दिल्ली जाने वाली दस सड़कें आगामी नवम्बर में लाखों किसानों, मजदूरों, युवाओं और महिलाओं यानि कुल मिलाकर, वंचितों से पट जायेंगी. वंचितों का यह जन – सैलाब एकजुट होकर “किसानों के लिए देश” के बैनर तले “खालिस कृषि संकट पर चर्चा के लिए तीन सप्ताह की अवधि वाला संसद का एक विशेष सत्र बुलाने” की मांग के साथ दिल्ली की ओर मार्च करेगा.

पिछले 25 वर्षों में चार लाख के ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है और इस संख्या में साल – दर – साल इज़ाफा होता जा रहा है. अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने द सिटिज़न को बताया कि उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बेहद गरीब तबके के हजारों बच्चे भुखमरी और कुपोषण से मर रहे हैं.

किसानों और मजदूरों के 190 से अधिक संगठनों ने वंचितों के इस लंबी मार्च का समर्थन किया है. देश भर के विभिन्न हिस्सों से निकलने वाली ये यात्राएं महान सुधारक ज्योतिराव फुले की पुण्यतिथि पर 28 नवम्बर को इन दस सड़कों पर एक निश्चित स्थान पर मिलेंगी और अंत में 30 नवम्बर को दिल्ली पहुंचेंगी जब संभवतः संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत होगी.

मांगें तो खैर कई हैं, लेकिन आगामी नवम्बर में होने वाले इस मार्च के जरिए देश के वंचितों को इस कदर सशक्त बनाने की उम्मीद है कि वे अपनी मजबूत उपस्थिति से सरकार और संसद को बच निकलने का कोई मौका दिए बगैर उसे उस मसले पर चर्चा करने के लिए मजबूर कर देंगे, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने “राज्यों का मसला” कहकर झटका हुआ है.

मध्यप्रदेश में अपने लंबित मांगों के समर्थन में प्रदर्शन करने वाले किसान बड़ी संख्या में मारे गये हैं. महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु एवं अन्य राज्यों में भी किसान सड़कों पर उतरे हैं. महाराष्ट्र में नासिक से मुंबई तक निकली लंबी मार्च ने राज्य सरकार को कर्ज़ – माफ़ी समेत किसानों की अन्य सभी मांगें मानने को मजबूर कर दिया. लेकिन जैसी आशंका थी, राज्य के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस अपने वादों से पलट गये हैं.

कर्ज की कठिन शर्तों, फसलों की गैरमुनासिब कीमत, भूमि – अधिग्रहण और अन्य कई कारकों की वजह से होने वाली दुर्दशा से निजात दिलाने के वास्ते सरकार का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए किसानों ने सभी तरीके आजमाये हैं. उन्होंने मृत किसानों की खोपड़ी के साथ दिल्ली में डेरा डाला, सडकों पर दुध बिखेरा, लोगो को मुफ्त में उठा ले जाने के लिए सड़कों पर सब्जियां फेंकी, खून से सने पांव के साथ लंबी दूरी तय कर प्रदर्शन किया, उत्तर प्रदेश में भाजपा का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्र में हुए उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को हराया. फिर भी, मुसीबतजदा किसानों का मरना जारी रहा. हालांकि, सरकार की जवाबी प्रतिक्रिया या तो उदासीनता की रही या फिर मध्यप्रदेश की तरह हमलावर रहा.

कृषि विशेषज्ञ पी साईनाथ, जिन्होंने सबसे पहले तीन सप्ताह की अवधि वाला संसद के विशेष सत्र का विचार पेश किया था, ने एक लेख में विशेष सत्र के संभावित एजेंडा के बारे में चर्चा की थी.

“3 दिन : स्वामीनाथन आयोग के रिपोर्ट पर चर्चा – 12 वर्षों से यह मुद्दा बकाया है. इस आयोग ने दिसम्बर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच पांच रिपोर्ट सौंपी जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत उत्पादकता, निरंतरता, लाभदायकता और तकनीक का उपयोग आदि से जुड़े अहम मुद्दे शामिल हैं.

“3 दिन : जन – सुनवाई – कृषि संकट से पीड़ित लोगों द्वारा संसद के केन्द्रीय – कक्ष में अपनी व्यथा सुनाना और देश को इस संकट के बारे में अवगत कराना.

“3 दिन : कर्ज – संकट पर चर्चा : ऋणग्रस्तता की विकराल समस्या में निरंतर इज़ाफा होने के बारे में चर्चा. लाखों किसानों की आत्महत्या का सबसे अहम कारक.

“3 दिन : देश में व्याप्त जल – संकट पर चर्चा : पानी के निजीकरण की सरकार की नीति की पृष्ठभूमि में सूखा और अकाल से भी अधिक बड़ी इस समस्या पर चर्चा.

“3 दिन : महिला किसानों के अधिकारों पर चर्चा : प्रो. स्वामीनाथन ने राज्यसभा में “महिला किसान पात्रता विधेयक, 2011” पेश किया था. इस विधेयक को चर्चा का प्रस्थान बिन्दु बनाया जा सकता है.

“3 दिन : भूमिहीन मजदूरों (स्त्री और पुरुष) के अधिकारों पर चर्चा : बड़े पैमाने पर पलायन और विस्थापन की पृष्ठभूमि में इस पर चर्चा जरुरी.

“3 दिन : खेती की स्थिति पर बहस : अगले 20 वर्षों में हम कैसी खेती चाहते हैं? कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे से संचालित खेती? या समुदायों और परिवारों, जिनके लिए यह अस्तित्व का आधार है, द्वारा की जाने वाली खेती?