वॉक्स न्यूज़ ने हाल में डेविड फारिस के इंटरव्यू को प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है, “व्हाई दिस पोलिटिकल साइंटिस्ट थिंक्स द डेमोक्रेट्स हैव टू फाइट डर्टी”. डेविड फारिस रूज़वेल्ट यूनिवर्सिटी में राजनैतिक वैज्ञानिक हैं, और एक पुस्तक प्रकाशित की है, इट इस टाइम टू फाइट डर्टी. अमेरिका में इस पुस्तक की बहुत चर्चा है और इसमें कहा गया है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को परम्परागत राजनीति से नहीं हटाया जा सकता है, इसे हटाने के लिए ओछी राजनीति की जरूरत है. इस पुस्तक की खासियत यह है कि यदि आप इसके आलेख में रिपब्लिकन के बदले अपने देश की सत्ताधारी पार्टी का नाम शामिल कर लें तो यह पुस्तक कम से कम 70 प्रतिशत तक हमारे देश पर सटीक बैठती है.

सीन लिल्लिंग द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में डेविड फारिस ने अनेक वाक्य ऐसे कहे जिसमें पार्टी का नाम हटा कर पढ़ने से पूरी स्थिति अपने देश की नजर आती है. डेविड फारिस बताते हैं, ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ऐसा व्यवहार करती है जैसे उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं हो और न ही भविष्य में उनकी जिम्मेदारी कोई तय करेगा. डेमोक्रेटिक पार्टी को यह समझाना जरूरी है कि रिपब्लिकन पार्टी नीतियों पर चुनाव नहीं लडती बल्कि इनके लिए चुनाव तो एक प्रक्रियात्मक युद्ध है. रिपब्लिकन पार्टी ने पिछले दो दशकों से संविधान में कमियां खोज कर पूरी की पूरी सरकारी संरचना अपने पक्ष में कर लिया है. यह पार्टी यदि संविधान के अनुसार काम करती भी है तब भी संविधान की सोच और विचारधारा की हत्या करती है.

डेविड फारिस बताते हैं, हम इस समय अमेरिका के पूरे इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर हैं. इस समय संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का भरोसा उठ चुका है और लोग चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठाने लगे हैं. ट्रम्प प्रशासन देश को राजनैतिक संस्कृति और परंपरा को खतरनाक तरीके से बदलने में कामयाब रहा है. ऐसे में डेमोक्रेटिक पार्टी केवल नीतियों की लड़ाई नहीं लड़ सकती. अनेक सामाजिक और राजनैतिक अध्ययनों के अनुसार आज के दौर में नीतियां चुनाव में कोई मायने नहीं रखतीं और अधिकतर लोग नीतियों के प्रभाव से अनजान बने रहते हैं. बराक ओबामा ने स्वास्थय सेवाओं में ओबामाकेयर के नाम से योजना शुरू की जिससे करोड़ों लोग लाभान्वित हुए पर अधिकतर लोगों को यह नहीं पता कि इस योजना को ओबामा ने या डेमोक्रेटिक पार्टी ने शुरू किया था.

इस पुस्तक से इतना तो स्पष्ट है कि सत्ता को अब सामान्य तरीके से हटाना असंभव है, ऐसे में हरेक विरोधी पार्टी को आकलन कर आगे का रास्ता तय करना होगा. हमारे देश में यह काम अधिक कठिन है क्यों कि सही मायनों में विपक्ष बचा ही नहीं है. सत्ताधारी दल समय रहते अपनी कार्यशैली तय करते हैं और इसे पूरा करने में जुट जाते हैं. दूसरी तरफ, विपक्ष अभी तक अपने सदमे या इतिहास से बाहर नहीं आ पा रहीं हैं. कोई भी चुनाव हो, विपक्ष की तैयारी हमेशा अधकचरी ही रहती है. ऐसे में विपक्ष को परम्परागत लीक से हट कर रणनीति बनाने की जरूरत है.

डर्टी पॉलिटिक्स के लिए वैसी सोच बनाना बहुत जरूरी है, पर ऐसा कर पाना हमारे देश में कठिन है. यदि सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का विश्लेषण करें तो पायेंगे कि 75 प्रतिशत से अधिक भाषण विपक्ष को कोसने में, 15 प्रतिशत गांधी-नेहरु में और 10 प्रतिशत से कम हिस्सा वो क्या कर रहे हैं, इसपर केन्द्रित होता है. ऐसे में, विपक्ष को सत्ता पक्ष की आलोचना पूरी तरह से कुछ महीनों के लिए बंद कर देनी चाहिए क्यों कि इसी आलोचना के कुछ वाक्य सत्ता पक्ष के बड़े नेताओं के भाषण का 75 प्रतिशत हिस्सा होते हैं. ऐसे में संभवतः सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण का समीकरण भी बदल जाएगा.

कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को दीर्घकालीन रणनीति बनाकर वापस कुछ वर्षों के लिए जनता के बीच जाकर समर्पित कार्यकर्ताओं को तैयार करना होगा. कांग्रेस को यह याद रखने की जरूरत है कि अब आजादी के स्वतंत्रता सेनानियों का दौर ख़त्म हो गया और साथ ही संयुक्त परिवार भी ख़त्म हो रहे हैं. स्वतंत्रता सेनानियों के दौर में बिना जनता के बीच गए भी कोंग्रेस इनकी पहली पसंद हो सकती थी, पर अब ऐसा कतई नहीं है. एकल परिवार के दौर में जनता के बीच जाना और भी जरूरी है क्यों कि अब परिवार के बुजुर्ग के कहने पर वोट का निर्णय नहीं होता.

फारिस का आकलन सही है, केवल नीतियों से चुनाव नहीं जीते जाते और अमेरिका अपने इतिहास के सबसे खतरनाक दौर में है, और शायद हम भी.