भारतीय जनता पार्टी की सरकार (भाजपा) पहले किसानों और फिर छोटे कारोबारियों को तबाह करने के बाद अब मछुआरों का जीना मुहाल करना चाहती है. ऐसा मानना है गुजरात के मछुआरों और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का, जो सरकार के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्लान या सीजेडएमपी) से जुड़े ताज़ा कदम से सशंकित हैं और इसका विरोध कर रहे हैं.

सीजेडएमपी संघर्ष समिति, जिसमें गुजरात के तटीय इलाकों में बसे समुदायों के साथ काम करने वाले कई जन – संगठन शामिल हैं, गुजरात के तटीय इलाकों के समुचित प्रबंधन के लिए बनाये गये तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्लान या सीजेडएमपी) के मसौदे से जुड़े नये नक्शे में छोड़ी गयी खामियों और इन नक्शों को अंतिम रूप दिये जाने से पूर्व इससे संबंधित आपत्तियों एवं सुझावों को जानने के लिए आवश्यक जनसुनवाई को आनन – फानन में अंजाम दिये जाने की कोशिशों का यह कहते हुए घोर विरोध कर रही है कि इसके पीछे बड़े – बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने की मंशा है.

गौरतलब है कि गुजरात के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्लान या सीजेडएमपी) के मसौदे से जुड़े नये नक्शे 9 अगस्त को गुजरात तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (गुजरात कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथारिटी या जीसीजेडएमए) की वेबसाइट पर प्रकाशित किये गये हैं. इन नक्शों को केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तटीय विनियमन क्षेत्र (कोस्टल रेगुलेशन जोन या सीआरजेड) से जुड़ी 6 जनवरी 2011 की अधिसूचना के तहत गुजरात इकोलॉजी कमीशन द्वारा बनाया गया है. इन नक्शों को अंतिम रूप दिये जाने से पहले आम जनता की आपत्तियों एवं सुझावों को जानने के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आनन – फानन में जनसुनवाई की जा रही है.

कोस्टल रेगुलेशन जोन की 2011 की अधिसूचना की मद संख्या 5 (vi) के अनुसार नक्शे को अंतिम रूप देने से पहले इसके के बारे में आम जनता की राय को जनसुनवाई के माध्यम से जानना अनिवार्य है. इसमें मछुआरा समुदाय और तट पर बसे लोगों को सुझाव देने की अनुमति है. इस प्रक्रिया के बाद अंतिम नक्शा प्रकाशित किया जा सकता है और उसके अनुरूप किसी राज्य के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्लान या सीजेडएमपी) को अंतिम रूप दिया जा सकता है.

सीजेडएमपी संघर्ष समिति का कहना है कि नियम के मुताबिक नक़्शे के प्रकाशन के 30 दिन बाद ही जनसुनवाई की जा सकती है. और चूंकि नया नक्शा 9 अगस्त को वेबसाइट पर रखा गया है, इसलिए 8 सितंबर से पहले की सभी जनसुनवाई रद्द की जानी चाहिए.

नक़्शे में छोड़ी गयी कमियों की ओर इशारा करते हुए सीजेडएमपी संघर्ष समिति कहती है कि इसमें सिर्फ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना और गांव, तालुका या जिला का स्पष्ट विवरण न होना काफी असमंजस में डालता है. यही नहीं, इसमें मछली पालन करने वाले समुदायों के बसावटों, मछुआरों के नावों की पार्किंग और मछली सुखाने को सामुदायिक स्थानों को ठीक से नहीं दिखाया गया है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का वर्गीकरण भी सही तरीके से नहीं दिखाया गया है. मछुआरों के जेटी बंदरगाह आदि को भी ठीक से चिन्हित नहीं किया गया है. तटीय गांवों, चारागाह, मैंग्रोव, समुद्र तटों, और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को ठीक से प्रदर्शित नहीं किया गया है.

सीजेडएमपी संघर्ष समिति के मुताबिक नक़्शे में छोटी दूरी वाले मैंग्रोव को नहीं दिखाया गया है. इसमें उच्च - ज्वार और निम्न – ज्वार वाले क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति का विवरण मौजूद नहीं है. कई स्थानों पर नक्शे विपरीत स्थिति प्रदर्शित करते हैं और गलत जानकारी दिखाते हैं. इसमें आरक्षित और संरक्षित जंगल, पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील इलाके, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यजीव अभयारण्य इत्यादि नहीं दिखाए गए हैं. हजीरा के धुमस जंगल, वलसाड के नारगोल बीच, भरूच के अलियाबेट इत्यादि स्थानों को नक़्शे में नहीं दर्शाया गया है.

सरकार द्वारा 9 अगस्त को जारी नक़्शे के बारे में द सिटिज़न से बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अज़ीमा गिराच ने बताया, “गुजरात में देश का सबसे लंबा तटीय क्षेत्र (कोस्ट लाइन) है, जो राज्य के 16 जिलों से होकर गुजरता है. कोस्ट लाइन पर सबसे सस्ता पानी उपलब्ध है, जबकि बाकी राज्य में पानी की काफी कमी है. उद्योगों के लिए यह एक पसंदीदा क्षेत्र है. पर देश के कोस्ट लाइन के संरक्षण और बचाव के लिए जारी कोस्टल रेगुलेशन जोन 2011 की अधिसूचना की वजह से राज्य के तटीय इलाकों में औद्योगिक कंपनियों की भरमार में कमी आई. लेकिन वर्तमान सरकार पर्यावरण, समुद्र की जलवायु, मछुआरों की आजीविका की चिंता किये बिना इन इलकों को उद्योगों को सौंप देना चाहती है. इसी वजह से उसने अभी तक कोस्ट लाइन का नक्शा नहीं बनाया था. अब जब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल या एनजीटी) ने इन इलाकों में उद्योगों को अनुमति देने से इंकार किया, तो आनन-फ़ानन में कोस्टल जोन का नक्शा बनाया गया और इसमें जानबूझकर कमी छोड़ी गयीं है ताकि उद्योगों को एनजीटी से राहत दिलवाई जा सके. भले ही इससे पर्यावरण का चाहे कितना भी नुकसान हो जाये और गरीब मछुआरों की आजीविका क्यों न छीन जाये.”