं। वे काले बाजार में इसे खपा रही हैं, जिससे ’क्रोनी कैपटलिज्म’ बढ़ रहा है, पोषण घट रहा है तथा बेरोजगार टूट रहा है।