ऊपर का चित्र कर्नाटक स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल, हलेबिडू, का है जिसमे एक महिला हाथ में दर्पण लेकर आपने सौंदर्य को देख रही है. संभव है, किसी दिन किसी बड़े बीजेपी नेता इसे देखें और इसे हजारों साल पहले सेल्फी लेती महिला का चित्र बताने लगें.

हरेक देश अपने प्राचीन ज्ञान का आदर करता है और उस ज्ञान के भण्डार को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर आगे बढता है. इतना तो सभी मानते है कि प्राचीन ज्ञान तत्कालीन आबादी और परिस्थितियों के लिए प्रेरक रहा होगा और आधुनिक विज्ञान आज कि परिस्थितियों को सुगम बनाता है. वर्त्तमान में संभवतः भारत ही इकलौता देश होगा जहाँ सरकार आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिकों की उपेक्षा कर प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजने में लगी है. पर, यहाँ के पूरे सरकारी तंत्र को यह पता ही नहीं है कि इसकी प्रेरणा भी उन्हें आधुनिक विज्ञान ही दे रहा है. कल्पना कीजिये, आधुनिक विज्ञान ने इंटरनेट नहीं दिया होता, हवाई जहाज नहीं होते, रॉकेट नहीं होते, परमाणु परीक्षण नहीं होते, राडार नहीं होते, प्लास्टिक सर्जेरी नहीं होती – तो फिर हमारे नेता किस चीज को आधार मान कर बयान देते?

हमारे प्रधानमंत्री, बडबोले मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और यहाँ तक कि भाजपा सांसद और नेताओं को वेदों, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में विज्ञान खोजने की लत लग गयी है. हाल में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने तो महाभारत काल में इन्टरनेट खोज लिया है. यही नहीं, उनके अनुसार उनके वक्तव्य का मजाक उड़ानेवाले पूरे त्रिपुरा का मजाक उड़ायेंगे. बिप्लब देब को यह मालूम होना चाहिए कि मुख्यमंत्री के बेवक़ूफ़ होने का मतलब यह नहीं है कि पूरी जनता बेवक़ूफ़ होगी. बिप्लब देब ने शायद सोचा ही नहीं होगा कि आज इंटरनेट है, इसीलिए वो यह बयान देने के काबिल हुए हैं.

मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पाठ्यक्रमों से निकालने की वकालत करने और न्यूटन के सिद्धान्तों पर अनर्गल प्रलाप करने से पहले भी विज्ञान के तथ्यों को झुठला चुके हैं। करीब एक साल पहले दिल्ली में इंजिनियरिंग के विद्यार्थियों के सामने वे बता चुके हैं कि हवाई जहाज का आविष्कार राईट बंधुओं से आठ साल पहले ही शिवाकर बालाजी तलपड़े नामक भारतीय ने किया था। समस्या यहीं खत्म नहीं होती, सिंह साहब यह बताना भी नहीं भूलते कि रामायण में पहली बार हवाई जहाज का जिक्र किया गया है।

अब जरा रामायण के हवाई जहाज की बात करें. इसके आधारित चित्रों में यह एक प्लेटफार्म जैसा दीखता है. जिसपर सीता विलाप करते खड़ी रहती हैं और रावण सिंहासन पर बैठा रहता है. अब जरा उसके गति की कल्पना कीजिये जिसके उड़ते समय लोग खड़े रह सकते थे, वह ऊपर से बंद नहीं था और इतनी ऊंचाई पर उड़ान भरता था कि विलाप जमीन तक सुनाई दे सके. इसके आसपास गिद्ध भी उड़ान भरते थे, जैसा जटायु ने किया था. सीता उड़ान भरते अपने गहने भी नीचे गिरा रहीं थीं. यह विमान घने जंगल में भी उतर जाता था. जरा दिमाग लगाकर सोचिये, क्या ऐसा विमान हो सकता है? पर, आधुनिक विज्ञान ने जब हवाई जहाज दे दिया, तब मोदी जी या फिर सत्यपाल सिंह की कल्पना में रामायण काल का विमान आ जाता है,

प्रधानमंत्री भी ऐसी बातें खूब करते हैं। 2014 में मुंबई के एक अस्पताल के किसी कार्यक्रम में उन्होंने गणेश को कास्मेटिक सर्जरी का जन्मदाता बताया था और शूर वीर कर्ण को जेनेटिक इंजिनियरिंग की देन। प्रधान मंत्री जी को भी अपनी कल्पना पर आधारित बयान के लिए आधुनिक विज्ञान का शुक्रगुजार होना चाहिए. वैसे आधुनिक विज्ञान भी आदमी के शरीर पर हाथी के सिर को लगाने की कल्पना भी नहीं करता होगा. हाँ, अवैध तरीके से जन्म देने को जेनेटिक इंजीनियरिंग का नाम देना हास्यास्पद जरूर है.

रमेश पोखलियाल बताते हैं, कनड नामक योगी ने पहला परमाणु टेस्ट ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में किया था। पोखालियाल जी को यह जरूर बताना चाहिए कि परमाणु टेस्ट किस जगह किया गया, कितने लोग विकिरण से प्रभावित हुए और यदि आबादी प्रभावित हुई तो वह राक्षस थे या मनुष्य. यदि, आधुनिक विज्ञान के कारण परमाणु टेस्ट आज का हकीकत नहीं होता, तब पोखालियाल जी क्या कहते.

आधुनिक विज्ञान के बहुत लाभ हैं, पर इससे जिस तरह का अवैज्ञानिक लाभ हमारे राजनेता ले रहे हैं, उसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो.