ट्रांस गंगा के क्षेत्रों में खरीफ की बरसात का बैसब्री से इंतज़ार हैं. पहली बरसात के साथ ही बुआई की तैयारी शुरू कर दी जायगी. उसी के साथ ही यह निर्णय भी किया जायगा कि किसान किस प्रकार यह बुआई करेगा. उत्पादन पद्धति क्या होगी .

ट्रांस गंगा क्षेत्र के किसानों से बातचीत में यह साफ हुआ कि इस समय किसानों में इस बारे में कई विचार आ गये हैं, जिन पर चर्चा की जा रही है. एक विचार जो पहले था वह यह कि इस सारी ज़मीन को सरकार को बेच दिया जाय और सरकार से अच्छे दाम लिए जाए . लेकिन इस विचार को कोई खास समर्थन नहीं मिला .किसानों ने इसे केवल सुन लिया . दूसरा यह विचार कि सभी लोग अपनी खेती करे. लेकिन इसमें कुछ संकट यह है कि सभी ज़मीन इस समय उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम के नाम है . कानूनी कागजों में मालिकान उसी का है .ऐसी दशा में बहुतेरी ज़मीन ऐसी है जो बुआई योग्य फिलहाल नहीं रह गई है.ऐसी दशा में मूल मालिक की ज़मीन कौन सी हैं और इस पर किसका कितना हक है यह सब ऐसे सवाल हैं जिनका कोई हल फिलहाल नहीं है.

एक तीसरा विचार जो किसानों के मध्य चर्चा का विषय है वह है सामूहिक खेती का. है. यह नया विचार ऐसे समय में आया है जब वे हर समभाव तरीके से किसानों में आपसी द्वन्द को निपटाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि भूमि को लेकर कोई आपसी विवाद ना होने पाये ;इस समस्या से उबरने के उपाय ढूंढ रहे थे. कि चूंकी सभी किसानों ने रबी की बोआई और कटाई साथ साथ की है इसलिए फसल पर भी सभी का बराबर अधिकार है . कोई यह न कहे कि यह ज़मीन उसकी थी इसलिए इसकी फसल उसे ही मिलेगी. इस संकट से बचते हुए ही सामूहिक खेती का विचार आया है.

सामूहिक खेती को किसान कम्पनी , संगठन बनाकर अथवा सहकारिता के तहत किया जा सकता है. इसमें सभी लोग अपने खेतों को मिलाकर एक खेत बना लेंगे और एक रजिस्टर में सभी के पास कितनी भूमि पहले थी उसे लिख किया जायगा. आज उपलब्ध कुल भूमि को उसी अनुपात में उनका स्वामित्व स्वीकार किया जायगा जितना अनुपात उनका पहले था . ये किसान इसी अनुपात में लागत मूल्य देंगे और इसी अनुपात में उन्हें इसकी फसल का हिससा भी मिलैगा.

अर्थात ऐसी व्यवस्था हो जाने पर किसान दोनों ही प्रकार की भूमिकाओं में रहेगा . वह मजदूर भी है और मालिक भी. मजदूर की हैसियत से जब वह कार्य करेगा तो उसे यह समूह मजूरी देगा और मालिक की हैसियत से उसे लागत मूल्यों में अपना हिस्सा देना होगा और फसल में उसे उसके स्वामित्व के अनुपात में उत्पादन का भाग मिलेगा.

जैसा एक किसान ने कहा, हम सब मिल बांटकर काम कर लेंगे . ठेके पर कोई खेत नहीं देगा और बिना आपसी लड़ाई के बोया जायगा. पाने बरसते ही बोया जायगा.

इन्ही बुनियादी विचारों पर तरह तरह की राय आ रही है .यदि ऐसा हो जाता है तो ,शीघ्र ही एक वर्ष के भीतर इसी प्रकार से दूध का व्यवसाय भी सभी लोग मिलकर शुरू कर सकते हैं , इत्यादि.

किसानों को एक अन्य घटना क्रम से भी मजबूती मिली है . किसान संगठन के सलाहकार डॉ वी एन पाल , कानपूर विश्वविद्यालय में गणित के अध्यापक ,जो शुरूं से गुलाबी गैंग की संपत पाल के साथ इस आन्दोद्लन में हैं , ने एक पत्र राज्यपाल को लिखा था . राज्यपाल राम नायक ने यह पत्र राष्ट्रपति को अग्रेषित कर दिया है . इसमें डॉ वी एन पाल के पत्र में उठाए हई मांग कि भूमि अधिग्रहण आधिनिय्मों के दुरूपयोग से हुए ज़मीन घोटाले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग , का हवाला देकर समस्त दस्तास्वेजों सहित उसे राष्ट्रपि को उनके संज्ञान हेतू भेज दिया है.

यद्यपि इस पत्र में सीधे इस मांग को स्वीकारा हो अथवा राष्ट्रपति से राज्यपाल से सीधा कहा हो ,ऐसा नहीं है. लेकिन राज्यपाल द्वारा इस पत्र को राष्ट्रपति को अग्रेषित करना ही अपने में एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है.

लेकिन एक अजीबो गरीब घटना क्रम और भी घट रहा है.किसान कार्यकर्ता सुनोद यादव के अनुसार , इस पूरे क्षेत्र में औरतों को आगे कर के कई प्रकार के आरोप कार्यकर्ताओं पर लगाने की बातें सामने आये हैं. अपनी साप्ताहिक बैठक में किसानों ने इ बारे में शंका जाहिर की कि इस प्रकार किए आरोपण किसान आंदोलन के कार्यकर्ताओं पर भी लगाए जा सकते हैं. गत सोमवार को इसी के विरोध में किसानों ने एक प्रभावशाली जुलूस निकाला और इस मांग को फिर से उठाया गया है कि किसानों की ज़मीन को वापस उनके नाम कर दिया जाय . और गत आंदोलन के मुक़दमे वापस लेने की मांग भी रखी गयी है .संगठित किसान एक नयी शुरुआत की दिशा में जाने की तैयारी कर रहा है.