प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ 2017 की अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार दूसरे वर्ष भी बीमा कंपनियों व्दारा किसानों को लूटने का काम जारी है। खरीफ 2017 में देश के 3.74 करोड किसानों से 3027 करोड रुपये बीमा हप्ता, केंद्र सरकार की सबसिडी 8152करोड रुपये औरराज्य सरकार की सबसिडी 8202 करोड रुपये मिलाकर कुल 19381 करोड रुपये फसल बीमा कंपनियोंको प्राप्त हुये। कंपनियों के व्दारा 8724 करोड रुपयों के दावे अनुमोदितकिये गये है। लेकिन जून 18 तक केवल 4276 करोड रुपये ही किसानों को भुगतान किये गये है।अभी कुछ राज्यों की रिपोर्ट प्राप्त नही हुई है।जैसे जैसे किसानों के दावे मान्य होंगे और भुगतान किया जायेगा, भुगतान राशि में थोडी बढोत्तरी हो सकती है।

रबी 2017-18 में 1.52 करोड किसानों का बीमा हप्ता 1191 करोड रुपये, केंद्र सरकार की सबसिडी 2047करोड रुपये और राज्य सरकार की सबसिडी 2091 करोड रुपये मिलाकर सकल प्रीमियम राशि 5329 करोड रुपये बीमा कंपनियों को प्राप्त होगी। लेकिन रबी भुगतान का अभी इंतजार करना होगा।

खरीफ और रबी 2017-18 में 5.26 करोड किसानों से, जिसमें3.99 करोड किसान कर्जदार है, 4218 करोड रुपये बीमा हप्ता वसूला गया।केंद्र सरकार की सबसिडी10199 करोड रुपये और राज्य सरकार की सबसिडी10294करोड रुपये मिलाकरबीमा कंपनियोंको कुल 24710 करोड रुपयों की राशि दी जायेगी।

पिछले साल 2016-17 में देश के 5.75 करोड किसानों के बैंक खातों और राज्य व केंद्र के किसान बजट से प्रति किसान औसतन 2718 रुपये हिस्सा वसूल कर 22180 करोड रुपये बीमा कंपनियों को दिये गये। उसमें से किसानों को 12948 करोड रुपये नुकसान भरपाई के रुपमें भुगतान किया गया।यह भुगतान राशि, अनुमानित राशि और अनुमोदित राशि दोनोंसे कम थी। इस प्रकार किसानों के जेब पर डाका डालकर पिछले साल 9232 करोड रुपये दस निजी कंपनियोंने लूट लिये थे।केवल 20 प्रतिशत किसानों को नुकसान भरपाई मिल पाई। 80 प्रतिशत किसानोंको प्राकृतिक नुकसान नही हुआ इसलिये निर्धन किसानों का धन छीन लिया गया।

वर्ष 2017-18 में भी बीमा कंपनियों व्दारा किसानों को हजारों करोड रुपयों से लूटना तय है। यह राशि पिछले साल से अधिक हो सकती है। खरीफ के अनुमानित दावों के आधारपर यह अनुमानित किया जा सकता है कि 2017-18 में भी 10 हजार करोड रुपयों से अधिक बीमा कंपनियों व्दारा लूट लिये जायेंगे।यहां यह समझना आवश्यक है कि केंद्रीय बजट में कृषि योजनाओं के लिये केवल 46.7 हजार करोड रुपये रखे गये थे जिसमें से 13 हजार करोड रुपये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये आवंटित किये गये थे।

तत्वत: यह योजना किसानोंको लूटकर कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये बनाई गई है। किसानों से वसूला गया बीमा हप्ता और राज्य व केंद्रीय कृषि बजट में प्राकृतिक आपदाओं में किसानों को नुकसान भरपाई के लिये आंवटीत की गई राशि बीमा कंपनियोंको दी जाती है।कर्जदार किसानों से उनके अनुमति के बिना जबरदस्ती से बैंक खाते से बीमा हप्ता काट लिया जाता है। जो किसान कर्जदार नही है उन्हे इस आधारपर योजना में शामिल होने के लिये बाध्य किया जाता है कि अगर वह बीमा नही निकालेंगे तो उन्हे प्राकृतिक आपदाओं में किसी प्रकार की नुकसान भरपाई नही दी जायेगी। किसानों को नुकसान साबित करने के लिये कई बाधाओं को पार करना पडता है। कंपनियोंने या बैंकोंने किसानों को भुगतान किया कि नही इसकी जांच पड़ताल करने की कोई व्यवस्था सरकार के पास नही है। कंपनियों ने कहा और सरकार ने माना ऐसी स्थिति है। इसी कारण कृषि, बैंक और बीमा कंपनियों के अधिकारी मिलीभगत करके भुगतान में भी धांधली कर रहे है।

संबंधित आधिकारी यह स्वीकार करते है कि फसल बीमा योजना एक बिजनेस मॉडेल है। बीमा कंपनियां सेवा नही बल्कि धंधा करने आयी है। यह भी स्पष्ट है कि योजना जबतक चालू रहेगी किसानों का हक हर साल इसी प्रकार से छीना जायेगा। तथ्योंको जानने के बावजूद केंद्र सरकार ने योजना जारी रखी है। इतना ही नही वह इसे ही किसानों के भले की योजना कहती है।

राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति द्वारा किसान समस्याओं के संपूर्ण समाधान के लिये एक पत्र व्दारा माननीय प्रधानमंत्रीजी को 26 सूत्री प्रस्ताव सौपा था।साथ ही रा.कि.स.स. प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय कृषिमंत्री, नीति आयोग के अध्यक्ष को मिलकर 26 सूत्री प्रस्ताव पर अमल के लिये चर्चा की गई। जिसमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना योजना के व्दारा किसानों की हो लूट को रोकने की मांग भी शामिल है। देश के किसानों को लूट कर उनसे वसूला गया बीमा हप्ता किसानों को वापस लौटाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बंद की जाए और उसके बदले में प्राकृतिक आपदाओं में किसानों को सरकार की तरफ से सीधे नुकसान भरपाई की व्यवस्था की जानी चाहिए ।