भाजपा सरकार का चुनाव पूर्व का बजट ऐसे समय में प्रस्तुत किया गया है, जब देश में किसान सबसे अधिक आंदोलित हैं.उन्होंने शासकीय पार्टियों की नीतियों के विरोध में बड़े - बड़े प्रदर्शन और जुलूस निकालकर अपना रवैया साफ कर दिया है. उन्होंने यह नोटिस दे दिया है किवे अब और अधिक शोषण बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं.

देश में संगठित मजदूरों की संख्या लगातार घटती जा रही है. हर कारखाने में पक्का मजदूर कम हो रहा है और ठेकेदारी मजदूरों की तादाद बढ़ रही है . ऐसी दशा में यह एक ऐसा विशाल तबका है, जिसके बारे में कोई भी सरकार हो उसे कोई न कोई निर्णय लेना ही है .

नई उदारवादी व्यवस्था में पूंजीवादी शोषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है. जनता की क्रय - शक्ति घटती जा रही है जिससे उनमें बैचैनी बढ़ रही है और पूंजीपति वर्गों को अपना माल बेचने में भी कठिनाई हो रही है. ऐसी दशा में सरकार कोई भी हो,वह कोई ऐसा तरीका अवश्य निकालेगी जिससे इस स्थिति में परिवर्तन आ सके.

बजट में यह घोषणा की गई है कि प्रत्येक छोटे और सीमान्त किसान को प्रति वर्ष 6000 रुपये दिए जायेंगे, जो सीधे उसके खाते में जमा हो जायेंगे. मतलब2 हेक्टयर के नीचे के किसान को 500रूपये प्रति माह अथवा 17 रुपये प्रति दिन दिये जायेंगे. इसका वह क्या उपयोग कर सकेगा, यह कहना मुश्किल है.इसे तीन किश्तों में दिया जायगा और पहली किश्त इसी वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल से पहले ही दे दिया जायगा. स्पष्ट है कि सरकार की यह इच्छा है कि इसका वोट पर सकारात्मक असर पड़े.देखना है कि ऐसा कोई असर होगा भी या नहीं. इस लेखक के गाँव में इस बारे में पूछने पर यह जवाब आया कि क्या यह एक साल का है या एक नहीने का; और दूसराकि बिना भूमि के किसान के लिये भी इसमें कुछ है? दूसरे सवाल का जवाब तो नहीं है . वैसे यह कहा जा सकता है कि सरकार ने मनरेगा में आवंटन बढ़ा दिया है. लेकिन इसके बारे में यह शिकायत रही है किसरकार ठीक समय पर पैसा भेजती नहीं है जिससे समुचित लाभ नहीं हो पाता है. जो हो, यह कृषि संकट को देखते हुए यह राशि बहुत कम है. इस मद में सम्पूर्ण वर्ष में 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं.

कांग्रेस के राहुल गाँधी ने कुछ समय पूर्व यह घोषणा की थी कि यदि वे सता मैं आयेंगे, तो सभी के लिए एक न्यूनतम बुनियादी आय की घोषणा करेंगे ताकि इतनी राशि हरेक के खाते में डाली जा सके. कांग्रेस ने बजट के बाद दावा किया है कि उनकी स्कीम भाजपा के द्वारा बजट में दी गई योजना से बेहतर है. संभव है कि ऐसा हो. लेकिन एक बात यह साफ हो गई है कि ये दोनों पार्टियां इस बात को स्वीकार कर रही हैं कि उनके पास ऐसी कोई सोच नहीं है जिससे किसान को लाभ किसानी से ही दिलवाया जा सके. वे इसके लिए तैयार नहीं है कि उद्योग और कृषि में व्यापार की शर्तों में कोई बदलाव हो. यानी किसान सदा के लिये उनके द्वारा दी गई पैसे पर निर्भर रहे. इस प्रकार से किसान को परजीवी बनाया जा रहा है. और वह भी इसलिए कि उद्योगपतियों को कोई तकलीफ न हो. उनके उत्पाद ऊंचे दामों पर बिकते रहें औरकिसान के उत्पाद नीचे दामों, पर ताकि महंगाई न बढे और महंगाई भत्ते को बढ़ा कर न देना पड़े. जिससे पूंजीपतियों और उनकी सरकार को दोनों को ही कोई तकलीफ न हो . यह 75,000 करोड़ रुपये वास्तव में जनता के अन्य कामों में खर्चा किया जा सकते थे. लेकिन इसे किसानों पर इसलिए खर्चा किया जा रह है ताकि उद्योग पर कोई दबाव नहीं आये और उनके मुनाफे या लाभदायिकता पर कोई असर नहीं पड़े.

इस प्रकार,यह इस व्यवस्था की स्वीकारोक्ति है कि किसानी समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेगी.

और कोई समय होता तो उद्योग के प्रतिनिधि और उस के सिद्धांतकार इस पैसे को बर्बाद करने के लिएसरकार की भर्त्सना करते क्योंकि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था में इसे बर्बादी ही माना जाता.वे इसे लोक लुभावन नीति बताते . लेकिनसमय की इस नजाकत को देखते हुएकि मोदी सरकार फिलहाल संकट में हैऔर इस समय किसानों को किसी तरह शांत करना है, इसलिएसमस्त उद्योग संघों ने उनको अपना भरपूर समर्थन दिया है.

एक दूसरा बड़ा प्रावधान है - 5 लाख रुपये तक की आय पर अब को कोई आयकर नहीं देना होगा. वित्त मंत्री ने अपने बयान में यह भी कहा है कि यदि आप सही तरीके से निवेश करें तो 6.50 लाख रूपये तक आमदनी वाले लोगो को भी आयकर नहीं देना होगा.एक अनुमान के अनुसार प्रति व्यक्ति 12,500 रुपये का लाभ होगा. खैर जो हो, इस नीति से बजट ने कई लक्ष्य प्राप्त कर लिये हैं. मध्यम वर्ग की यह मांग बहुत दिनों से थी, जो आम तौर परभाजपा और नरेन्द्र मोदी के ख़ास तौर पर प्रमुख समर्थक रहे हैं.लिहाजा इस वर्ग को समर्थन देना ज़रूरी था. इस वर्ग की क्रय -शक्ति पर बहुत से उत्पादों के बाज़ार निर्भर करते हैं. मसलन, उपभोक्ता उत्पाद औरऑटो उद्योग इत्यादि.इन सभी के शेयर इस घोषणा के बाद शेयर बाज़ार में बढे. यह एक ऐसा कदम था जिससे इस वर्ग,उद्योगों, भाजपा और इसकेसमर्थक वर्ग, तीनों को लाभ हुआ है.

एक अन्य प्रावधान जो देखने में वर्तमान के फुटकर मजदूर के लाभ के लिए है वह है पेंशन योजना. दो प्रकार की योजनायें हैं. एक में 55 रुपये प्रति माह 18 वर्ष की आयु में शुरू करने पर , और दूसरे में 100 रुपये प्रति माह , 29 वर्ष कीआयु में शुरू करने पर समस्त कार्यकारी जीवन में देने होंगे और 60 वर्षों के बाद इस प्रकार के सदस्य पेंशन योजना के अधिकारी होंगे और उन्हें 3000 रुपये मासिक मिलेंगे. इन प्रस्तावित पेंशन योजना का विस्तृत विवरण अभी सामने नही है और यह अभी पता नहीं है कि इस रूप में मजदूरोंको इस योजना का क्या लाभ होगा? जिस प्रकार की अस्थिरता उनके जीवन मैं है और जिस प्रकार से उन्हें रोज़गार बार - बार बदलने की संभावना रहती है, उसके कारण उनके द्वारा निरंतर अपनी किश्त जमा कर पाने की संभावना बहुत कम है. और 18 वर्ष में शुरू करके उसे 32 साल के बाद मात्र 3000 रुपये की पेंशन मिलेगी ! ऐसे में कितने मजदूर इस पेंशन का लाभ उठा सकेंगे ? इसका लाभ पेशन संगठन को ज़रूर होगा. मजदूरों को कितना होगा, इसमें संदेह है.

बजट में कई ऐसे कदम उठाये गए हैं जो खानाबदोश जनजातियों, जिनकी संख्या 10 करोड़ है, के उठान के लिए एक विकास बोर्ड गठित किया जायगा. इत्यादि.

उद्योगपतियों ने एकस्वर से इन योजनाओं और बजट का स्वागत किया है. एक भी ऐसी आवाज़ नहीं उठने पायी है, जो इसका आसान सी भी आलोचना करे. यद्यपि इस बजट में उद्योग के लिए कोई नयी छूट इत्यादि नहीं है और ना ही उन पर कोई नया भार ही डाला गया है लेकिन वे इस बजट से संतुष्ट हैं. पहला तो यह जो निर्धारित मानदंड है अर्थात वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पादका कितना प्रतिशत होना चाहिए उससे यह बजट केवल 0.1 प्रतिशत ही अधिक है. बजट ने सीमा तोड़ कर मुफ्त में लोगो की जेब में ज़रूरत से ज्यादा पैसा नहीं डाला है ,यह पूंजीपति वर्गों के लिए काफी सुकून का कारण बना है. गोदरेज उद्योग के नज़ीर गोदरेज ने कहा है कि वित्त मंत्री ने बजट में मध्यम वर्गीय आवास स्वामियों और किसानों को राहत दी है. इस राहत से इन वर्गों को लाभ होगा और उसके साथ ही आवास उद्योग, कृषि और पशुपालन को बढ़ावा मिलेगा. वेदान्त उद्योग के अनिलअगवाल ने कहा कि मोदी सरकार को बधाई मिलनी चाहिए किउन्होंने विकासोन्मुख और वित्तीय तौर पर बुद्धिमानी वाला बजट प्रस्तुत किया है जिससे राजकोष पर वित्तीय दबाव नहीं आया है.आगे वे अतिप्रशंसा के भाव से कहते हैं कि यह एक ऐसा बजट है जिसने ना केवल फौरी मदद दी है बल्कि अगले दस वर्षों का एक परिपेक्ष्य भी दिया है.

इस प्रकार, आगामी चुनाव के नज़रिए से देखें तो यह साफ है कि इस देश का उद्योगपति वर्ग, कम से कम शीर्षस्थ वाला, इस सरकार और इस नेता के साथ खड़ा है. बाकी वर्गों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.

मोदी सरकार ने एक बारफिर यह दर्शा दिया है कि वह किसी भी प्रकार की प्रथाओं, नियमों का पालान करना ज़रूरी नहीं समझती है. उसने अन्तरिम बजट ना देकर सालना बजट दे दिया है. इसप्रकार की प्रवृति उसने बार बार दर्शायी है.लेकिन इसके बारे उद्योग संघ मौन है . वे इसे किसी भी प्रकारकी खतरे की घंटी के रूप में नहीं देखते हैं.