देश में सदियों से हिजड़ा या ट्रांसजेंडर समुदाय हाशिए पर रहा है। इनके साथ भेदभाव सामान्य बात है। समाज ने इन्हें सामान्य तौर पर कभी स्वीकार ही नहीं किया। इतना ही नहीं, कानून व्यवस्था भी इस पूरे समुदाय को लगभग नजरअंदाज करती आयी है।

अगर संख्या के हिसाब से देखें तो 2011 की जनगणना के अनुसार जिनकी पहचान पुरुष या स्त्री के तौर पर नहीं बल्कि 'अन्य' के तौर पर हुई उनकी संख्या 487803 थी जो कि कुल आबादी का 0.04 प्रतिशत है।

अभी साल 2018 के अंतिम महीने में मौजूदा केन्द्र सरकार ने ट्रास प्रोटेक्शन बिल पेश किया जिसे लोकसभा ने पास भी कर दिया। अगर केन्द्र सरकार की माने तो यह प्रोटेक्शन बिल ट्रांसजेंडर समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए मील का पत्थर साबित होगा। सरकार का कहना है कि इस बिल के ज़रिए ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज के मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जायेगी।

ऐसा दावा किया जा रहा है कि बिल से बड़ी संख्या में ट्रांसजेंडरों को लाभ पहुंचेगा, उन्हें भेदभाव से बचाने और उनके खिलाफ र्दुव्य वहार में कमी लाने तथा समाज की मुख्यधारा में शामिल करने में यह बिल मददगार होगा ।

लेकिन जबसे यह बिल लोकसभा में पारित हुआ है तभी से इस बिल के विरोध में देशभर में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग अपना विरोध जता रहे हैं। अगर विरोध प्रदर्शन कर रहे ट्रांस समुदाय के लोगों की माने तो यह बिल पूरी तरह उनकी मौलिक अधिकारों का हनन करता है। उनके मुताबिक सरकार इस बिल के सहारे ट्रांसजेंडर समुदाय को हाशिए पर धकेलने की एक बड़ी साजिश कर रही है। यह भी कहा जा रहा है कि यह बिल बगैर किसी विमर्श के और पूरे समुदाय को विश्वास में लिये बिना काफी जल्दबाजी में लाया गया है।

मौजूदा सरकार की तरफ से "प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स" नाम से लाया गया यह बिल पहले ही 27 संशोधनों के साथ लोकसभा में पास हो चुका है। अगर ये बिल लागू किया जाता है तो 2014 का सुप्रीम कोर्ट का नाल्सा जजमेंट अपने मायने खो देगा। नाल्सा जजमेंट सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला है जिससे इस समाज को थर्ड जेंडर के रूप में पहचान मिली।

ट्रांस प्रोटेक्शन बिल 2018 में कई ऐसे प्रावधान हैं जो बेहद आपत्तिजनक और पूरे समुदाय के लिये खतरे की घंटी की तरह हैं। मसलन मौजूदा ट्रांस प्रोटेक्शन बिल 2018 के अनुसार भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रख गया है। ट्रांस समुदाय को मुख्यधारा में लाए बगैर या उन्हें दूसरे पेशे से जोड़े बगैर अगर भीख मांगने जैसे उनके परंपरागत पेशे को अपराध की श्रेणी में डाला जाता है तो इसका मतलब होगा कि ट्रांस समुदाय को पूरी तरह से पुलिस और प्रशासन के हाथो शोषण को कानूनी रुप दे देना।

अप्रैल 2014 के नाल्सा जजमेंट में ट्रांसजेन्डर के लिये सरकारी नौकरियों और संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान था। इस नए बिल में सरकार ने उन्हें किसी भी तरह का आरक्षण नहीं दिया है। यह बिल किसी भी तरह के देह व्यापार को अपराध की श्रेणी में रखता है। ट्रैफिकिंग और इस काम को अपनी इच्छा से अपनाने वालों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया है।

ट्रांसजेन्डर बिल 2018 की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यह बिल स्क्रीनिंग समितियों की स्थापना को बढ़ाता है, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट, मनोचिकित्सक, चिकित्सा अधिकारी और एक ट्रांस व्यक्ति शामिल हैं, जिसमें यह निर्धारित करने की शक्ति होगी कि आवेदक ट्रांसजेंडर के रूप में योग्य है या नहीं। एक समिति के सामने किसी के लिंग को "साबित" करने की प्रक्रिया कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, और पूरी तरह से अपमानजनक है।

ट्रांसजेन्डर से अपना लिंग निर्धारण का अधिकार छीनते हुए एक स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया जाऐगा जो तय करेंगे कि कौन ट्रांसजेन्डर है और कौन नहीं। ट्रासजेन्डर समुदाय के मुताबिक यह उनके मौलिक अधिकार का हनन है और इससे उनको सरकार औऱ प्रशासन के चंगुल में धकेला जा रहा है।

यह बिल दोषियों के लिए सजा के प्रावधान में भी भेदभाव भरा है। बिल में कहा गया है कि गैर-ट्रांस महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के लिए 7 साल की जेल की तुलना में ट्रांस लोगों के खिलाफ यौन हिंसा होने पर 2 साल तक की सजा सुनाई जाएगी। यह काफी भेदभाव भरा और अन्यायपूर्ण प्रावधान है।

ट्रांस बिल 2018 में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी बातो पर ध्यान नहीं दिया गया साथ ही ये बिल आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाई से भी इनकार करता है।

इस बिल में ट्रांस समुदाय के अबतक के परंपरा जैसे गुरु शिष्य परंपरा को खत्म करने की कोशिश की गयी है। यदि ट्रांस लोगों को ट्रांस समुदाय का कोई व्यक्ति अपने पास रखता है, तो समुदाय के सदस्यों को 4 साल तक की कैद हो सकती है। अब इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक ट्रांसजेंडर को न तो घर वाले स्वीकार करते हैं और न ही समाज। ऐसे में हिजड़ों के घराने ही मिलकर दूसरे हिजड़ा समुदाय के लोगों का साथ देते हैं। बिना समाज को संवेदनशील बनाये यदि ट्रांसजेंडर को उसी घर और समाज में रहने को मजबूर किया गया तो इससे रोज ही उन्हें भेदभाव और हिंसा का शिकार होना पड़ेगा।

बिल ने सभी इंटरसेक्स लोगों को ट्रांसजेंडर के रूप में चिह्नित किया है। यह इंटरसेक्स लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का घोर उल्लंघन है,जिनमें से कई लोग ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान नहीं करते हैं।

पिछले दिनों 28 दिंसबर को दिल्ली में भी जंतर-मंतर पर ट्रांस समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में जुटकर इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसमें देशभर से लोग शामिल हुए। इसी प्रदर्शन में शामिल होने बंगाल से आये ट्रांसजेंडर शाहनवाज कहते हैं, "जो बिल बनाया गया है उसे ट्रास समुदाय को ध्यान में रखते हुए नही बनाया गया है। हमारी गुरु चेला परम्परा पर सीधे तौर पर हमला किया गया है। सरकार कौन होती है किसी व्यक्ति का लिंग निर्धारित करने वाली।"

शाहनवाज आगे कहते हैं, "सरकार ने कानूनी सहायता देने में हमारा साथ नही दिया। अगर किसी ट्रांस के साथ हिंसा होती है तो सजा के रूप में अपराधी को ज्यादा से ज्यादा दो साल की ही सजा सुनाई जाऐगी, ये कैसी कानून व्यवस्था है?, क्या इस बिल से हमारा प्रोटेक्शन (संरक्षण) होगा या फिर हराशमेंट ( परेशानियां ) बढ़ेगा?”

संभावना फाउंडेशन की रिम्मी कहती हैं, "हमें सरकार ने धोखा दिया है। पढ़ाई लिखाई और काम से जुड़ी बातों पर बिल में कोई भी बात नही की गई है औऱ न ही हमें कोई आरक्षण सरकार द्वारा प्राप्त दिया जा रहा है। सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा या दूसरी नौकरियों में हमें रखा नहीं जाता, अगर आरक्षण नहीं दिया गया तो फिर हमारे साथ सरकारी संस्थाओं और योजनाओं में भी भेदभाव जारी ही रहेगा।"

रिम्मी जाते-जाते कहती हैं, “यह बिल तो हमें नहीं ही मंजूर है। यह एक अन्यायपूर्ण और भेदभाव बढ़ाने वाला बिल है। हम तो इसका विरोध करेंगे ही, लेकिन आम इंसाफपसंद लोगों को भी हमारे समर्थन में आना चाहिए। हमारे साथ सदियों से अन्याय हुआ है, यह मौका है जब इंसाफपसंद लोग हमारे न्याय की लड़ाई में हमारे साथ खड़े हो सकते हैं।”