हालांकि ईद का चांद दिखने को लेकर भारत मे मुस्लिम धार्मिक नेताओं मे अनेक दफा मतभेद उभरने के बावजूद उनको भारतीय मुसलमान नायब ऐ रसूल इमाम की तरह मानकर उनकी जबान पर लब्बैक कहते हुये अलग अलग दिन उनके समर्थक ईद मनाते रहे है। लेकिन इस साल के रमजान माह की शुरूआत को लेकर व फिर ईद व अब ईदुलजुहा के चांद के दिखने को लेकर उभरे मतभेदो के बाद सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि हमारे सवोच्च धार्मिक लीडरान किधर जा रहे है।

भारत मे ईदुलजुहा की 22-अगस्त को पहले से सरकारी छूट्टी की घोषणा थी। लेकिन दिल्ली मे मौजूद शाही इमाम की 23-अगस्त को ईदुलजुहा मनाने की घोषणा करने के बाद भारत व राज्य सरकारो ने 22-अगस्त की जगह 23-अगस्त को ईदुलजुहा का अवकाश होने के आदेश जारी कर दिये थे। 17-अगस्त को धार्मिक लीडरान ने फिर से घोषणा की कि अब ईदुलजुहा 23-अगस्त की बजाय 22-अगस्त को ही मनाई जायेगी। इसके बाद सरकारों ने फिर 22-अगस्त को ईदुलजुहा के अवकाश होने के आदेश जारी किये है।

रोजो की शूरुआत व ईद चांद की पहली तारीख को मनाये जाते है। लेकिन ईदुलजुहा (बकराईद) तो चांद की दस तारीख को मनाई जाती है। फिर भी ईदुलजुहा के मनाने के लिये चांद दिखने को तय करने में धार्मिक लीडरान को इतनी जौर अजमाईस करनी पड़ी। जबकि आज तो चांद दिखने की शहादत को आने मे चंद सेकण्ड लगते है। दुसरी तरफ चांद देखने के लिये अनेक वेज्ञानिक साधन मौजूद है।

भारत मे चांद दिखने की शहादत को लेकर हर जिला व राज्य स्तर के अलावा मरकजी स्तर पर हिलाल कमेटी (चांद कमेटी) गठित है। जो खास तौर पर रमजान, ईद व बकराईद के चांद दिखने की शहादत की घोषणा करती है। फिर मरकजी कमेटी यानि शाई इमाम के दफ्तर से उसका एक तरह से ऐहलान होने के बाद चांद दिखने का तय मानकर भारतीम मुसलमान द्वारा पर्व मनाने की परम्परा कायम है। लेकिन अबकी दफा इस तरह की घोषणाओं मे बदलाव होने से हमारे धार्मिक लीडरान की एक अजीब सी छवि बनी है या बनाई जा रही है।