मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने इस बार वापसी के इरादे से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए सूबे में पार्टी सभी बड़े नेताओं के जिम्मेदारी तय कर दी है लेकिन शिवराज के मुकाबले पार्टी की तरफ से किसी को चेहरा घोषित नहीं किया है. लम्बे समय के बाद पार्टी की कमान एक ऐसे नेता के हाथों में है जो वरिष्ठ है और जो सभी गुटों को साधने में सक्षम नजर आता है.प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किये जाने के बाद से कमलनाथ ज्यादातर समय भोपाल में ही बने रहे हैं .इस दौरान उसका पूरा फोकस संगठन और गठबंधन पर रहा है. संगठन का काम तो उन्होंने पूरा कर लिया है लगभग सभी सांगठनिक नियुक्तियां पूरी हो चुकी हैं लेकिन गठबंधन का सवाल अभी भी बना हुआ है.

कमलनाथ का सबसे ज्यादा जोर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन पर रहा है. शरुआत से ही वे बसपा से साथ गठबंधन को लेकर बहुत उतावले दिखाई पड़े हैं शायद उनकी इस अधीरता और मजबूरी को बसपा ने भांप लिया और अब वो अपनी शर्तों पर कांग्रेस के साथ मोल भाव की स्थिति में आ गयी है.

मध्यप्रदेश में यह शायद पहला चुनाव होगा जिसमें क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका को इतना महत्त्व दिया जा रहा है. परम्परागत रूप से यहां हमेशा से ही दो पार्टियों का वर्चस्व रहा है लेकिन इस बार क्षेत्रीय पार्टियों भी पूरी आक्रमकता के साथ अपने तेवर दिखा रही हैं. ऐसा मान जा रहा है कि किसी एक पार्टी के पक्ष में लहर ना होने के कारण इस बार हार-जीत तय करने में सपा, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे पार्टियों की अहम भूमिका रहने वाली है. आदिवासी संगठन “जयस” और आम आदमी पार्टी जैसे नये खिलाडी में मैदान में ताल ठोकते हुये नजर आ रहे हैं.आम आदमी पार्टी तो अपने बूते सरकार बनाने का दावा भी कर रही है.

इन सबमें सबसे बड़ा खिलाड़ी बहुजन समाज पार्टी को माना जा रहा है, मध्यप्रदेश में 15 फीसदी से अधिक दलित आबादी है जो कि परम्परागत रूप से कांग्रेस के वोटबैंक रहे हैं लेकिन अब इसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा और बसपा के हिस्से में जा चूका है. मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं जिसमें से वर्तमान में 27 सीट भाजपा के पास हैं. कांग्रेस एकबार फिर अपने इस पुराने वोट बैंक को साधना चाहती है. इसी सन्दर्भ में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने यह बयान दिया था कि “अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी भी उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं”.

पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बसपा ने लगातार कांग्रेस की संभावित जीत वाली सीटों पर खेल बिगड़ने का काम किया है. बुन्देलखण्ड, विंध्य और ग्वालियर चंबल संभाग में बसपा का अच्छा प्रभाव माना जाता है. पिछले चार विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा के लगातार करीब सात प्रतिशत वोट शेयर बनाये रखा है. 2013 विधानसभा चुनाव के दौरान उसे 6.29 फीसदी वोट मिले थे.

प्रयासों के बावजूद दोनों पार्टियों में गठबंधन को लेकर अभी तक सहमति नहीं बन सकी है और लगातार अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. बीच-बीच में बयानबाजी जरूर सामने आ जाती है जिसमें बसपा ये कहकर कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश करती है कि वो मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है. पिछले दिनों प्रदेश बसपा अध्यक्ष प्रदीप अहिरवार का एक बयान आया कि “हम सभी सीटों पर तैयारी कर रहे हैं,प्रदेश भर में लगातार सभाएं हो रही हैं,बसपा की इस बार निर्णायक भूमिका होगी”.

दबाव कांग्रेस पर है क्योंकि इस समय उसे बसपा के साथ की ज्यादा जरूरत है. विशेषकर उप्र की सीमा से लगे बुंदेलखंड, विंध्याचल और ग्वालियर-चंबल की सीटों पर . साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा को चार सीटें मिली थी जबकि 11 सीटों पर उसके प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे और करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर वो तीसरे नंबर पर रही थी. इसलिये कांग्रेस अगर सत्ता में वापस लौटना चाहती है तो वो चाहकर कि इसमें बसपा की भूमिका से इनकार नहीं कर सकती है. अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वोट शेयर में बसपा के करीब सात प्रतिशत के करीब वोट शेयर को जोड़ दिया जाये तो फिर यह गठजोड़ भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. आंकड़े बताते हैं कि अगर 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बसपा मिलकर चुनाव लड़ते तो वे करीब 131 सीटें जीत कर सरकार बना सकते थे .इसी तरह से अगर दोनों पार्टियाँ 2013 में मिलकर चुनाव लड़तीं तो मुकाबला काफी करीबी हो सकता था.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने स्वीकार किया है कि कि “आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने से कांग्रेस को मदद मिलेगी”.

अगर इन दोनों पार्टियों के बीच समझौता नहीं हुआ तो इससे भाजपा को बहुत राहत मिलेगी. कांग्रेस से जुड़े अखबार नेशनल हेराल्ड द्वारा मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर जुलाई माह में स्पीइक मीडिया नेटवर्क के जिस सर्वे प्रकाशित किया था उसमें बताया गया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन नहीं हुआ तो कांग्रेस के लिये मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता से हटाना बहुत मुश्किल होगा.

मध्य प्रदेश के साथ होने वाले राजस्थान विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस की इकाई विशेषकर सचिन पायलट बयान दे चुके हैं कि राजस्थान में कांग्रेस को किसी गठबंधन की आवश्यकता नहीं है . छत्तीसगढ़ में बसपा ने अजीत जोगी के साथ मिलकर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

मायावती ने बयान दिया है कि “कांग्रेस के साथ गठबंधन तभी होगा जब हमें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी”. मध्यप्रदेश में कांग्रेस बसपा को 15 सीटें देना चाहती है लेकिन बसपा 30 सीटें मांग रही है. दरअसल मध्यप्रदेश में कांग्रेस अन्य पार्टियों के साथ भी गठबंधन के फिराक में है. ऐसे में वो चाहकर भी बसपा को ज्यादा सीटें नहीं दे सकती है.