तर्कवादियों का एलान : “अगर हम चुप हो गये, तो वे सफल हो जायेंगे”
हमलों के आगे झुकने से तर्कवादियों का इंकार
हाल के वर्षों में हिन्दू अतिवादियों के हाथों कई प्रसिद्ध बुद्धिवादियों की दिन – दहाड़े हत्या हुई है : अगस्त 2013 में पुणे में महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र दाभोलकर की; फरवरी 2015 में कोल्हापुर में वामपंथी राजनेता गोविन्द पानसरे और उनकी पत्नी उमा पानसरे की; अगस्त 2015 में कन्नड़ विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति और बुद्धिजीवी एम. एम. कलबुर्गी की; और सितम्बर 2017 में बंगलुरु में प्रसिद्ध पत्रकार गौरी लंकेश की. ये सभी हस्तियां अंधविश्वासों, हिन्दुत्व और हिन्दुत्व की नीतियों के घोर विरोधी थीं.
दिलचस्प यह है कि तमाम तहकीकातों में यही चिंताजनक खुलासा हुआ है कि इन हत्याओं में एक ही किस्म के तौर – तरीकों का इस्तेमाल हुआ. इन सभी घटनाओं में मोटरसाइकिल – सवार हमलावरों ने छाती और सिर को निशाना बनाकर गोलियां दागीं. गौरी लंकेश की हत्या की तफ्तीश के दौरान कर्नाटक एसआईटी को 7.65 एमएम आकार की एक वैसी ही देसी पिस्तौल बरामद हुई जिसका इस्तेमाल दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी को मारने के लिए किया गया था. तफ्तीश के दौरान कन्नड़ भाषा के लेखक और आलोचक के. एस. भगवान की हत्या की साजिश के साथ – साथ 34 लोगों की एक सूची का भी खुलासा हुआ. इस सूची में शामिल तमाम हस्तियां भी अंधविश्वासों, हिन्दुत्व और हिन्दुत्व की नीतियों के खिलाफ बेहद मुखर हैं और निकट भविष्य में संभावित रूप से अतिवादियों द्वारा उन्हें निशाना बनाया जा सकता था. इन सभी मामलों में गिरफ्तार किये गये सारे लोग मुख्य रूप से सनातन संस्था और उससे संबद्ध हिन्दू जनजागृति समिति जैसे हिन्दुत्वादी संगठनों से ताल्लुक रखते हैं. ये दोनों संगठन भले ही ‘आध्यात्मिक’ संगठन होने का दावा करते हों, लेकिन दंगा और बम – विस्फोट कराने जैसी विध्वंसक गतिविधियों में उनकी संलग्नता सामने आयी है. इसके बावजूद, इन संगठनों को प्रतिबंधित करने की मांग अबतक अनसुनी है.
महाराष्ट्र में, जहां दाभोलकर और अन्य बुद्धिवादियों के प्रयासों से 2013 में अन्धविश्वास विरोधी कानून पारित किया गया था, पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा उठाये गये कदमों में कोई खास अंतर नहीं नजर आता. हालांकि, भाजपा सरकार की चुप्पी में ही इस किस्म के मुद्दों के प्रति उनका समर्थन छुपा है. अन्धविश्वास विरोधी कार्यकर्ता और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक प्रो. श्याम मानव का कहना है, “यह एक तथ्य है कि ये संस्थाएं अब निडर हो गयी हैं. इससे पहले कि वे न सिर्फ बुद्धिवादियों को बल्कि आम आदमी को भी मारना शुरू करें, आतंकवाद – निरोधी दस्ते को इन संगठनों को प्रतिबंधित कराने के लिए उनकी गतिविधियों पर गौर करना चाहिए.” उनके मुताबिक, “सरकार का बदलना परिस्थितियों में आये उल्लेखनीय बदलाव को भले ही उजागर न करें, लेकिन आज ये संगठन बुद्धिजीवियों को खुलेआम धमकाने में समर्थ हैं क्योंकि जिस विचारधारा के वे समर्थक हैं वही इन दिनों सबकुछ संचालित कर रही हैं.” हिंदुत्व के समर्थक होने के नाते सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति भाजपा की सहयोगी हैं.
देश के अन्य भागों में, सरकार खुद शत्रुता को बढ़ावा देती प्रतीत होती है. कलकत्ता स्थित साइंस एंड रेशनलिस्टस एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (एसआरएआई) के अध्यक्ष प्रबीर घोष बताते हैं, “मेरी संस्था के कई सदस्यों को बिना किसी कारण के जेल में बंद रखा गया है.” वे आगे कहते हैं, “सबूत पेश करने की जिम्मेदारी अदालतों और सरकार ने उन्हीं पर लादी है और उन्हें यह साबित करने को कहा गया है कि वे आतंकवादी और देशद्रोही नहीं हैं. आखिर कोई इसे कैसे साबित करे?” श्री घोष के मुताबिक, ये सब सिर्फ एसआरएआई की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर धार्मिक अंधविश्वासों और नीमहकीमों या इन मुद्दों से संबंधित सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने की वजह से हुआ है.
फेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन्स के अध्यक्ष प्रो. नरेन्द्र नायक के हिसाब से वर्तमान “उन्हीं लोगों के लिए डरावना है, जो डरना चाहते हैं.” श्री नायक वही व्यक्ति हैं, जिनका नाम जांच के दौरान कर्नाटक एसआईटी को मिली अतिवादियों के निशाने पर आये लोगों की सूची में पाया गया था और जिनपर कई बार जानलेवा हमला हो चुका है. उनकी जान पर ताज़ा हमला इसी साल मार्च में हुआ था और अब वे चौबीस घंटे सुरक्षा के घरे में रहते हैं. वो कहते हैं, “मैं डरकर चुप हो जाने वाले लोगों में से नहीं हूं.” समूचे कर्नाटक और देश के बाकी हिस्सों के हजारों लोगों को ठगने वाला “मिड – ब्रेन एक्टिवेशन” घोटाला जैसे मुद्दों के खिलाफ श्री नायक द्वारा लगातार चलाये जा रहे अभियान की वजह से अतिवादियों की हिट – लिस्ट में उनका नाम थोड़ा और पहले खिसक आया है. श्री श्री रविशंकर और जग्गी वासुदेव जैसे लोगों की आलोचना के साथ – साथ आरटीआई कार्यकर्ता और भाजपा के बूथ – स्तर के कार्यकर्ता विनायक बालिगा, जिसे कथित रूप से उसकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने मार डाला, के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने की वजह से भी हिन्दुत्वादी समूहों के साथ उनकी दिक्कतें बढ़ी हैं.
हिन्दुत्ववादी संगठनों के कथित सदस्यों द्वारा उनपर और उन जैसे अन्य लोगों पर किये गये जानलेवा हमलों के बारे में श्री नायक कहते हैं, “सनातन संस्था और अन्य हिन्दुत्वादी गिरोह हमारे जैसे बुद्धिवादियों से छुटकारा पाने की साजिश इसलिए रचते हैं क्योंकि हम लोगों को सवाल पूछना सिखा रहे हैं. यह उनके व्यावसाय को चोट पहुंचता है.” कई अन्य लोगों की भांति उनका भी यह मानना है कि इन संगठनो के साथ सरकार की मिलीभगत है. “शीर्ष पर बैठे लोगों के रवैये की वजह से ‘सतह पर रहने वाले इन समूहों’ को अपनी धमकियों और हिंसा को अंजाम देने की हिम्मत मिलती है. सरकार इन समूहों पर कोई नियंत्रण नहीं होने का दावा करती है, लेकिन वह उन्हें बचाने का प्रयास करती है.” ऐसे माहौल में, हिन्दुत्व के आदर्शों के खिलाफ बोलने वाले हर व्यक्ति पर, चाहे वह बुद्धिवादी हो या वैज्ञानिक या पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता, हमले का खतरा है.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रगतिशील लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, बल्कि उनके वैचारिक आदर्शों के जड़ों पर भी प्रहार किया जा रहा है. इसे इस साल के शुरू में तमिलनाडु में ई. वी. रामास्वामी पेरियार, जो इस देश में तर्कवाद के प्रणेता माने जाते हैं, की मूर्तियों के तोड़फोड़ में भी देखा जा सकता है. ऐसी घटनाएं भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एच. राजा द्वारा फेसबुक पर इन मूर्तियों को ध्वस्त करने के समर्थन में लिखे गये एक पोस्ट के ठीक बाद शुरू हुईं.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51-A लोगों से “वैज्ञानिक चेतना, मानवतावाद और परीक्षण एवं सुधार की भावना विकसित करने” का आह्वान करता है. लेकिन केंद्र में सत्तारूढ़ दल प्रत्येक सवाल का वैज्ञानिक जवाब वेदों में ही ढूढ़ती है. इस किस्म के छदम – विज्ञान को दुर्भाग्यवश अन्य धर्मों में व्याप्त ‘अन्धविश्वासों’ के मुक़ाबले कहीं बेहतर माना जाता है और इस क्रम में हिन्दू धर्म और हिंदुत्व को ‘एक बेहतर जीवन शैली” के तौर पर स्थापित करने का आग्रह साफ़ नजर आता है. जब सनातन संस्था और हिन्दू जनजागृति समिति जैसी संस्थाएं इस छदम – विज्ञान के प्रसार का वाहक बनती हैं तो वे स्वाभाविक रूप से उन तर्कवादियों को अपना दुश्मन मान लेती हैं जो ज्ञान के ‘वैकल्पिक’ व्यवस्थाओं के अफवाह से बचने का आह्वान करते हैं.
जोखिम भारी ऐसी परिस्थितियों के बावजूद, बुद्धिवादियों ने अंधविश्वास और सरकार की आलोचना से दूर रहने से इंकार कर दिया है. श्री नायक कहते हैं, “आज असहमति के स्वर पहले ही कम हो गये हैं. अब हम अगर चुप हो गये, तो वे सफल हो जायेंगे.”