अगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के केरल के प्रदेश नेतृत्व की माने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात लौट जाना चाहिए और वहां उन्हें चाय बेचने के अपने पुराने पेशे को फिर से शुरू कर देना चाहिए.

भाजपा की केरल इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की आलोचना करते हुए इसी अजीबोग़रीब का तर्क का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री विजयन को अपना पद छोड़ देना चाहिए और ताड़ी निकालने के अपने जातिगत पेशे की ओर लौट जाना चाहिए. भाजपा के आधिकारिक अखबार ने भी इसी आशय का एक कार्टून प्रकाशित किया. पिनराई द्वारा सबरीमाला आंदोलन को सख्ती के साथ – साथ चतुराई से निपट लिये जाने की वजह से भाजपा बुरी तरह से खीझी हुई है.

पिनराई की जातिगत पृष्ठभूमि को उठाकर और एझवा एवं ठिय्या जाति के लोगों को सिर्फ ताड़ी निकालने लायक मानकर भाजपा ने अपने जातिगत पूर्वाग्रह को जाहिर कर खुद को ऊंची जातियों की पार्टी साबित कर दिया है. यह एझवा एवं ठिय्या जाति के लोगों को असलियत की याद दिलाने जैसा है. इन जातियों के लोगों को बैठकर ठंडे दिमाग से यह सोचना चाहिए कि वे एक ऐसे पार्टी के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़कर एक ऐतिहासिक भूल करेंगे, जो दकियानूसी विचारों एवं चातुर्वर्ण के सामाजिक पूर्वाग्रहों में इस कदर गहरे धंसी है.

निश्चित रूप से केरल में भाजपा का नेतृत्व करने वाले नेताओं की यह सबसे बड़ी बेवकूफी है, जो उन्होंने केरल की उस जाति का खुलेआम उपहास किया जिसका राज्य की कुल आबादी में 28 प्रतिशत हिस्सा है. बेशक उन्हें इस हेकड़ी की कीमत चुकानी पड़ेगी. राज्य में भाजपा के नायर नेतृत्व ने खुद को जंजीरों में जकड़ लिया है.

उपरोक्त पृष्ठभूमि में, मंगलवार को एक टीवी साक्षात्कार में सबरीमाला आंदोलन पर प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी दोहरे वक्तव्य का एक शास्त्रीय नमूना बन गई है. प्रधानमंत्री के तौर पर किसी भी मसले पर इंटेलिजेंस ब्यूरो से सूचना हासिल करने का हक़दार होने के बावजूद श्री मोदी का केरल के घटनाक्रमों को लेकर असमंजस मे रहने का कोई कारण नहीं है. (खबरों के मुताबिक, वे जनवरी में दो बार केरल जाने की योजना बना रहे हैं.) फिर भी, उन्हें लगता है कि सबरीमाला मुद्दा "मान्यताओं” से जुड़ा एक आध्यात्मिक संघर्ष है.

यहां मुझे इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के अंशों को फिर से उद्धृत करने दीजिए : “एएनआई को दिये गये अपने साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि सबरीमाला मुद्दे पर वे भाजपा के इस आधिकारिक नजरिए का समर्थन करते हैं कि महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए.....श्री मोदी ने कहा, “ भारत में हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. हर मंदिर का अपना एक रिवाज और प्रथा होती है. भारत में कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है. (सर्वोच्च न्यायालय में) एक महिला न्यायधीश द्वारा दिए गये फैसले को ध्यान से पढ़ना चाहिए. इस मसले को किसी राजनीतिक दल से जोड़ना उचित नहीं. उस महिला जज ने इस मामले को एक महिला की नजर से देखने के बाद यह फैसला दिया है. इस पर भी एक बहस होना चाहिए.”

साफ़ शब्दों में अगर कहा जाये, तो श्री मोदी गोलमोल कर रहे हैं. और, संवैधानिक शासन का संरक्षक होने के नाते जब प्रधानमंत्री राज्य बनाम धर्म के एक अहम मसले में गोलमोल करने लगे, तो वह या तो डरपोक है या फिर अतिरिक्त चालाकी बरत रहा है. इस मामले में यह तय करना मुश्किल है क्योंकि श्री मोदी की अपनी ही पार्टी के एक सांसद एवं प्रमुख दलित नेता, उदित राज, ने भाजपा के सबरीमला आंदोलन के संदर्भ में कहा है:

“सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों होना चाहिए? भगवान की नजर में स्त्री और पुरुष, दोनों एक समान हैं. ईश्वर किसी एक खास स्थान पर नहीं रहता. वह सर्वव्यापी है और महिलाएं हर कहीं हैं. इसलिए क्या भगवान का उनसे दूर रहना असंभव नहीं है?” श्री राज ने आगे जोड़ा : “पुरुषों का जन्म स्त्रियों से हुआ है. अगर महिलाएं अशुद्ध हैं, तो पुरुष कैसे शुद्ध हो सकते हैं?”

प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर श्री राज ने कहा, “परम्पराएं अगर गलत हैं, तो उन्हें तोड़ दिया जाना चाहिए. क्या हमने बाल – विवाह, सती प्रथा और केरल में वक्ष ढकने पर लगने वाले कर का विरोध और उन्हें ख़त्म नहीं किया? अगर परम्पराएं बेकार हो चली हों, तो उनका अंत हो जाना चाहिए.” श्री राज ने कहा कि आल इंडिया कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ एससी /एसटी आर्गेनाईजेशन्स के चेयरमैन के तौर पर वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के पालन के खिलाफ चलाये जाने वाले प्रयासों का विरोध करेंगे. उन्होंने कहा, “अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अम्बेडकरवादी समुदाय के अधिकांश लोगों ने न्यायालय के फैसले का समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने इसका स्वागत किया है.”

श्री राज ने पूछा, “जब ईश्वर के सामने सब बराबर हैं, तो आप लिंग एवं जाति के नाम पर भेदभाव कैसे कर सकते हैं?” उन्होंने आगे कहा, “इस किस्म के प्रतिबंध ब्राह्मणवादी वर्चस्व का नतीजा हैं.”

निश्चित रूप से, श्री राज एक बुद्धिजीवी हैं और 21वीं सदी से ताल्लुक रखते हैं. वे एक स्पष्ट दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हैं और गोलमोल करने का उनका कोई इरादा नहीं रहता. वे हिंदुत्व की उपज नहीं हैं और न ही उन्हें हिन्दू कट्टरपंथियों के संरक्षण में तैयार किया गया है. लिहाज़ा, सबरीमाला आंदोलन की इस असलियत को समझने ने उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई कि इस पूरी कवायद का मकसद केरल के सामाजिक सुधार आंदोलन को पीछे धकेलना है और समाज का एक बार फिर से “संस्कृतिकरण” करना है.

अब इस मामले में, श्री राज अपवाद नहीं हैं. मोदी मंत्रीमंडल के एक दलित मंत्री, रामविलास पासवान, ने कल नयी दिल्ली में कहा, “महिलाएं अन्तरिक्ष तक में जा चुकी हैं. तो फिर कैसे वे मंदिर में नहीं जा सकतीं?” बुधवार को दो महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश करने में आख़िरकार सफल रहने पर श्री पासवान ने सकारात्मक रुख दिखाया.