“अपना टाइम आयेगा” गाती हुई सैकड़ों महिलाएं समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता के लिए 4 अप्रैल की दोपहर को दिल्ली की सडकों पर उतरीं. बदलाव एवं सभी किस्म के उत्पीड़न से “आज़ादी” की उनकी इस मुहिम में बड़ी संख्या में छात्र, पेशेवर लोग एवं सामाजिक कार्यकर्ता उनके साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए शामिल हुए.

न सिर्फ अपनी बल्कि भारत की भी तकदीर बदलने की आकांक्षा लिए महिलाओं का हुजूम जब मंडी हाउस से जंतर मंतर की ओर बढ़ा तो “चौकीदार से आज़ादी”, “लिंचिंग से आज़ादी” जैसे नारे और गीत फिजां में गूंज उठे. महिलाएं “रातों में घूमने की आजादी”, “प्यार करने की आज़ादी” और “पितृसत्ता से आज़ादी” जैसे नारे भी लगा रही थीं.

इस मार्च के बारे में सरल शब्दों में बताते हुए पूर्णिमा गुप्ता ने कहा, “यह मार्च अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं, समलैंगिकों एवं ट्रांसजेंडरों के प्रति होने वाले हमलों के खिलाफ है. यह महिलाओं के मुद्दों तक ही सीमित रहने वाला मार्च कतई नहीं है, बल्कि इसमें महिलाएं एक राष्ट्र के तौर पर हमें चिंतित करने वाले अन्य मुद्दों पर भी आवाज़ उठा रही हैं.”

उन्होंने ने आगे कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध हमेशा से एक समस्या रही है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में इसमें जबरदस्त उछाल आया है. न सिर्फ शारीरिक आपराध, महिलाओं को अपमानित और धमकाने वाले डिजिटल अपराधों में भी खासी बढ़ोतरी हुई है.

समलैंगिकों एवं ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए काम करने वाले आंध्रप्रदेश के वेंकटेश ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यह मार्च महिलाओं, ट्रांसजेंडरों एवं समलैंगिकों समेत सबों के लिए समानता सुनिश्चित करने के वास्ते है. हमारी सबसे बड़ी और मुख्य मांग बराबरी के व्यवहार की है. न इससे कुछ ज्यादा, न इससे कुछ कम. इस सरकार के शासन काल में इन समुदायों के खिलाफ अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है. इस किस्म के अपराधियों को इस सरकार की ओर से संरक्षण मिला हुआ है और वे बिना किसी भय के ऐसे जघन्य अपराध कर रहे हैं.”

राजधानी के बदरपुर के निकट के एक निचले इलाके से आई हुसैन आरा खान ने कहा कि वे बदलाव की नीयत से इस मार्च में शामिल हुई हैं. उन्होंने कहा, “मैं यह सुनिश्चित करने के लिए यहां आई हूं कि महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई सिर्फ संभ्रांत महिलाओं तक ही सीमित न रह जाये. हम हिंसा के सबसे ज्यादा शिकार होने वाले लोग हैं. हम यहां से एक संदेश यह देना चाहते हैं कि अब बहुत हो चुका और हाशिये पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ अपराध और हिंसा अवश्य बंद होनी चाहिए.”

भाष सिंह की नजर में यह मार्च एक ऐसी क्रांति थी जो देशभर में आगे फैलेगी. उन्होंने कहा, “हम इस सरकार को यह सबक सिखायेंगे कि वह देश के संविधान पर चोट करके बची नहीं रह सकती. अल्पसंख्यकों एवं दलितों पर हमले करके वे बचे नहीं रह सकते.”

उन्होंने आगे कहा कि सरकार द्वारा फैलायी जा रही नफ़रत एवं विभाजनकारी विचारों को सहन नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा, “(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया) मोहन भागवत को यह पता चलना चाहिए कि महिलाएं सिर्फ बच्चा जनने की मशीन नहीं हैं.”

नंदिनी सुन्दर ने कहा कि कानून का डर निकल चुका है. यहां लोग आसिफा खान जैसी मासूम बच्ची के साथ बेखौफ होकर बलात्कार कर सकते हैं. इस किस्म की निडरता एक बिल्कुल ही नयी परिघटना है, पहले ऐसा नहीं था.