अगर एक औरत समझदार है तो वो सबसे ज्यादा खतरनाक है, जो महिला अपने हक के लिए लड़ना जानती है उसे सत्ता बिलकुल बर्दाशत नही करती,” पिछले हफ्ते दिल्ली में आयोजित एक जनसुनवाई में ये बातें कश्मीर की सामाजिक कार्यकर्ता अंजुम ने कही। अंजुम कश्मीर में मानवाधिकारों के लिये सक्रिय रही हैं और उन्होंने तिहाड़ जेल में पांच साल बिताए है।

जेल में बंद महिला कैदियों के मुद्दे पर आयोजित इस जनसुनवाई में देशभर के जन आंदोलन में सक्रिय महिला कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।

भारत में अधिकांश महिला कैदी या तो आदिवासी है या दलित या फिर हाशिए के समुदायों से आती हैं। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ापन उन्हें कमजोर बनाता है जिसके कारण वो खुद का कानूनी और आर्थिक रूप से बचाव करने में असमर्थ होती हैं।

पिछले 15 वर्षों में भारत की जेलों में महिला कैदियों की संख्या में 61% वृद्धि देखी गई है। फिर भी वे राष्ट्रीय जेल की आबादी का केवल 4.3%हिस्सा हैं, इसलिए उनके साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार के बारे में अक्सर किसी को चिंता नहीं होती है।

भारत की जेलों में महिलाएँ हिरासत में यातना, बलात्कार झेलती है, साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहती हैं। जनसुनवाई में शामिल महिलाओ के अनुसार राज्य की जेल अक्सर कैदियों के अधिकारों का सम्मान करने में विफल रहती हैं।

छत्तीसगढ़ से लेकर उडिसा तक, पुरे देश में आंदोलन में सक्रिय महिलाओं पर पुलिसिया आत्याचार

छत्तीसगढ़ से आयी सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि कैसे जेलों में महिलाओं के साथ यौन हिंसा और भेदभाव किया जाता है। सोनी सोरी भी कई सालों तक जेल में रहीं और उनपर कई तरह की यौन हिंसा भी की गयी। फिलहाल वे छत्तीसगढ़ में मानव अधिकारों के आंदोलन में सक्रिय हैं।

सोनी सोरी ने कहा, “राज्य के अधिकारियों द्वारा अमानवीय व्यवहार के कारण कई कैदी नक्सली बन गए”

जनसुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी कि कैसे देश भर की जेलो में महिलाओ को खाने, पीने, कपड़े और सेनैट्री नैपकिन जैसी मूलभूत वस्तुओ की भारी कमी झेलनी पड़ती है।

मनोरमा उड़ीसा की रहने वाली एक प्राईमरी स्कूल टीचर है जो पोस्को प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन में लगातार सक्रीय रही हैं। उनपर उड़ीसा सरकार ने लगभग 52 केस लगाए हैं और एक मर्डर केस भी जिसपर आज तक कोई सुनवाई ही नही हुई। वो बताती हैं कि पुलिस उन्हें कभी भी, कहीं भी गिरफतार कर जेल मे डाल देती है।

हराबाती गोंडो उड़ीसा की रहने वाली एक सामाजिक कार्यकर्ता है, जिनपर अभी तक 7 केस दर्ज हैं। साल 2001 से 2019 तक वो 7 बार जेल जा चुकी है। वो बताती है कि पहली बार उन्हें 2 महीने जेल में रखा गया और उन्हें उनका जुर्म भी नही बताया गया।

किसमतिया एक आदिवासी महिला हैं जिन्हें मंजू बना कर जेल में डाल दिया गया। वो इस कानूनी लड़ाई में हर बार साबित करती रही, कि वो कोई मंजू नही है पर फिर भी उन्हें जेल में रखा गया। सारे सरकारी कागजात दिखाने के बावजूद भी उन्हें तीन महीने तक जेल में रखा गया, और उन्हे हर तरीके से मंजू बनाने की भी कोशिश की गयी। साथ ही उनकी कोई आपराधिक इतिहास ना होने पर भी बार बार उनकी ‘क्रिमिनल हिस्ट्री’ की जांच करने की बात को लेकर उनके केस को टाला जाता रहा।

वे कहती हैं "आदिवासी समाज की महिला जो अपने जंगल-जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रही है, उसके खिलाफ ये एक सोची समझी साजिश है"।

तमिलनाडू में भी आंदोलन में शामिल महिलाओं को झूठे केस में फंसाया गया

जेवियर अम्मा कुडमकुलम के न्यूकीलर प्रोजेक्ट के खिलाफ तमिलनाडु मे सक्रिय रही। लगभग 24 सालों से वो इस लड़ाई में शामिल हैं। वे कहती हैं, “ हमारी लड़ाई एक या दो दिन की नही है बल्कि सालों की है। हमारी लड़ाई हमारे जल जंगल और जमीन की है हम पढ़े लिखे नही है पर अपने हक जानते हैं और इस वजह से पुलिस उन्हें झूठे मुकदमे में फंसाती है”।

जनसुनवाई मे वो लोगों से पूछती है कि ‘अगर आपके घर के पास कोई न्यूकीलर प्रोजेक्ट लगा दिया जाता है तो आप क्या करेंगे ? क्या आप चुप रहेंगे?’

वो बताती हैं कि जब उनसे ये जमीन ली तो उन्हें नहीं बताया कि ये जमीन ऑटोमिक प्लांट के लिए ली गई है। बाद में उन्हें पता चलता है कि वो जमीन उनसे ऑटोमिक प्लांट के लिए ली गई है, जिसके पता चलते ही उन्होंने ये लड़ाई शुरू की और आज उनपर 100 से ज्यादा केस दर्ज है।

अपने परमाणु प्लांट के खिलाफ आंदोलन के बारे में बताते हुए जेवियर अम्मा कहती हैं “हमारा ये आंदोलन अंहिसक रहा है पर हमपर इलजाम लगाया जाता है कि हमने पुलिस वाले को किडनैफ किया जबकि ऐसा कुछ नही हुआ”।

भारत में महिला कैदियों की स्थिति में तत्काल बदलाव की आवश्यकता है क्योंकि यह बेहद खराब है। हमारे संविधान द्वारा सभी को दिए गए कानूनी प्रावधानों और मौलिक अधिकारों के बावजूद, ये बंदनियाँ (कैदी) दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।