औरंगाबाद शहर के पुराने इलाके के तीन वार्ड शनिवार की रात हिंसा के गवाह बने. इस घटना में दो लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. एक 72 वर्षीय बुजुर्ग, छगनलाल बंसिले, की मौत उस वक़्त हो गयी जब उन्मादी भीड़ ने उस इमारत को आग लगा दी जिसमें वो रहते थे. शारीरिक रूप से अशक्त होने की वजह से वो अपने घर से नहीं निकल पाये.

अब्दुल हरिस नाम का एक 16 वर्षीय किशोर पुलिस फायरिंग में मारा गया. कई मकानों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया और कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दी गयीं.

हिंसा के तात्कालिक कारणों का अभी पता नहीं चला है, लेकिन कहा यह जा रहा है कि इन वार्डों में फेरी वालों के खिलाफ स्थानीय नगर निगम द्वारा की गयी कार्रवाई, पानी के अवैध कनेक्शन और ग्राहकों एवं फल दुकानदारों के बीच विवाद आदि हिंसा को भड़काने की तात्कालिक वजहें बनीं.

हालांकि, संपत्ति की लूटपाट और क्षति के पैमाने और योजना को देखकर साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की एक सोची – समझी साजिश का संकेत मिलता है. औरंगाबाद नगर निगम, जिसमें 1990 से शिवसेना एवं भाजपा का कब्ज़ा है, पानी और कचरे के निपटान की समस्या का हल निकालने में अभी तक असफल रहा है. सार्वजानिक परिवहन उपलब्ध कराने और सडकों की मरम्मत में भी निगम अक्षम साबित हुआ है.

ख़राब वित्तीय प्रबंधन और राजस्व वसूली में भयानक गिरावट ने समस्या को और गंभीर बनाया है. इस किस्म की अराजकता से लोग उब गये हैं और उनमें गहरी नाराज़गी है. जनता में बढ़ती बेचैनी ने भाजपा और शिवसेना के बीच दरार डाल दी है और दोनों पार्टियां आए दिन एक दूसरे के खिलाफ बयान जारी करती रहती हैं.

यही नहीं, पानी के निजीकरण का एक प्रयास असफल हो चुका है और भ्रष्टाचार के एक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाने की बात अब जगजाहिर हो चुकी है. लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाने के लिए सांप्रदायिक तनाव व दंगों को भड़काने की कोशिश की जा रही है.

हालांकि, लोगों द्वारा विभाजनकारी हथकंडों को पहचान लिए जाने की वजह से बिना किसी गंभीर नुकसान के हिंसा पर काबू पा लिया गया. साम्प्रदायिकता की आग को इन्हीं वार्डों में रोक लिए गया और इसे शहर के अन्य हिस्सों में फैलने से बचा लिया गया. यह अलग बात है कि शहर के अगले नगर निगम चुनावों में इस सांप्रदायिक तनाव का असर पड़ेगा.

सीपीआई के जिला सचिव अशफ़ाक सलामी, नगर सचिव लहाने एवं सहायक सचिव अभय टकसाल ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की. वामपंथी पार्टियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस अधिकारियों से मुलाकात कर हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की. ऐसी परिस्थिति रचने और नागरिको की समस्याओं के समाधान के बजाय वोटरों के ध्रुवीकरण के प्रयास में लिप्त रहने के लिए सरकार की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगे हैं.

( बी आर कानगो औरंगाबाद में सीपीआई के एक वरिष्ठ नेता हैं)