उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के एक गांव में भीड़ के हाथों एक पुलिस अफसर की हत्या जैसी खौफनाक घटनाओं की निंदा के लिए कई बार सिर्फ शब्द ही पर्याप्त नहीं होते. इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह, जिन्होंने गाय के शवों की खबरों से उत्तेजित भीड़ को समझाने की कोशिश की थी, को पहले पत्थर मारा गया. उनके ड्राईवर ने उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी में डाला, लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों से सशक्त हुई भीड़ ने उनका पीछा करके उन्हें एक खेत में घेर लिया और श्री सिंह को गोली मार दी. उनके ड्राईवर ने बाद में बताया कि उसे अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा. जैसाकि हमेशा होता है उस भीड़ में कई वीडियोग्राफर मौजूद थे, जिन्होंने उस घटना की रिकॉर्डिंग की और उसे सोशल मीडिया पर जारी किया.

इस घटना में एक राहगीर को भी गोली मारी गयी, जिसके बारे में पुलिस का जोर देकर कहना है कि वह एक छिटकी हुई गोली थी. पुलिस अफसर की जान लेने के बाद भीड़ ने उनका सर्विस रिवाल्वर और मोबाइल फ़ोन लूट लिया. एक घंटे से भी ज्यादा देर तक हिंसा चलती रही जिसमें पुलिस को कहर झेलना पड़ा और पलटवार से डरे बिना पर्याप्त रूप से उत्तेजित भीड़ पुलिस को निशाना बनाती रही. भीड़ ने न सिर्फ पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाये, बल्कि आगे बढ़कर उस पुलिस अफसर को एक बाधा मानते हुए गोली मार दी और उसका सर्विस रिवाल्वर लूट लिया, जो उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था.

इस घटना का वीडियो बनाया गया और कुछ भी न बिगड़ने के विश्वास के साथ उसे जारी किया गया. यो तो बजरंग दल के एक कार्यकर्ता को इस घटना का “मुख्य आरोपी” मानते हुए पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, यह कयास का विषय है कि इन लोगों को कितने समय तक सलाखों के पीछे रखा जा सकेगा. किसी व्यक्ति को मार डालने वाली भीड़ में शामिल रहे अधिकांश लोगों को जमानत पर छोड़ दिया गया है या सबूत के अभाव में न्यायालय द्वारा रिहा कर दिया गया है.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूरी अव्यवस्था फैली हुई है. राज्य में आतंक और हिंसा फैलाने वाली भीड़ अब पूरी तरह से हथियारबंद है. इससे पहले की घटनाओं में पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रही थी या फिर, जैसाकि निशाना बनाये गये इलाकों के स्थानीय निवासियों ने मीडिया को बताया, अपराध में शामिल रही थी. मुठभेड़, जिसका योगी आदित्यनाथ गर्व से बखान करते हैं, आम चलन बन गये हैं. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन मुठभेड़ों के जरिए मुसलमान एवं दलित युवाओं को विशेष तौर पर निशाना बनाया गया है. इस किस्म की सीधी भिड़ंत आज न कल होनी ही थी, क्योंकि जब आप भीड़ को प्रोत्साहित करते हैं और उसे कानून के चंगुल से बचाते हैं, तो उनके (भीड़ के) जेहन से कानून का भय निकल जाता है. भीड़ की हिंसा अब अपने अगले चरण में प्रवेश कर गयी है क्योंकि इस किस्म के अधिकांश हमलों में शामिल रहने वाले युवा कानून को अपने हाथों में लेने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावले नजर आते हैं.

एक पुलिस अफसर को गोली मारना इतना आसान नहीं होता. यह एक ऐसी हरकत है जिससे कट्टर से कट्टर अपराधी भी बचना चाहते हैं. हालांकि, इस घटना में न सिर्फ इंस्पेक्टर पर पत्थरों से हमला किया गया, बल्कि उसका पीछा किया गया, उसे गोली मारी गयी और फिर उसे लूटा गया. और यह सब उन चश्मदीदों के सामने हुआ जो भीड़ का हिस्सा तो थे, लेकिन चश्मदीद नहीं थे.

क्या होगा जब लोग कानून का सम्मान करना और उससे डरना छोड़ देंगे? और वे इस विश्वास के साथ कानून अपने हाथ में लेने लगेंगे कि उसके अपराध से उसे बचाने के लिए एक बड़ी शक्ति मौजूद है?

जब भी भीड़ के हाथों में लगाम गयी है, इस देश के निर्दोष एवं असहाय लोगों को निशाना बनना पड़ा है और उन्हें घेरकर पीट – पीटकर मार डाला गया है. भीड़तंत्र का दबदबा बढ़ने पर आक्रोश पुलिस के खिलाफ फूटता है. पिछले कुछ समय से पुलिस को इस किस्म के दबाव से गुजरना पड़ रहा है. और इसका असर भीड़ को हिंसा फैलाने से रोकने में उसकी हिचकिचाहट के रूप में देखने को मिला है.

बुलंदशहर की घटना यह साफ़ दर्शाती है कि अपनी वर्दी का सम्मान करने वाले और भीड़ एवं उसके लक्षित निशाने के बीच आने का प्रयास करने वाले एक पुलिस अफसर का क्या हश्र हो सकता है. इस किस्म के कहर का शिकार मीडिया पहले ही त्रिपुरा में हो चुका है, जहां भीड़ ने एक पत्रकार को पीट – पीटकर मार डाला था.

भीड़ का अगला निशाना राजनेता हो सकते हैं और उसके बाद सरकारों का नंबर आ सकता है. भीड़ एक ऐसा जिन्न है, जिसे बोतल में वापस भेजा नहीं जा सकता. खतरा इस बात का है कि भ्रम के शिकार राजनेता कहीं यह न समझने लगें कि वे एक भीड़ के मालिक हो सकते हैं और उसे अपने पक्ष में निर्देशित कर सकते हैं. यह महज समय की बात है जब ऐसी भीड़ पलटेगी. और पलटने के बाद वह भीड़ कहीं इस देश को एक ऐसे राज्य में न तब्दील कर दे जिसे इतिहास में राजनीतिक तौर पर अराजक माना गया है.