देशी की संस्कृति बचाने की दुहाई देने वाली और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई मानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों में शिक्षा की बढ़ती दुर्दशा के किस्से आये दिन सामने आते जा रहे हैं. ताजा मामला भाजपा शासित और ‘हिंदुत्व की दूसरी प्रयोगशाला’ माने जाने राज्य मध्य प्रदेश का है जहां विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक एवं गैर – शैक्षणिक कर्मियों की भारी कमी, वार्षिक शैक्षिक कैलेन्डर का पालन न होना, समय पर परीक्षा न होना और परीक्षा – फल घोषित न किया जाना, शासकीय महाविद्यालयों में स्थायी प्राचार्य न होना और विश्वविद्यालयों में स्थायी खेल – निर्देशकों का न होना जैसे मुद्दे इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं. अजब यह है कि संघ – परिवार से जुड़े छात्र संगठनों ने इन मुद्दों को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दी है.

संघ – परिवार से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने हाल में मध्य प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया को पत्र लिखकर राज्य के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों की दुर्दशा को उजागर किया है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की मध्य प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री सतेन्द्र पटवा ने उच्च शिक्षा के छात्रों की समस्याओं का तत्काल समाधान न होने पर उग्र आंदोलन छेड़ने की बात कही है.

परिषद् द्वारा उच्च शिक्षा मंत्री को लिखे पत्र के मुताबिक, शहडोल स्थित पं. शंभुनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय में कुल 226 स्वीकृत शैक्षिक पदों में से एक पर भी अभी कोई बहाली नहीं हुई है. यही नहीं, इस विश्वविद्यालय में गैर – शैक्षणिक पदों के लिए न तो कोई स्वीकृति दी गयी है और न ही कोई बहाली की गयी है.

इसी प्रकार, छतरपुर स्थित छत्रपाल विश्वविद्यालय में सभी छह स्वीकृत शैक्षिक पद खाली हैं. पं. शंभुनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय की तरह यहां भी गैर – शैक्षणिक पदों के लिए न तो कोई स्वीकृति दी गयी है और न ही कोई बहाली की गयी है.

भोपाल के अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय में भी गैर – शैक्षणिक पदों के लिए न तो कोई स्वीकृति दी गयी है और न ही कोई बहाली की गयी है. यहां के कुल 33 स्वीकृत शैक्षिक पदों में से 22 खाली हैं.

शैक्षिक पदों में सबसे ज्यादा रिक्तियां इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में हैं. यहां कुल 190 शैक्षिक पद रिक्त हैं. जबकि कुल स्वीकृत शैक्षिक पद 399 है. यानि स्वीकृत शैक्षिक पदों में से करीब आधे खाली हैं. यहां गैर – शैक्षणिक पदों में भी करीब आधे खाली हैं. मतलब कुल 958 स्वीकृत गैर – शैक्षणिक पदों में से 425 खाली हैं.

कुछ ऐसा ही हाल जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का भी है. यहां कुल 156 स्वीकृत शैक्षिक पदों में से 110 खाली हैं और बहाली की बाट जोह रहे हैं.

उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय में कुल 161 स्वीकृत शैक्षिक पदों में से करीब आधे यानि 84 खाली हैं. यहां 266 गैर – शैक्षणिक पद खाली हैं, जबकि स्वीकृत पद हैं 650.

रीवा के अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय की कहानी तो और भी अफसोसनाक है. यहां कुल स्वीकृत शैक्षिक पदों में से दो – तिहाई खाली हैं. यानि कुल 75 स्वीकृत शैक्षिक पदों में से 50 खाली हैं.

प्रदेश के अधिकांश शासकीय महाविद्यालयों को अस्थायी या काम चलाऊ प्राचार्यों के भरोसे छोड़े जाने की नीति से छात्रों को कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस व्यवस्था पर छात्रों में गहरा रोष है. यही वजह है कि परिषद् ने अपने पत्र में उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया से प्रदेश के सभी शासकीय महाविद्यालयों में स्थायी प्राचार्यो की नियुक्ति मांग की है.

परिषद् ने सभी विश्वविद्यालयों में स्थायी खेल निर्देशकों की नियुक्ति की मांग भी की है.

छात्रों के रोष का आलम यह है कि राज्य के अलग – अलग हिस्सों में संघ – परिवार से जुड़े छात्र संगठनों को राज्य सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक रवैया अपनाने को मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसा ही एक मामला सागर में भी हुआ जहां विवेकानंद छात्र परिषद् नाम के एक संगठन ने छह सूत्री मांगों के साथ उच्च शिक्षा मंत्री को पत्र लिखा है.

उक्त संगठन ने महाराजा छत्रसाल विश्वविद्यालय द्वारा ली जा रही परीक्षाओं में अनेक गंभीर खामियों को उजागर किया है. संगठन ने उत्तर – पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में लापरवाही और परीक्षा परिणामों में लेटलतीफी पर नाराजगी जाहिर की है.

छात्रों की लगातार बढती संख्या को देखते हुए सागर शहर में कम से कम दो नये कॉलेज खोले जाने और उनमें सभी विषयों की पढाई की व्यवस्था की मांग सरकार से की जा रही है. शहर में लॉ कॉलेज खोलने की मांग भी जोरशोर से हो रही है. शहर के पं. दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में बीबीए और बीसीए के पाठ्यक्रमों को बंद करके निजी संस्थानों को लाभ पहुँचाने के प्रयासों की घोर निंदा की जा रही है और इसे फिर से बहाल करने की मांग की जा रही है.