बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी के मौके पर द सिटिज़न ने तीन युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं – चन्द्रशेखर आज़ाद रावण, ऋचा सिंह और जिग्नेश मेवाणी - का साक्षात्कार किया और उनसे यह जानने की कोशिश की कि भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस ऐतिहासिक स्मारक को ढहाये जाने के मसले पर उनकी क्या राय है.

सत्ता प्रतिष्ठान की इस मसले पर चुप्पी को देखते हुए, द सिटिज़न ने यह भी जानने की कोशिश की कि भारत में इस किस्म की राजनीति के भविष्य को आखिर ये युवा नेता किस नजर से देखते हैं?

ये तीनों नेता अयोध्या भूमि विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मानने पर एकमत हैं.

उनका कहना है कि खालिस चुनावी फायदे के लिए आरएसएस / भाजपा द्वारा समाज को बांटने वाली राजनीति के बरक्स वे संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं.

इन तीनों नेताओं की ख्वाहिश है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का एक महागठबंधन हो.

चन्द्रशेखर आज़ाद रावण
भीम आर्मी के सह – संस्थापक


हम संविधान के रक्षक हैं. हम आने वाले चुनावों में 1992 के इतिहास को दोहराने नहीं देंगे. सांप्रदायिक विभाजन का भाजपा का अभियान लंबे समय तक नहीं चलनेवाला.

मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति को, चाहे वह मुसलमान, दलित या किसी अन्य समुदाय का हो, एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए. किसी को भी इतनी आज़ादी नहीं दी जानी चाहिए कि वो दंगा फैलाये.

जहां तक राममंदिर का सवाल है, सभी को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए.

वर्ष 2010 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उस जमीन पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों का भी दावा स्वीकार किया था. हिन्दू, मुसलमान और बौद्ध दावेदारों के सामने आने के कारण सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक ऐसा फैसला करना एक मुश्किल भरा काम होगा जिसके सहारे लोग आगे बढ़ सकें.

वहां एक मंदिर के बजाय एक विश्वविद्यालय की स्थापना की जा सकती है, जिसमें राष्ट्र को आगे ले जाने का प्रयास करने वाले विद्वान शामिल हों.

अपनी ओर से हम इस मसले पर लोगों को जागरूक करने के लिए पूरी तरह से प्रयासरत हैं.

मसलन, कुछ दिनों पहले योगी जी राजस्थान गये और वहां जाकर कहा कि हनुमानजी दलित थे. लेकिन इस संदर्भ में अगर हम इतिहास को खंगालें, तो कई परम हिन्दू श्रद्धालुओं के मुताबिक, हनुमानजी शिव शंकर के अवतार थे. तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि शिव का भी संबंध दलित समुदाय से था?

यह खालिस चुनावों में अपने हित में राजनीतिक लाभ उठाने का भाजपा का प्रयास है और अब लोग भी इसे समझते हैं.

अगर यही बयान विपक्ष के किसी नेता ने दिया होता, तो मीडिया में हंगामा मच गया होता. लेकिन चूंकि यह बयान सत्तारूढ़ दल के किसी सदस्य द्वारा दिया गया है, इसलिए इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी.

अभी कल ही इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को मार दिया गया.

मेरा सवाल यह है कि यह किस किस्म का माहौल तैयार किया जा रहा है? यह किस तरह की सरकार है? एक तरफ तो हम अपने देश की तुलना अमेरिका से करते हैं और दूसरी तरफ, यहां लोग मारे जा रहे हैं और जानवरों को बचाया जा रहा है.

भाजपा का मुख्य फोकस धर्म है. इंसानियत के आधार पर लोगों को यह समझने की जरुरत है कि इस किस्म के दंगों के शिकार लोग भी इंसान ही हैं. वे किसी के भाई, पति और पिता हैं. इससे देश का कुछ भी भला नहीं होने वाला.

हम लोगों को इस नजरिए का विरोध करने के लिए तैयार कर रहे हैं, और एक हदतक लोग तैयार भी हो रहे हैं. यह सरकार, एक खुदगर्ज सरकार है.

जहां तक किसानों का सवाल है – एक आदमी सड़क पर तभी उतरता है, जब उसके लिए मदद के सभी रास्ते तोड़ दिये जाते हैं, जब उसके जीवन को कोई मोल नहीं रह जाता. एक गरीब किसान यह जानता है कि उसे एक मोटरकार के नीचे रौंदा जा सकता है.

राजनीति को खुदगर्ज नहीं होना चाहिए. हम इस बात की पुरजोर कोशिश करेंगे कि इस बार लोग उनके चंगुल में न फंसें.

यह लोग ही हैं जो सरकार बनाते और वोट डालते हैं.

कोई भी धर्म आपस में मारकाट करना नहीं सिखाता. हमें यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि हम सब इंसान हैं.

भाजपा अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखेगी. हम मान्यवर कांशीराम के अनुयायी हैं. एक महागठबंधन तैयार किया जा रहा है और हम बाबासाहेब अम्बेडकर के सपनों को साकार करने का प्रयास करेंगे.

ऋचा सिंह
प्रवक्ता, समाजवादी पार्टी


भाजपा बाबरी मस्जिद मुद्दे का राजनीतिकरण करने का प्रयास कर रही है. वे आगामी चुनाव इसी आधार पर लड़ना चाहते हैं. इसके लिए वे लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का भी प्रयास कर रहे हैं.

हम सभी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उन्हें भी ऐसा ही करना चाहिए. इसके अलावा, हमें 2019 की राजनीति में एक आमूल बदलाव की जरुरत है.

हाल में वीएचपी द्वारा अयोध्या में एक रैली का आयोजन किया गया था. उनकी ओर से यह दावा किया गया था कि इसमें लगभग दो लाख लोग शामिल होंगे. लेकिन उनके लिए अचरज की बात यह थी कि उसमें महज मुट्ठीभर लोग ही शामिल हुए.

इसका अर्थ यह हुआ कि लोगों ने उनकी राजनीति को ख़ारिज कर दिया है. इसलिए मुझे भाजपा / आरएसएस का आंदोलन बढ़ता हुआ नहीं दिखाई देता. भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां सभी संविधान के अनुसार चलते हैं.

पिछले साढ़े चार सालों में बहुत कुछ हुआ है. लोग बेरोजगारी, महिलाओं की सुरक्षा और लिंचिंग आदि के बारे में बुनियादी सवाल उठा रहे हैं. यहां तक कि किसानों ने भी वर्तमान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया है.

जनता जुमलों में नहीं बहने वाली. लोग अब राममंदिर के निर्माण के बजाय मुद्दों पर अपना ध्यान ज्यादा केन्द्रित कर रहे हैं.

विपक्षी दलों का मुख्य एजेंडा लोकतंत्र और संविधान की बेहतरी के लिए संघर्ष करना है.

भाजपा / आरएसएस के लोग हमेशा धर्म की बात करते हैं और संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय में भरोसा नहीं करते हैं. उदहारण के तौर पर, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को धमकाया गया. यहां तक कि सीबीआई के निदेशक पर दबाव डाला गया. एक मजबूत इकाई बनने के लिए विपक्ष दल एकसाथ आये हैं.

यह विपक्ष का कर्तव्य है कि वह अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब मुहैया कराये.

जय किसान, जय जवान के नारे की वापसी होगी. किसानों एवं युवाओं की शक्ति मिलकर एक होगी.

भाजपा का मुख्य फोकस हिंदुत्व की राजनीति है. उन्होंने देश के विकास को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है. उनके द्वारा किसानों के फसलों के लिए कम कीमत का प्रस्ताव किया जाना इसका स्पष्ट उदहारण है.

जबसे उत्तर प्रदेश में भाजपा का शासन आया है, कोई भी परीक्षा सही तरीके से नहीं संचालित हुई है. अभी ही कुछ लोगों के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत करने वाली एक महिला को जिंदा जला दिया गया.

हम सरकार से जवाब चाहते हैं. लेकिन जब उन्होंने कोई काम ही नहीं किया, तो जवाब क्या देंगे?

राममंदिर का मुद्दा सिर्फ लोगों को बरगलाने के लिए उठाया जा रहा है. अगर वो संविधान और सर्वोच्च न्यायालय में भरोसा करते, तो राममंदिर पर कोई चर्चा ही नहीं हो रही होती.

इनलोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है, जिन्होंने कभी भी किसी चीज को नियंत्रित नहीं किया.

अगर सरकार मॉब लिंचिंग के मुद्दे को नियंत्रित नहीं कर सकती, तो हम उनसे 2019 में शासन करने की अपेक्षा कैसे करें? आखिर हमारे पास उम्मीद करने के लिए है ही क्या?

जिग्नेश मेवाणी

गुजरात के वडगाम क्षेत्र से निर्दलीय विधायक

आरएसएस हमेशा से बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के दिन को जश्न के एक दिन के रूप में तब्दील करने के फ़िराक में रहा है.

लंबे समय से दलित समुदाय के लोग आरएसएस / भाजपा के हाथो का खिलौना बनते रहे हैं और 6 दिसम्बर को जश्न मनाते रहे हैं क्योंकि आरएसएस इस समुदाय के एक वर्ग का भगवाकरण करने में सफल रहा.

वैश्वीकरण से उपजी असमानता की वजह से दलितों को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इसके कारण दलितों एवं अम्बेडकरवादियों के बीच जागरूकता बढ़ी है. लिहाजा, इस बार दलित समुदाय के लोगों को अपने पाले में लाना उनलोगों के लिए बहुत ही मुश्किल होगा.

भीमा कोरेगांव और भारत बंद जैसी घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि 2019 के चुनावों को लेकर भाजपा आशंकित है. आगामी चुनाव में उनके लिए राममंदिर के निर्माण को मुद्दा बनना बहुत ही मुश्किल होगा.

पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत के लोग ज्यादा भावुक होते हैं. तथ्य और आंकड़े हम पर असर नहीं छोड़ पाते. 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा और विभिन्न दलों के महागठबंधन के बीच लड़ा जायेगा.

भाजपा और आएसएस मंदिर – मस्जिद मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमें इसके बारे में सचेत रहना होगा और उन धर्मनिरपेक्ष मुद्दों को आगे लाना होगा, जोकि भावनात्मक भी हैं.

महागठबंधन में मुख्यधारा की विभिन्न संसदीय पार्टियां शामिल होंगी. इनके दृष्टिकोण और रवैये भले ही अलग हैं, लेकिन वे सब एकसाथ आयेंगे.

अपना अस्तित्व बचाने और संविधान में वर्णित आदर्शों एवं भारत की अवधारणा की रक्षा की खातिर वे एकसाथ आयेंगे.

विपक्षी पार्टियों पर दबाव है. मायावती पर दबाव बनाने और लालू को जेल भिजवाने में सीबीआई को लगाये जाने की अफवाहें जोरों पर है.

लिहाजा, मतभेद के बावजूद वे सब एकसाथ आयेंगे. उनका साझा एजेंडा और लक्ष्य होगा – भाजपा का खात्मा.

किसानों की आत्महत्या और बेरोजगारी बड़े मुद्दे होंगे और 2019 में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना होगा. गुजरात विधानसभा का चुनाव इसका स्पष्ट सबूत है.