विदेश यात्रा से वापस आते ही सुषमा स्वराज पर सोशल मीडिया के माध्यम से जो हमला किया गया, उसने सताधारी पार्टी को छोड़कर सबको चौका दिया है. कांग्रेस पार्टी ने तो इसकी भर्त्सना की है, पर उनकी अपनी पार्टी खामोश है. दोष कांग्रेस पार्टी को नहीं दे सकते, इसीलिए प्रधानमंत्री भी खामोश हैं, जबकि सोशल मीडिया के आतंकवादी उनके समर्थक हैं. इससे इतना तो पता चलता है कि देश में महिलाओं की स्थिति एक जैसी है, चाहे वो शक्तिशाली राजनेता हों, पत्रकार हों या आम महिला हों. बीजेपी एक ऐसी पार्टी है, जिसने हिंदूत्ववादी संगठनों और छद्म राष्ट्रवाद वाले आतंकवादियों की ऐसी फ़ौज खडी कर दी है, जिसमे अनेक मामलों में उनके नेता ही फंस जाते हैं. कुछ्लोगों को संभवतः इस मामले में आतंकवाद का शब्द सही नहीं लग रहा हो, पर सोच कर देखिये, आपके महिला या पुरुष होने, आपके बीमार होने, या आपके एक कदम उठाने पर दिन रात एक कर ट्रोल करना आखिर क्या है? कुछ मामले में तो यह आतंकवाद से भी बुरा है, आतंकवादी भी कुछ मिनटों में ही अपना काम कर देते हैं पर सोशल मीडिया पर ट्रोल तो बिना रुके 24 घंटे की जा सकती है. सरकार को ये सारी गतिविधियाँ पसंद हैं इसीलिए इसपर कभी लगाम लगेगा, ऐसा लगता नहीं.

जून के महीने में महिलाओं की शक्ति प्रदर्शित करती या स्त्रीत्व का सम्मान करती अनेक खबरें आयीं. न्यूज़ीलैण्ड की प्रधान मंत्री जसिंडा अर्देर्न अपने नवजात बची के साथ मीडिया और विश्व के सामने आयीं. हमारे देश में इस प्रकार की खबरें नहीं आतीं, जबकि राजनीति में महिलाओं की भरपूर भागीदारी है. टेनिस के पेरिस ओपन में सेरेना विलियम्स में माँ बनाने के बाद वापसी की और अनेक मौकों पर अपने वक्तव्यों से महिला होने का और माँ बनाने का जश्न मनाया. विश्व के सबसे पुरातनपंथी देशों में एक, सऊदी अरब, ने 24 जून से महिलाओं के वाहनों को चलाने की पाबंदी हटा ली.

जून के पहले सप्ताह में जी7 देशों के अधिवेशन में ट्रंप सरकार की नीतियों की आलोचना सबसे प्रखर शब्दों में करने वाली थेरेसा मे, ग्रेट ब्रिटेन की प्रधानमंत्री और जर्मनी की चांसलर मर्केल ही रहीं. थेरेसा मे ने इस फोरम का उपयोग सोशल मीडिया द्वारा महिलाओं पर हिंसा, अमर्यादित भाषा और उत्पीडन को रोकने की अपील के लिए भी किया. उन्होंने कहा, इंग्लैंड में इसे रोकने के कदम उठाये जा रहे हैं, पर यह जरूरी है कि इसे हरेक देश में रोका जा सके. जी7 की तैयारी के दौरान भी थेरेसा मे ने सोशल मीडिया पर महिलाओं के उत्पीडन की विस्तार से चर्चा की थी.

सोशल मीडिया पर जिस तरीके से महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, वैसा इसके पहले कभी देखा नहीं गया. अनेक महिला पत्रकार पहले भी इसका शिकार हो चुकी हैं. बलात्कार की धमकी तो जैसे सामान्य हो चली है, हत्या तक की धमकियाँ खुलेआम दी जा रहीं हैं. इन सबके बावजूद सरकार चुप है तो उसकी मंशा पर सवाल उठाना लाजिमी है.