यू एन एनवायरनमेंट के ऊर्जा और जलवायु विभाग द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष, यानी 2017 में विश्व में जीवाष्म इंधनों से बिजली उत्पादन की तुलना में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों से बिजली उत्पादन के लिए अधिक निवेश किया गया. हालत यहाँ तक पहुँच गयी है अकेले सौर ऊर्जा में जितना निवेश किया गया वह कोयला, गैस और परमाणु बिजली उत्पादन पर सम्मिलित निवेश से अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में 2016 की तुलना में अक्षय ऊर्जा पर 20 प्रतिशत अधिक निवेश किया गया है. चीन में अक्षय ऊर्जा पर सबसे अधिक निवेश किया गया है, जबकि ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन और आफ्रिके में निवेश दुगुने से भी अधिक किया गया है. वर्ष 2017 में कुल 157 गिगावाट बिजली के संयंत्रों ने उत्पादन शुरू किया जिसमें अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों का योगदान 70 गिगावाट है. पिछले एक दशक के दौरान कुल बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों का योगदान 5 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत तक पहुँच गया है.

रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा पर पूरी दुनिया में अधिक निवेश का कारण वायु प्रदूषण के प्रति बढ़ती जागरूकता, जलवायु परिवर्तन का डर और अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों की बिजली के दामों में भारी गिरावट को बताया गया है. इस अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर लगभग 1.8 गिगाटन कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में मिलने से बचाया गया है. कार्बन डाइऑक्साइड गैस ही जलवायु परिवर्तन और तापमान बढ़ने के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार है. अक्षय ऊर्जा में बढ़ते निवेश के बीच अमेरिका और इंग्लैंड समेत यूरोप के कई देशों में इसमें निवेश कम हो गया है, पर चीन और अफ्रीकी देशों में यह तेजी से बढ़ रहा है.

ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस अंतर्राष्ट्रीय स्तर का स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान है. इसके चीफ एडिटर के अनुसार वर्ष 2017 में विश्व में 98 गिगावाट सौर ऊर्जा के संयंत्र स्थापित किये गए जबकि 2018 में 107 गिगावाट स्थापित करने का अनुमान है. इसमें से अकेले चीन में वर्ष 2017 और 2018 के आंकड़े क्रमशः 53 और 65 गिगावाट है. इसी तरह विश्व में पवन ऊर्जा के वर्ष 2017 और 2018 का अनुमान क्रमशः 54 और 59 गिगावाट है. अनुमान है कि वर्ष 2018 में करींब 15 लाख बिजली से चलने वाले वाहन की बिक्री होगी.

इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में भारत और चीन में ऊर्जा परियोजनाएं कोयले के साथ साथ अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों पर आधारित होंगी. भारत में अक्षय ऊर्जा निवेश में वर्ष 2017 में 20 प्रतिशत की कमी आंकी गई है, इसके बाद भी 12 गिगावाट विद्युत् उत्पादन के संयंत्र स्थापित किये गए. वर्ष 2018 में भारत में 10 गिगावाट विद्युत् उत्पादन के अक्षय ऊर्जा आधारित संयंत्र स्थापित करने का अनुमान है, जबकि कोयला और गैस आधारित 13 गिगावाट के संयंत्र स्थापित किये जायेंगे. रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 ऐसा अंतिम वर्ष होगा जब भारत में जीवाष्म इंधन वाले संयंत्रों की क्षमता अखय ऊर्जा से अधिक होगी, यानि इसके बाद के वर्षों में अक्षय ऊर्जा के बिजलीघर आधिक स्थापित किये जायेंगे.

हमारे देश में वर्त्तमान में किसी भी देश की तुलना में अक्षय ऊर्जा से सम्बंधित सबसे बड़ा सरकारी अभियान चल रहा है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2022 तक 175 गिगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है. बहुत सारे विशेषज्ञ मानते हैं कि इस लक्ष्य को प्राप्त करना लगभग असंभव है. छतों पर सोलर संयंत्र लगाकर 40 गिगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है पर अबतक केवल 1300 मेगावाट के संयंत्र ही स्थापित किये जा सके हैं. कंसल्टेंसी फर्म, ई वाई, द्वारा प्रकाशित रिन्यूएबल एनर्जी कंट्री अट्रेकटिव इंडेक्स 2017 में 40 देशों में भारत का स्थान दूसरा है, पहले पर चीन है और अमेरिका तीसरे स्थान पर है. वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के एनर्जी ट्रांजीशन इंडेक्स 2018 में हम 114 देशों में 78वे स्थान पर हैं.

आंकड़ों से लगता तो यही है कि पूरी दुनिया में अक्षय ऊर्जा का चलन बढ़ा है, पर इसमें लगभग आधा योगदान अकेले चीन का है. भारत का लक्ष्य बड़ा है, पर प्रगति धीमी है. अक्षय ऊर्जा के परामर्श देने वाले और संयंत्रों का उत्पादन करने वाली कम्पनियाँ थोड़ी ही है, इसलिए संभव है आने वाले वर्षों में पूरी दुनिया के ऊर्जा बाज़ार पर इन्ही का अधिपत्य हो जाए, यदि ऐसा हुआ तो सबकुछ यही कम्पनियाँ तय करेंगी और हम इनके गुलाम होंगे.