महाराष्ट्र में पुणे के सावित्री बाई फुले विद्यापीठ (पुणे युनिव्हर्सिटी) में संविधान दिवस के एक कार्यक्रम में हरिती पब्लिकेशन्स द्वारा बुक स्टॉल पर बिकने वाली पुस्तकों को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्था परिषद के सदस्यों ने हंगामा किया लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इस स्टॉल पर विभिन्न लेखकों की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील विचारों की अनेक पुस्तकें थी. इनमे एक किताब मिथिलेश प्रियदर्शी की पुस्तक ‘JNU डायरी’ भी थी. मूल रूप से हिंदी में लिखी गयी इस किताब का मराठी अनुवाद अमरनाथ चंडालिया ने किया है. हिन्दी में जेएनयू डायरी एक लोकप्रिय किताब हैं जिसका ताना बाना पिछले वर्षों के दौरान दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में छात्रों के आंदोलन और सत्ता मशीनरी की दममात्मक कारर्वाईयों के इर्द गिर्द बुना गया है।

अखिल भारतीय विद्यार्था परिषद (एबीव्हीपी) के कुछ लोग इस मौके पर पहुंच कर हंगामा करने लगे. उनका आक्षेप था की ‘JNU डायरी’ राष्ट्रविरोधी विचार रखने वाली किताब है, जो नक्सलवादी विचारों का प्रसार करती है. स्टॉल पर उपस्थित हरिती के प्रतिनिधि शाम घुगे ने उनको समझाने की कोशिश की कि हरिती सारी किताबों पर आईएसबीएन नंबर है. ‘JNU डायरी’का मराठी संस्करण दो साल पहले प्रकाशित हो चुका है, जिसमे कोई गैरकानूनी बात नही है. हरिती फुले, शाहू, आंबेडकर, मार्क्स आदी की विचार परंपराओं को मानती है. हरिती की किताबें समाज में ज्ञान की प्रक्रिया को आगे बढाती हैं. परंतु वे नही माने और बहस करने लगे. फिर उन्होने हाथापायी शुरू कर दी. जिस में शाम घुगे की शर्ट फट गयी. उस मौके पर युनिव्हर्सिटी कॅम्पस में मौजुद एसएफआई और एनएसयूआई के विद्यार्थी कार्यकर्ता दौड कर आए और हंगामा करने वाले तत्वों को वहां से भगाया. उसके बाद युनिव्हर्सिटी के सैकडों विद्यार्थीओं ने एबीव्हीपी की गुंडागर्दी के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन किया जो यह उस रात तक जारी रहा. उसके बाद हरिती प्रतींनिधी के साथ पुलिस स्टेशन जा कर विद्यार्थीओं ने रपट लिखवायी.

शाम घुगे ने कहा कि ‘हरिती पब्लिकेशन्स ज्ञान की प्रक्रिया में विश्वास रखता है. हम संविधान द्वारा प्रदत्त कानून व्यवस्था का सन्मान करते हैं. हमारी किताबें विद्यार्थीओं में लोकतांत्रिक चेतना और ज्ञान की भूख बढाती हैं. हरिती मराठी में मौलिक चिंतन प्रक्रिया को आगे ले जाने और सामाजिक आंदोलन को बढावा देने के लिए काम कर रहा है. हम विचार और ज्ञान की संस्कृति का निर्माण करना चाहते हैं.’