3 जनवरी 2018 की सुबह हेड लाइन में उत्तर प्रदेश की एक बड़ी खबर आयी। इसमे योगी आदित्य नाथ के फैसले का महिमामंडन किया जा रहा था। इस फैसले में गायों को खुला छोड़ने वाले मालिकों की शिनाख्त कर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गये हैं जो एक अहम् फैसला है और जिसे अन्य राज्यों में भी सख्ती से लागू करना चाहिए। कुछ महीने पहले छत्तीसगढ़ की एक गौशाला में करीब 200 से ज्यादा गायों की मौत का मामला सामने आया जिसके संचालक भाजपा के एक नेता को बताया गया था। भाजपा नेता का नाम हरीश वर्मा है जो छत्तीसगढ़ के दुर्ग की जामुल नगर पालिका के उपाध्यक्ष के पद पर सुशोभित रहे हैं। हरीश वर्मा छत्तीसगढ़ में शगुन नामक गौशाला के संचालक रहे हैं जिन्हें संचालन के लिए छत्तीसगढ़ की रमन सरकार गौ सेवा आयोग से मोटा अनुदान मिलती थी ।

हद तो तब हो गयी जब देश-दुनिया में गौरक्षा का डंका पीटने वाले भाजपा के इस नेता ने मरी हुयी गायों को जेसीबी की सहायता से बड़े स्तर पर गड्ढे खुदवाकर उसमें दफना दिया था ताकि मामले को आसानी से रफा.दफा किया जा सके जिसकी पुष्टि स्थारनीय लोगों द्वारा की गयी थी। जब इस विषय में हरीश वर्मा से बातचीत की गई थी तब उन्होंने जानकारी दी थी कि उनकी गौशाला में करीब 600 से अधिक गायें आ गयीं हैं जबकि सरकार की तरफ से सिर्फ 220 गायों के चारा पानी की ही व्यवस्था की जाती है। हरीश वर्मा के कथनानुसार भूख की वजह से सिर्फ 27 गायों की ही मौत हुई थी जबकि गायों की मौत की संख्या 200 से 300 के बीच पायी गयी थी।

ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार गौ सेवा के प्रति काफी सजग है और इसके लिए उन्होंने एक गौसेवा आयोग भी बनाया हुआ है जिसके तहत जो भी लोग गौ सेवा के लिए गौशाला संचालन का आवेदन करते हैं उनके पास आधा एकड़ जमीन का होना अनिवार्य है जिसके पश्चात् उसे गौशाला के लिए स्वीकृति प्राय: दे दी जाती है। राज्य सरकार चारा.पानी और दवा की व्यवस्थाएं गौशाला में मुहैया कराती है और जिसके लिए गौशाला को अनुदान प्रदान किया जाता है।

ज्ञात तथ्यों के आधार पर हरीश वर्मा जिस गौशाला का संचालन करते हैं वहां प्रतिदिन के हिसाब से एक गाय की सेवा पर 25 रूपये का अनुदान मिलता है जिस हिसाब से 220 गायों के लिए पूरे साल का कुल अनुदान लगभग 20 लाख से भी ऊपर है। बीजेपी नेता के गौशाले में हुयी गायों की मौत ने सिर्फ प्रदेश को ही नहीं बल्कि पूरे देश को भी हिलाकर रख दिया था। किसी ने इस घटना और भाजपा नेता के खिलाफ मुंडन करवाया था तो किसी ने सरकार का घेराव कर अपने.अपने तरीके से प्रदर्शन किया। गायों की मौत की खबर से सियासी हलचल पैदा होना लाजिमी भी है।

गौशाला में मृत पायी गयी गायें तो राष्ट्रीय खबर बन गयी और इस पर सियासत भी खूब हुयी लेकिन आये दिन यहां की सड़कों पर मृत पायी जाने वाली गायों को लगातार नज़रअंदाज किया जाता है। गौरक्षा के ठेकेदार इस बात को भूल गये हैं कि गायों की हत्या सिर्फ गौशाला तक ही सीमित नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ की सड़कों पर भी गायें बड़ी संख्या में मृत अवस्था में दिख जाती हैं। बिलासपुर की रहवासी होने के नाते तो यह मेरी आंखों देखी बात हो गयी है। जिस तरीके से बिलासपुर की सड़कों पर यहां के रहवासियों द्वारा गायों को खुला छोड़ दिया जाता है वह निश्चित ही गायों और इंसानों दोनों के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।

भारत में गाय कहीं आस्था का प्रतीक है तो कहीं राष्ट्री य पहचान। ऐसे में भारत की राजनीति में गाय एक एजेंडे की तरह भी इस्तेमाल होती आयी है। गौ हत्या हो या गौ रक्षकों का उत्पातए गाय का मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक और न्यूज़ चैनलों में महत्वैपूर्ण मुद्दे के रूप में उठाया जाता रहा है। लेकिन किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि देश में गायों के वास्तविक हालात क्या है। एक रिसर्च के मुताबिक हर साल करीब 1000 से ज्यादा गायें सड़कों पर पड़े प्लास्टिक और कूड़ा खाने से मर जाती हैं। इसके अलावा सड़क दुर्घटना में मरने वाली गायों की संख्या अलग है।

प्रतिदिन अपने घर से कार्यालय आते.जाते समय मैं देखती हूँ कि सड़कों पर बड़ी संख्या में गायों को खुला छोड़ दिया जाता है जो आती.जाती वाहनों के चपेट में आकर दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं। सड़कों पर अव्यवस्था इतनी बनी हुयी है कि उसके कारण इंसानों के हाथों जाने.अनजाने एक तरफ तो गायें मौत का शिकार हो रही हैं तो वहीं दूसरी ओर इंसानों को भी ऐसी दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ रहा है। रात के अंधेरे में भी ये गायें इधर.उधर अपने चारे की तलाश में या फिर आश्रय लेने के लिहाज से बड़े.बड़े ट्रकों की चपेट में आ जाती हैंए जिसके कारण आये दिन गायों की लाशें और उनके खून से रंगी सड़कें आपको बहुत ही आसानी से देखने को मिल जायेगी। लेकिन इन हत्याओं को लेकर गौरक्षा के ठेकेदारों को कभी भी सामने आते नहीं देखा गया।

बेमौत मरती गायें और इन गायों को बचाने की चक्केर में इंसानों की मौत का यह सिलसिला दिन.ब.दिन बढ़ता ही जा रहा है। जो लोग गायों को अपनी आजीविका का साधन मानते हैं उनसे बातचीत के दौरान जब मैंने पूछा कि आप लोग इन गायों को इतने व्यस्त मार्ग पर ऐसे खुला क्यों छोड़ देते हैं तब उनका कहना था कि मैडम हमलोग बड़ी ही मुश्किल से अपने भोजन.पानी की व्यवस्था कर पाते हैं ऐसी स्थिति में हम इन गायों का खर्च कहां से उठा पायेंगे। पिछले कई सालों से प्रदेश में निरंतर पड़ रहे सूखे के कारण हम इनके चारे की उचित व्यचवस्था नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए इन्हें सड़कों पर खुला छोड़ देते हैं ता‍कि इधर.उधर घूमकर ये अपना पेट भर सकें और हम इन गायों से मिलने वाले दूध कंडा खाद आदि चीजों का इस्तेमाल कर सकें। बाकी मरना. मारना तो ऊपर वाले के हाथ में है।धान का कटोरा कहे जाने वाले इस प्रदेश के लगभग 96 तहसील को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है जो निश्चय ही गंभीर चिंता का विषय है। लेकिन इन परिस्थितियों का सामना बेजुबान जानवरों को करना पड़े तो यह समाज के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर देती है। जानवरों के ऐसे ही कुछ मुद्दे सीकर के किसान आंदोलन में भी उठाया गया था।

वैसे लोग जो गायों को आस्था का प्रतीक और माता का दर्जा देते हैं उनलोगों के लिए यह नैतिक जिम्मे दारी है कि एक अखलाक को गोमांस खाने के लिए मारने के बजाय गौरक्षा के लिए उचित पहल करें और इस नारकीय जीवन से अपनी माँ की रक्षा करें।

परंतु यहां दृश्य कुछ और ही नजर आता है। ऐसे ठेकेदारों के द्वारा एक चिंतनीय विषय को जिस तरीके से नज़रअंदाज किया जा रहा है वे इस बात पर चिंता करने को विवश कर देता है कि क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में गायें सिर्फ वोट बैंक बन गयी हैं या फिर दंगा.फसाद और निर्दोष हत्यायें करवाने का हथियार। अगर ऐसा नहीं होता तो अखलाक को मारने वाले लोग अथवा गौरक्षा के ठेकेदार निर्दोष गायें जो सड़कों पर नित्य दिन मर रही हैं या भूख का शिकार हो रही हैं उनकी रक्षा के लिए सामने क्यों नहीं आते। न जाने देश में गौरक्षा के ठेकेदारों ने गोमांस खाने के नाम पर कितने अखलाक को बेमौत मार डाला। एक गाय की मौत पर पूरे देश की सियासत गरमा जाती है। आधा से ज्या दा देश सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए मोर्चा खोल देती है। अगर कोई गोमांस के साथ पकड़ा जाये तो उसके साथ गौरक्षा के ठेकेदार जानवरों से भी बद्तर रवैया अपनाते हैं या फिर उन्हें मौत के घाट ही उतार देते हैं। लेकिन यही ठेकेदार सड़कों पर बेमौत मरने वाली गायों से बेखबर हैं। इनकी रक्षा करने की परवाह न तो सरकार कर रही है और ना ही गायों को अपने जीविका और भगवान मानने वाले आमजन और ना हीं आस्था का प्रतीक बताने वाले माता का दर्जा देने वाले गौरक्षा के ठेकेदार।