पंजाब के लोग उन कश्मीरी छात्रों की मदद के लिए आगे आये जिन्हें पुलवामा हमले के बाद उत्तराखंड एवं हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा निशाना बनाया जा रहा था. पुलवामा हमले में केन्द्रीय रिज़र्व सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के 40 से अधिक जवान मारे गये थे.

पंजाब के लोगों ने परेशान छात्रों के लिए न सिर्फ रहने – खाने की व्यवस्था की बल्कि प्रशासन के साथ समन्वय करके उन्हें जम्मू और कश्मीर स्थित अपने घर सुरक्षित लौटने के लिए परिवहन के साधन भी उपलब्ध कराये.

पंजाब में आम जनभावना दक्षिणपंथियों द्वारा कश्मीरियों को निशाना बनाकर मचाये जा रहे हुडदंग के खिलाफ है. लोगों में यह अहसास बढ़ता जा रहा है कि ये सब आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर और असली मुद्दों से ध्यान बंटाने के लिए किया जा रहा है.

खालसा ऐड व अन्य सामाजिक संगठनों ने इन परेशान छात्रों की मदद के लिए जम्मू कश्मीर स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन (जेकेएसओ) के साथ हाथ मिलाया है. जरूरतमंद लोगो, चाहे वे सीरिया में रहे हों या बांग्लादेश या फिर किसी अन्य देश में, की मदद को लेकर खालसा ऐड हाल के दिनों में दुनियाभर में सुर्ख़ियों में रहा है.

मंगलवार तक वे (खालसा ऐड) तकरीबन 700 बच्चों को जम्मू तक सकुशल पहुंचाने में सफल रहे, जहां से उनकी आगे की यात्रा एवं अन्य व्यवस्थाओं का जिम्मा स्थानीय प्रशासन ने अपने ऊपर ले लिया और यह उनके मुख्तलिफ जिले एवं गांवों में पहुंचने तक जारी रखा जायेगा. इन बच्चों में से अधिकांश देहरादून से लौट रहे थे, जो इन दिनों भीड़ द्वारा कट्टरता या सिखाये हुए देशभक्ति और राष्ट्रवाद के प्रदर्शन का केंद्र बना हुआ है.

श्रीनगर से इस संवाददाता से बात करते हुए जेकेएसओ के प्रवक्ता नासिर खुएहानी ने बताया, “जब छात्रों पर हमले शुरू तो अभिभावकों में बहुत घबराहट थी. वे किसी भी तरह अपने बच्चों को सुरक्षित वापस अपने घरों में देखना चाहते थे. यही वो वक़्त था जब हमने परेशानी में फंसे बच्चों की मदद के लिए योजना बनानी शुरू की और खालसा ऐड हमारे साथ आ जुड़े. खालसा ऐड ने बसों एवं टैक्सियों के जरिए बच्चों को देहरादून से मोहाली व चंडीगढ़ के निकट लंदरण तक लाने और उन्हें गुरुद्वारा में ठहराने की व्यवस्था की. और फिर वहां से जम्मू तक की बच्चों की यात्रा का भी उन्होंने इंतजाम किया. पंजाब प्रशासन भी उनकी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए आगे आया. सलमान निजामी और युसूफ तरिगामी जैसे हमारे स्थानीय नेताओं ने भी इन बच्चों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया.”

सोहना और मोहाली के फेज़ 3 बी 2 स्थित गुरुद्वारों का दौरा करने वाले एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, “वहां समूचे पंजाब से खालसा ऐड के कार्यकर्ता (लडकियां और लड़के) जुटे हुए थे और कश्मीरी छात्रों, जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे, की दिलोजान से मदद कर रहे थे. ‘समस्त मानव प्रजाति को एक समान समझो’ की जर्सी पहने ये कार्यकर्ता हर काम को बढ़िया ढंग से अंजाम दे रहे थे. उनके व्यवहार से अभिभूत कश्मीरियों ने जब उन्हें और लंगर में खाना परोसने वाले लोगों को धन्यवाद देने की कोशिश की तो उनसे कहा गया कि वे जीवन में मौका आने पर दूसरों का इसी तरह भला करें.”

लंदरण और मोहाली में मदद के इंतजामों में समन्वय बनाने वाले जेकेएसओ के ख्वाजा इतरत ने कहा, “जब डरे हुए छात्र यहां आने शुरू हुए, तो शुरू में हमने स्थानीय कश्मीरियों तथा किराये पर रह रहे अन्य लोगों से सहायता मांगी. उन्होंने ख़ुशी – ख़ुशी अपने तीन कम्ररों के मकान में से दो कमरे खाली कर दिये और वो सब किया जो उनके वश में था. उसके बाद स्थनीय लोग आगे आये और गुरुद्वारों में रहने – ठहरने की व्यवस्था करने का प्रस्ताव दिया. खालसा ऐड द्वारा परिवहन का खर्च उठा लिए जाने के बाद हमने स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया. उन्होंने जम्मू के लिए रवाना होनेवाले काफिले को पुलिस सुरक्षा देने का वायदा किया. अब छात्रों में उनका खोया आत्मविश्वास वापस लौट आया है.”

खालसा ऐड के कार्यकर्ता गुरप्रीत सिंह ने कहा, “हमारी मुख्य चिंता यह है कि ये छात्र सकुशल अपने परिवार के पास पहुंच जायें.”

राहत के इन प्रयासों में शामिल और चंडीगढ़ से शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के भूतपूर्व सदस्य अमरिंदर सिंह ने एक रोचक बात बताते हुए कहा, “मैं देहरादून से लौटे और वहां कश्मीरियों पर हुए हमलों से बुरी तरह विचलित विज्ञान के स्नातकोतर के एक छात्र से मिला. उसने मुझे बताया कि वह अपनी किताबें तक नहीं ले पाया जो उसे आगे की परीक्षा की तैयारियों में काम आते. लेकिन वह मुस्कराया और राहत महसूस कर रहा था. यमुनानगर के एक संस्थान के छात्रों ने हमसे मदद के लिए संपर्क किया है क्योंकि कॉलेज के अधिकारी उन्हें अकेले जाने देने के लिए तैयार नहीं हैं बशर्ते उनके माता – पिता स्वयं आकर उन्हें ले जायें. लेकिन दक्षिणपंथी समूहों की ओर मिलनेवाले दबावों की वजह से छात्र बेहद डरे हुए हैं. यह एक बहुत नाजुक घड़ी है क्योंकि उन बच्चों के अभिभावक उन्हें लेने नहीं आ सकते. हम उन बच्चों को यहां लाने का कोई रास्ता निकलने की कोशिश कर रहे हैं.”

उधर, देहरादून में सूत्रों ने बताया कि शहर में हालात अभी भी चिंताजनक बनी हुई है क्योंकि दक्षिणपंथी समूहों द्वारा विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के बाहर रोजाना मार्च और रैली निकालना और कश्मीरी छात्रों के खिलाफ गुस्से का इजहार करना जारी है.