अरुण शौरी ने कुछ महीने पहले कहा था, खबर वो होती है जिसे सरकार छुपाना चाहती है, और जो खबर सरकार देती है वो तो कचरा है. अरुण शौरी बड़े पत्रकार रह चुके हैं, सत्ता का सुख भोग चुके हैं और सत्ता का विरोध भी करते रहे हैं. उन्होंने जो कहा वह शिष्टता की मर्यादा में कहा, पर आज मीडिया केवल कचरा ही नहीं परोस रही बल्कि उसे दंगा कराने, धार्मिक उन्माद फैलाने और झूठी खबरें फैलाने से भी कई परहेज नहीं रह गया है. जनता के सरोकारों को खबर बने हुए तो एक अरसा बीत चुका है. प्रिंट मीडिया झूठी खबरों से और इलेक्ट्रोनिक मीडिया टेम्पर्ड विडियो समाचारों से भरा पड़ा है. एनडीटीवी के रवीश कुमार को छोड़ दें तो हमारे सरोकार और हमारी समस्याओं को कौन बताने वाला है. मीडिया तो अब समाचार बताने वाली संस्था नहीं रही, वह तो समाचारों को दबाने और सरकार के निर्देशानुसार समाचार गढ़ने वाली संस्था रह गयी है.

बीबीसी के दक्षिण एशिया संवाददाता जस्टिन रालेट ने कोबरापोस्ट के मीडिया घरानों पर किये गए स्टिंग ऑपरेशन के बारे में लिखा है, भारतीय मीडिया ने इस खबर को उपेक्षित कर दिया, जब कि यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर एक करारा प्रहार था और इसकी दुर्दशा को उजागर कर रहा था. ऐसी कोई भी खबर दूसरे किसी देश में आती तो राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनती.

कोबरापोस्ट का स्टिंग ऑपरेशन, ऑपरेशन 136, यह बताने के लिए काफी था कि लगभग सभी मीडिया घरानों का झुकाव बीजेपी की तरफ हद से ज्यादा है और इसे फायदा पहुंचाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं. वैसे, यदि आपमें सोचने-समझाने की क्षमता बाकी है (बड़ी आबादी में यह समाप्त हो चुकी है) तब आप यह सब अनुमान लगाते होंगे, पर यह स्टिंग ऑपरेशन एक सबूत जरूर है. अनेक बड़े पत्रकार और मीडिया एग्जीक्यूटिव बड़ी रकम के एवज में कुछ भी करने को तैयार हैं, जैसे दंगों जैसे हालात बनाना, धार्मिक उन्माद पैदा करना, नेताओं के उन्मादी बयानों को खूब प्रचारित करना. ऑपरेशन 136 का नाम वर्ष 2017 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत के 136वे स्थान से लिया गया है.

ऑपरेशन के पहले चरण में लगभग 16 मीडिया संस्थानों के साथ काम किया गया, जिनमें इंडिया टीवी, दैनिक जागरण, हिन्दी खबर, सब टीवी, डीएनए, अमर उजाला, पंजाब केसरी, स्कूप व्हूप और रीडिफ़ डॉट कॉम सम्मिलित थे. स्टिंग में लगभग सभी मीडिया संस्थान पेड न्यूज़ प्रकाशित और प्रचारित करने को तैयार थे. स्टिंग ऑपरेशन के दूसरे चरण में दैनिक भास्कर, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, जी न्यूज़, नेटवर्क 18, स्तर इंडिया, एबीपी न्यूज़, रेडियो वन, रेड एफएम, लोकमत, एबीएन आंध्र ज्योति, टीवी 5, दिनामालार, बिग एफएम, के न्यूज़, इंडिया वौइस्, द न्यूइंडियन एक्सप्रेस, एवीटीवी और ओपन मैगज़ीन सम्मिलित थे. जाहिर है दूसरे चरण में मीडिया के नामी-गिरामी घराने सम्मिलित थे. इसे प्रसारित करने से रोकने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दैनिक भास्कर समूह ने इतने तो साबित कर दिया कि वह भ्रष्ट तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

कोबरापोस्ट के रिपोर्टर के अनुसार लगभग 25 मीडिया घरानों में किये गए स्टिंग का तरीका एक ही था. रिपोर्टर हिन्दुओं के किसी समृद्ध अशरण के प्रतिनिधि की हैसियत से जाते और अगले चुनावों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने पर चर्चा करते. इसमें हिन्दू आस्था का प्रचार-प्रसार, विपक्ष पर प्रहार और भड़काऊ भाषणों का प्रसार सम्मिलित था. लगभग सभी मीडिया संस्थान मोटी कैश रकम के बदले अपने अपने तरीके से यह सब करने को तैयार थे.

इसमें आश्चर्य नहीं कि यह खबर लगभग उपेक्षित कर दी गयी. पर कल्पना कीजिये किसी स्टिंग में कांग्रेस या आप का नाम आ गया होता तब क्या होता. टीवी चैनलों पर आज तक यह भाबर आ रही होती, प्रधानमंत्री तो विदेशों में भी तालियाँ बजा कर यह खबर बता रहे होते. रक्षामंत्री भी चीन या पाकिस्तान के बदले इसी पर बयान दे रही होतीं. बिका और गिरा हुआ मीडिया तो आज की हकीकत है.