बंगलुरु के बाहरी हिस्से में स्थित ईगलटन रिसोर्ट पिछले दिनों लगातार सुर्ख़ियों में रहा. इसका कारण था, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के अनेक विधायकों को इसमें कैद कर दिया गया था. वैसे यह कैद दुनिया की सबसे अच्छी, खूबसूरत और सुविधाजनक कैद रही होगी – यहाँ कई स्विमिंग पूल हैं, टेनिस कोर्ट है, पांच रेस्टोरेंट हैं, लक्ज़री सुइट्स हैं और गोल्फ का मैदान भी है. कैद का नाम इसलिए, क्योंकि इसमें सभी नवनिर्वाचित एमएलए को अन्दर से बंद कर दिया गया था और किसी से मिलने की इजाजत नहीं थी.

15 मई को जब यह निश्चित हो गया कि कर्नाटक में न तो बीजेपी को और न ही सत्ताधारी कांग्रेस को बहुमत मिला तब बीजेपी, जो किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होना चाह रही थी और येदुरप्पा ने अपने शपथ ग्रहण की तिथि भी घोषित कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे, के सामने एक ही रास्ता था – किसी भी तरह आठ विपक्षी एमएलए को अपने साथ मिलाना. इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस और जनता दल (एस) के लगभग 40 नवनिर्वाचित एमएलए को एक बस में भरकर ईगलटन रिसोर्ट पहुंचाया गया और अन्दर कैद कर दिया गया. रिसोर्ट को अन्दर से बंद कर दिया गया जिससे बीजेपी के नेता इनसे नहीं मिल सकें.

इस रिसोर्ट पॉलिटिक्स की शुरुआत 1980 के दशक में हुई, इसके पहले किसी भी सीट पर कांटे की टक्कर प्रायः नहीं देखी जाती थी. रिसोर्ट पॉलिटिक्स का मकसद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर अपने एमएलए या एमपी को खरीद-फ़रोख्त से बचाना है. जब परिणाम कर्नाटक जैसे आते हैं तब खरीद-फ़रोख्त और तेज हो जाती है. कर्नाटक के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता बी के चन्द्रशेखर के अनुसार रिसोर्ट पॉलिटिक्स एक तरह से अपने एमएलए के इर्दगिर्द एक ऐसी दीवार बनाना है जिसमें से विपक्ष वाले झाँक न सकें. यह लोगों को बचाने का एक गन्दा खेल है, जहाँ आप डरे रहते हैं कि कोई आपका साथ छोड़कर भाग न जाए.

15 मई के बाद तो भारतीय राजनीति एक नए रसातल में चली गयी. कांग्रेस और जेडी (एस) के नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी उनके सदस्यों को दल-बदल करने के लिए प्रति एमएलए एक अरब रूपये देने की पेशकश कर रही है. सबूत के तौर पर कुछ ऑडियो टेप भी प्रस्तुत किये गए. केरल के टूरिज्म बोर्ड ने ट्वीट करके इन लोगों को अपने राज्य के टूरिस्ट रिसोर्ट में सुरक्षित रखने की पेशकश भी की.

इसी बीच राज्यपाल की दखलंदाजी के बाद बीजेपी को 15 दिनों में बहुमत साबित करने का समय देकर सरकार बनाने का न्योता दिया गया. तमाम नियम और कायदे को ताक पर रखकर बी एस येदुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली और इसके बाद सबसे पहले ईगलटन रिसोर्ट क्षेत्र में तैनात पुलिस अधिकारियों को हटा दिया. सुरक्षा में लगे पूरे पुलिस बल को भी हटा दिया. इन सबके बाद कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी के नेता बड़ी संख्या में रिसोर्ट पहुंचकर कांग्रेस के प्रतिनिधियों से खरीद-फ़रोख्त की बातें करने लगे. स्थिति गंभीर होती देख वहाँ रुके सभी एमएलए को सुरक्षित रिसोर्ट से निकाल कर बस से 9 घंटे की यात्रा कर हैदराबाद के एक पांच-सितारा होटल में भेजा गया.

कार्नेजी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया निदेशक मिलन वैष्णव के अनुसार पूरे घटना क्रम से इतना तो स्पष्ट है कि पार्टी के नेताओं में कितनी असुरक्षा की भावना है और जो चुनाव जीत रहे हैं उनकी अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा भी संदेह के घेरे में है. दूसरे देशों में आप पार्टी की नीतियों से प्रभावित होते हैं पर भारत में निष्ठा तो पूरी तरह से गायब हो चुकी है. पूरा लोकतंत्र पैसा, ताकत, प्रभाव, नजदीकी, घरेलू सम्बन्ध और जातिगत समीकरण में सिमट गया है. इन सबके बीच अपनी पार्टी के प्रति निष्ठां और जनता के लिए जवाबदेही की कोई जगह नहीं रह गयी है. यहाँ चुनाव के समय राजनैतिक रुख देखकर दल-बदल करने वालों की बाढ़ आ जाती है.

राजनीति कोई समाज सेवा नहीं है, यह तो पैसे वालों के लिए एक निवेश का माध्यम भर है. यहाँ आप निवेश करते हैं और फिर अपनी पूंजी बढ़ाने में लग जाते हैं. राजनीतिज्ञों या उनके परिवार वालों का कारोबार जितनी तेजी से बढ़ता है, उतना तो उद्योगों के धुरंधर भी नहीं कमा पाते. राजनीति और पैसा दोनों पर्यायवाची हो गए हैं. गरीब राजनीति नहीं कर सकता, वह तो बस अमीर नेताओं के हाथों की कठपुतली हो सकता है. कर्नाटक में 10 साल पहले 63 प्रतिशत एमएलए करोडपति थे, इस बार की विधान सभा में 97 प्रतिशत करोडपति हैं.

इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज का नेता जनता के बीच नहीं बल्कि रिसोर्ट में जाता है, और कोई जनसेवा करने नहीं बल्कि अपनी पूंजी बढ़ाने आता है. ऐसे में उसे कोई मतलब नहीं कि पार्टी की नीतियां क्या हैं, या पार्टी के प्रति निष्ठां क्या होती है? हमारा लोकतंत्र तो जन-राजनीति से दूर होकर रिसोर्ट पॉलिटिक्स कर रहा है.