हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी के लिए मुसलमानों के ज़रिये चलाये गये मूवमेंट और मुस्लिम मुजाहिदीन पर लिखी गयी किताब ‘लहू बोलता भी है : जंगे-आज़ादी-ए-हिन्द के मुस्लिम किरदार’ का अपने-आप में एक ऐतिहासिक महत्व है. न सिर्फ हिन्दी बल्कि दुनिया की किसी भी भाषा में लिखी गयी यह पहली किताब है, जिसमें हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी में मुसलमानों के योगदान पर इतने विस्तार से रोशनी डाली गयी है. कुल 560 पेजों की इस किताब (हिन्दी-संस्करण) में पहली बार तमाम मुस्लिम मुजाहिदीन सहित कुल 1233 शख्सियात के तफ़सीलात दर्ज़ किये गये. इतना ही नहीं, बल्कि इतिहास की यह किताब अपने ही विषय (हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी के इतिहास) की उन आम किताबों से भी इस मायने में बिलकुल अलग है जिन्हें उनकी उलझबयानी के चलते समझ सकना तो दूर, पढ़ पाना भी अकसर दूभर हो जाता है. इस किताब ने पहली बार हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ की गयी जद्दोजहद के हर अहम वाक़िये को बहुत ही कम अलफ़ाज़ में सबको आसानी से समझ में आने लायक अंदाज़ में पेश किया है और वह भी पूरी प्रामाणिकता के साथ.इतिहासकारों, अदीबों और दीगर बुद्धिजीवियों ने इसकी खुलकर तारीफ़ की..

वरिष्ठ समाजवादी चिन्तक-रहनुमा सैय्यद शाहनवाज़ अहमद क़ादरी और वरिष्ठ फिल्मकार-लेखक कृष्ण कल्कि की इस आला-दर्ज़ा किताब का हिन्दी में लिखा होना इसकी सीमा भी रही है. हिन्दी में होने की वजह से इस किताब को व्यापक पाठक-वर्ग तो मिला, लेकिन बहुतेरे पाठकों की ऐसी जमातों तक पहुँचने से यह महरूम भी रह गयी, जो अपने व अपनी आनेवाली नस्लों के लिए इस किताब को ज़रूरी तो मानते हैं और इसे पढ़ना भी चाहते है, मगर हिन्दी भाषा व लिपि न जानने की वजह से मन मसोसकर रह जाते हैं. ऐतिहासिक महत्व की इस किताब में बयाँ सच को उन लोगों तक भी पहुँचाने की गरज़ से इसकी प्रकाशन-संस्था (लोकबंधु राजनारायण के लोग) ने इसे उर्दू में भी प्रकाशित करने का फैसला किया. लेकिन इस दौरान तय यह भी किया गया कि इस किताब का उर्दू-एडिशन इसके हिन्दी-संस्करण का महज़ तर्जुमा भर न रह जाये, बल्कि लगे हाथ उसमें हर लिहाज़ से इजाफा ही किया जाये. लिहाज़ा, इस किताब के हिन्दी-संस्करण में कुल पेज जहाँ 560 हैं, वहीं इसके उर्दू-एडिशन में पेजों की तादाद अब बढ़कर 628 हो गयी है. हिन्दुस्तान की जंगे-आज़ादी में शरीक कुल 1233 शख्सियात के तफ़सीलात को इसके हिन्दी-संस्करण में जगह मिली थी, जबकि ऐसे शख्सियात की तादाद भी उर्दू-एडिशन में बढ़ाकर 1768 कर दी गयी है-- इसके अलावा इसमें 113 मुस्लिम मुजाहिदीन की तसवीरें भी शामिल हैं.

दूसरी पुस्तक 'भारत-विभाजन विरोधी मुसलमान:

'भारत-विभाजन विरोधी मुसलमान जाने माने इतिहासकार प्रो. शम्सुल इस्लाम ने लिखी है। यह देश-प्रेमी मुसलमानों कीअनकही दास्तान' है। यह पुस्तक अंग्रेज़ी में भी Muslims Against Partition of India: The Untold Story of Patriotic Muslims शीर्षक से उपलब्ध हैI

ये दोनों पुस्तकें समकालीन भारतीय राजनीति को समझने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। ये किताबें बताती है कि भारत के वजूद के लिए धर्म निरपेक्ष के सिद्दांत का क्या महत्व है।