हरियाणा के नूह में रोहिंग्या मुसलमानों के एक शिविर में आग लग गयी. शार्ट – सर्किट को आग लगने की वजह माना जा रहा है. इस आग ने एलपीजी के एक सिलिंडर में विस्फोट करा दिया और इसमें राज्य के मेवात जिले में स्थित इस बस्ती के करीब 100 – 150 घर खाक हो गये.

किसी रोहिंग्या बस्ती के राख में तब्दील होने की यह कोई पहली घटना नहीं थी. इससे पहले, 15 अप्रैल को, कालिंदी कुंज के एक रोहिंग्या शरणार्थी शिविर में भी आग लगी थी. वहां भी आग लगने की वजह को स्वाभाविक माना गया था. हालांकि, बाद में, भाजपा की युवा इकाई के एक नेता ने अपने दावे में बस्ती में आग जलाने की जिम्मेदारी ली. इसके बावजूद, आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.

कुछ सूत्रों के मुताबिक इन रोहिंग्या बस्तियों के अस्तित्व में आने की कोई एक निश्चित तारीख नहीं है और पिछले चार सालों के दौरान ऐसा हुआ. हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि इस इलाके में पिछले एक साल में ही यह बसावट हुई. लेकिन आगे खोजबीन करने पर यह बात सामने आई कि रोहिंग्या मुसलमानों के अलग – अलग समूह वहां अलग – अलग समय पर बसे.

वह आम दिनों की तरह एक सामान्य रविवार था. आग दोपहर बाद तीन बजे लगी और करीब एक घंटे तक जारी रही. आग लगने के एक घंटे के भीतर अग्निशमन विभाग के लोग वहां आग बुझाने के लिए हाजिर थे. जिस जमीन पर रोहिंग्या मुसलमानों की बस्ती बसी थी, वह उस इलाके के ग्राम – पंचायत की थी. एक मुसलमान – बहुल इलाका होने के कारण इन बस्तियों के प्रति ग्राम पंचायत का रवैया आम तौर पर सहयोगी था. रोहिंग्या समुदाय के बीच काम करने वाले युवा कार्यकर्ता अली जौहर ने दावा किया, “यहां के निवासियों को कोई बाहरी धमकी नहीं मिली थी. यह अलग बात है कि रोहिंग्या मुसलमानों को आम तौर पर ‘आतंकवादी’ के रूप में चिन्हित किये जाने की वजह से उन्हें दैनिक जीवन में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.”

इलाके में कयास के आधार पर आग लगने की इस घटना के पीछे एक षड्यंत्र होने की बात कही जा रही है. इस कयास के मुताबिक, इन बस्तियों के निवासियों को रविवार को 11 बजे नूह स्थित एसडीएम कार्यालय के निकट शुरू हुए नये कोर्ट परिसर में हाजिर होने को कहा गया था. वहां उनके पंजीकरण के लिए आवश्यक कार्रवाई के तौर पर उनका बायोमैट्रिक परीक्षण किया जाना था. सरकार द्वारा परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं किये जाने की वजह से उन्हें पैदल वापस आना पड़ा और वे दो बजे लौटे.

नूह निवासी और एक सामाजिक कार्यकर्ता आरिफ ने बताया कि इलाके के निवासियों के साथ ये शरणार्थी शांतिपूर्वक रह रहे हैं. स्थानीय निवासियों के साथ उनका कोई झगड़ा या टकराव नहीं है. लेकिन, उनके बीच पुलिस का भय अक्सर बना रहता है. क्योंकि पुलिस थाना द्वारा बार – बार सत्यापन के नाम पर उन्हें बुलाकर तंग किया जाता है.

नूह पुलिस थाना के थानाध्यक्ष संजय कुमार ने इस आरोप से यह कहते हुए इंकार किया कि उनलोगों को पहले बुलाया जाता था. उन्होंने कहा, “नियमित सत्यापन किया जाता था, लेकिन ऐसा पहले होता था.” उन्होंने इस बात से भी इंकार किया कि आग लगने की घटना वाले दिन भी उन लोगों को बुलाया गया था. उन्होंने इस बारे में आगे और कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.

आग को नियंत्रित करने के तत्काल बाद इलाके के एसडीएम ने घटनास्थल का दौरा किया और आग की वजह से बेघर हुए लोगों के रहने के लिए अस्थायी तम्बू की व्यवस्था की. पूरी रात उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस वहां मौजूद रही. स्थानीय गैर – सरकारी संगठनों ने उनके लिए भोजन, पानी और बर्तन की व्यवस्था की. हालांकि, 47 डिग्री तापमान में भीषण गर्मी के बीच उनलोगों का अस्थायी तम्बूओं में रहना बहुत मुश्किल हो रहा है. इन तम्बूओं में रहने वाली समीरा ने बताया, “यहां बहुत गर्मी है. मेरा एक साल का बच्चा उल्टियां कर रहा था. मंगलवार की सुबह तक यहां कोई चिकित्सीय सहायता उपलब्ध नहीं थी.”

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थी हैं. वे पूरे देश में इधर – उधर बिखरे हुए हैं. इन शरणार्थियों को भारतीय समाज के साथ घुलने – मिलने में दिक्कत हो रही है. कई जगहों पर इस समुदाय के लोगों पर इक्का – दुक्का हमले हुए हैं. नूह के रोहिंग्या बस्ती में लगी आग इस समुदाय के लोगों को यहां से भगाने की किसी सुनियोजित हमले का हिस्सा तो नहीं मालूम होती, लेकिन वर्तमान राजनीतिक माहौल और सरकारी अफसरों और मूल निवासियों के बयान में अंतर यह अहसास दिलाने के लिए काफी हैं कि हालात कभी भी संगीन हो सकते हैं.