वैज्ञानिकों के अनुसार यदि आप भगवान् को मानते हैं तो आसमान में देखने के बदले आईने के सामने भी खड़े हो सकते हैं. भगवान् जब आस्था से हट कर समाज विज्ञान और मनोविज्ञान का विषय हो जाते हैं, तब कुछ अच्छे अध्ययन किये जाते हैं. हमारे देश में धार्मिक कट्टरवाद के कारण यह संभव नहीं है पर पश्चिमी देशों में इस तरह के अनेक अध्ययन किये जाते हैं. पलोस वन नामक जर्नल में इसी तरह का एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जिसे साइंस ने 12 जून के अंक में सम्मिलित किया है. इसके अनुसार अमेरिका के क्रिस्चियन ईश्वर का चेहरा अपने जैसा देखते हैं, जो उनकी नस्ल, चेहरा और राजनीतिक झुकान से मेल खाता है.

यह अध्ययन नार्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के विशेषज्ञों ने जोशुआ कोनराड जैक्सन की अगुवाई में किया है. इसमें अमेरिका के लगभग सभी क्षेत्रों से चुने गए 511 क्रिस्चियन व्यक्तियों को ३०० जोड़ी फोटो में से चुनकर बताने को कहा गया कि उनके अनुसार कौन सी फोटो भगवान् के चेहरे से सबसे ज्यादा करीब है. इन 511 क्रिस्चियन व्यक्तियों में से 181महिलायें थीं और 330 पुरुष. इनमे से 153 व्यक्ति अमेरिका के दक्षिणी प्रान्तों से, 143 मध्य-पश्चिमी प्रान्तों से, 124 उत्तरी-पूर्वी प्रान्तों से और शेष 91 पश्चिमी प्रान्तों से थे. इनमे 74 प्रतिशत गोरे लोग थे जबकि 26 प्रतिशत काले. इतने लोगों ने अपने अनुसार जिन फोटो का चुनाव किया, उन सभी फोटो के अनुसार एक औसत फोटो बनायी गयी.



वैज्ञानिकों के लिए इस औसत फोटो की शक्ल हैरान करने वाली थी, क्यों कि पुरानी मान्यताओं के अनुसार ईश्वर अधेड़ और गुस्सेवाले थे, जबकि इस अध्ययन में जो शक्ल सामने आयी उसमे ईश्वर अपेक्षाकृत युवा, कुछ स्त्री गुण वाले और सौम्य थे. इससे इतना तो स्पष्ट है कि ईश्वर का स्वरुप समय के साथ बदलता जाता है और हम कैसा भगवान् चाहते हैं इसे परिभाषित भी करता है.

वैज्ञानिकों के अनुसार राजनैतिक धारणा भी ईश्वर के चेहरे पर प्रभाव डालती है. कंजर्वेटीव्स के ईश्वर अधिक शक्तिशाली और गोरे होते हैं जबकि लिबरल्स के ईश्वर गेहुँवे रंग के और अधिक सुन्दर होते हैं. बुजुर्ग के ईश्वर अपेक्षाकृत बुजुर्ग, सुन्दर लोगों के ईश्वर अपेक्षाकृत सुन्दर और अश्वेत लोगों के ईश्वर अपेक्षाकृत भूरे रंग के होते हैं. हाँ, इतना समान है कि ईश्वर पुरुष है, जिसमें स्त्रियों और पुरुषों की एक राय है. जोशुआ कोनराड जैक्सन के अनुसार राजनैतिक धारणा से ईश्वर का स्वरुप संभवतः इसलिए प्रभावित होता है क्यों कि दोनों वर्ग अलग-अलग तरह का समाज चाहते हैं. कंजर्वेटीव्स का समाज एक बंधे-बंधाये ढर्रे पर चलने वाला होता है, जिसे चलाने के लिए शक्तिशाली ईश्वर की जरूरत है, जो ढर्रे से हटने वालों को दंड भी दे सके. दूसरी तरफ लिबरल्स का समाज सहनशील होता है, जो आवश्यकतानुसार बदलने को तैयार रहता है और इसे चलाने के लिए सुन्दर और प्यार करने वाले ईश्वर की जरूरत है.



माइकेलअन्जेलो से लेकर मोंटी पाइथन तक सभी नामी-गिरामी चित्रकार ने अपने चित्रों में बुजुर्ग, सफ़ेद दाढ़ीवाले, प्रतापी, शक्तिशाली और गोरे ईश्वर को उकेरा, पर इस अध्ययन से इतना तो स्पष्ट है कि नयी पीढी के ईश्वर का चेहरा बदल रहा है. वर्ष 1995 में ग्रैमी पुरस्कार के लिए नामांकित गायक, जॉन ओस्बोर्ने ने अपने पॉप गाने, वन ऑफ़ अस, के बाद दर्शकों से प्रश्न पूछा था, क्या ईश्वर का कोई चेहरा है, यदि है तो कैसा है? इस अध्ययन के बाद संभवतः उन्हें सटीक जवाब मिल गया होगा.