गलती करके पछताने की मानसिकता इस सरकार में हावी है. मामला चाहे वासुदेव देवनानी का हो या बिप्लव देब या फिर संतोष गंगवार का, इस सरकार ने कभी नीरस क्षण नहीं आने दिया है. बिप्लव देब की ‘गर्जनाओं’ ने जहां माहौल में हास्य घोला है, वहीँ जम्मू – कश्मीर के नये उपमुख्यमंत्री ने अपनी असंवेदनशील टिप्पणियों से लोगों को चौंकाया है. जम्मू – कश्मीर के उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता ने कठुआ में एक मासूम बच्ची के बलात्कार और हत्या की बर्बर घटना को एक ‘छोटी सी बात’ कहा है!

इस सरकार के अधिकांश मंत्रियों का विवादों से गहरा नाता है. उन्हें गाहे – बगाहे अनुचित, हास्यास्पद और बेतुका बयान देने की आदत है. इस साल के शुरु में रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में कविंदर गुप्ता के बयान से एक बड़ा विवाद खड़ा हुआ था. विपक्षी नेताओं ने उनकी टिप्पणी की घोर आलोचना करते हुए उनपर बिना किसी सबूत के एक खास समुदाय को निशाना बनाने का आरोप लगाया था. विपक्षी नेताओं के दबाव में उन्हें अपनी टिप्पणी को हटाने पर मजबूर होना पड़ा था.

क्या आपने कभी रूककर यह सोचने की जहमत उठाई है कि सत्ता में बैठे हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि आखिर क्यों हमें बारबार निराश करते हैं? अधिकांश सरकारें – चाहे वो दुनिया के किसी भी कोने की हो या फिर किसी भी कालावधि की हो, बेईमान, हिंसक और अत्याचारी होती हैं.

फिर भी, हाल के दशकों में, हमलोग भी ऐसे लोगों को चुनने को मजबूर हुए हैं जोकि सत्ता में बिठाने लायक नहीं थे. एक निरंतर सांस्कृतिक विचलन की पृष्ठभूमि में, इसमें कोई हैरानी नहीं कि हममें से लाखों लोग हतोत्साहित होकर धीरे - धीरे अपनी सभी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार दर सरकार पर निर्भर होते चले गये हों और आज स्थिति कैंसर की तरह अनियंत्रित हो गयी है.

सत्ता के भूखे नेताओं ने बुनियादी तौर पर हमेशा एक ही तरीका अपनाया है : वे ‘अमीरों’ को यह कहते हुए निशाना बनाते हैं कि इनलोगों ने वंचितों का शोषण एवं हकमारी कर अकूत धन इकठ्ठा किया है; वे हर मौके पर धार्मिक घृणा फैलाते हैं; वे अपने द्वारा खड़ी की गयी समस्याओं के लिए आसान बलि का बकरा ढूढ़ लेते हैं; और वे चारों ओर सुख और शांति का वातावरण लाने का वादा करते हैं, अगर हम उन्हें अपने ऊपर हुकूमत करने की अनियंत्रित शक्ति दें.

ऐसे बदमाश लोग आक्रोश, असंतोष और लालच को हवा देकर समर्थन हासिल करते हैं. वे जानते हैं कि अगर वे लोगों के बीच इस किस्म की नकारात्मक और मदहोश कर देने वाली प्रवृतियों को हवा देंगे, तो वे अपने पक्ष में वोटरों एक ऐसा बहुत बड़ा समूह खड़ा कर लेंगे जो उनपर निर्भर होगा. निष्ठा हस्तांतरण का यह इनाम उनके लिए एक बड़ी ताक़त बन जाती है और हमारे लिए भ्रम, हताशा और बंधन का सबब बन जाती है.

इस किस्म के प्रलोभनों के प्रति हमारे झुकाव की वजह से, सरकारों का आकार लगातार बढ़ता चला गया है और आज हालात नियंत्रण से बाहर है. यही नहीं, इसने राष्ट्र के जीवन – तत्व और उत्पादक क्षमता को निचोड़ लिया है. आज ईंधन की कीमत इतनी ऊंची क्यों है? खाने – पीने की चीज़ों और बिजली की कीमतें क्यों दुगनी हो गयी है? आर्थिक हालात क्यों अराजक हो गये हैं? कारण साफ़ है. मुद्रा स्फीति के तहत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर से प्रभावित सरकार के कायदों और सरकार द्वारा प्रायोजित और प्रोत्साहित मुक़दमों ने जनजीवन के लिए जरुरी उत्पादक क्षमता को जबरदस्त रूप से कम किया है. यह एक किस्म का अत्याचार है. इसे दरअसल आर्थिक गुलामी कहा जा सकता है. वर्तमान उर्जा संकट और ऊंची कीमतों के लिए कोई संसाधनों और तकनीकी सीमा या भू – राजनैतिक कारण नहीं है. यह संकट और ऊंची कीमतें कराधान, विनियम और मुकदमे से जुड़ी नीतियों का परिणाम हैं.

हम पर हुकूमत कर रहे इन बेवकूफों से उबरने के लिए हमें जूझना होगा, वरना इस व्यवस्था को ढहने से बचाना मुश्किल होगा. हमें बुद्धिमानी से अपना वोट देना होगा और सत्ता में ऐसे लोगों को बिठाना होगा जो अपने कार्यों की जिम्मेदारी स्वीकार करें.