नेचर क्लाइमेट चेंज नामक जर्नल के 23 जुलाई के अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र का निष्कर्ष है, पृथ्वी का तापमान जैसे-जैसे बढेगा वैसे ही आत्महत्या की घटनाओं में तेजी आयेगी. स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री मार्शल बुर्के ने इस शोध के लिए अमेरिका में काउंटी-स्तर पर और मेक्सिको में म्युनिसिपैलिटी स्तर पर आत्महत्या के आंकड़ों का अध्ययन किया और वर्ष 2050 के अनुमानित तापमान के आधार पर बताया कि उस समय तक वर्त्तमान की तुलना में आत्महत्या के 21000 मामले अधिक आने लगेंगे. बुर्के के अनुसार तापमान बृद्धि के कारण हजारों आत्महत्या के मामले केवल एक संख्या नहीं होगी बल्कि सभी प्रभावित परिवारों के लिए ऐसा दुखद नुकसांन होगा जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी. इस अध्ययन को इस तरह का अब तक किया गया सबसे बड़ा अध्ययन कहा जा रहा है.

सामान्य अवस्था में भी गर्मियों के महीने में ही आत्महत्या के अपेक्षाकृत अधिक मामले आते हैं. गर्मियों में बढ़ते आत्महत्या को बेरोजगारी और लम्बे दिनों से जोड़ा जा रहा है. मार्शल बुर्के के दल ने हरेक जगह के उपलब्ध पिछले कई दशकों के तापमान के आंकड़े और आत्महत्या की दर का गहन अध्ययन किया. इतना ही नहीं, बुर्के के सहयोगियों ने लगभग 50 करोड़ ट्विटर के मेसेज की भाषा का भी अध्ययन किया और यह जानने का प्रयास किया कि बढ़ता तापमान क्या लोगों को मानसिक तौर पर प्रभावित करता है. जब तापमान अधिक होता है तब अधिकतर लोग निराशाजक सोच से अवसाद में चले जाते हैं. ऐसी अवस्था में एकाकीपन, फँसना, घिर जाना और आत्महत्या जैसे शब्दों का अधिक उपयोग करने लगते हैं. इस दल का दावा है कि गर्मियों में लोग निराशाजनक भाषा का अधिक उपयोग करते हैं और अवसाद से घिर जाते हैं. संभवतः इसी कारण आत्महत्या की दर बढ़ती है.

अधिक तापमान मनुष्य की सोच को बदलने में सक्षम है और लोग अधिक हिंसक हो जाते हैं. ऐसे समय लोग अपने पर या दूसरों पर शारीरिक हमले भी अधिक करते हैं. वर्ष 2050 के तापमान बृद्धि के आकलन के अनुसार अमेरिका और मेक्सिको में आत्महत्या की दर में क्रमशः 1.4 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जायेगी.

पिछले वर्ष अमेरिका के बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के विशेषज्ञों ने इसी प्रकार का अध्ययन भारतीय किसानों पर किया था. कर्ज के बोझ से दबे भारतीय किसानों की आत्महत्या एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है और सरकारी फाइलों और पुलिस के रिकार्ड्स के अनुसार वर्ष 1995 से अबतक 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. वास्तविक आंकड़ें इससे बहुत अधिक होंगें. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों के दल ने अपने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला है, पिछले तीन दशकों के दौरान किसानों द्वारा की गयी कुल आत्महत्याओं में से 60000 से अधिक बढ़ते तापमान की देन हैं.

जिन दिनों फसल खेत में होती है, उन दिनों सामान्य की तुलना में तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बृद्धि से 67 मामले आत्महत्या के अधिक होते हैं. इसी तरह यदि तापमान 5 डिग्री सेल्सियस अधिक होता है तब सामान्य की तुलना में आत्महत्या के 335 मामले अधिक दर्ज किये जाते हैं. जिन दिनों, कोई फसल खेत में नहीं होती उन दिनों में तापमान बृद्धि का कोई असर आत्महत्या पर नहीं पड़ता. इसी तरह जिस साल में बारिश सामान्य से एक सेंटीमीटर अधिक होती है, उस साल आत्महत्या की संख्या में 7 प्रतिशत कमी होती है.

स्पप्ष्ट है, बढ़ता तापमान लोगों को अवसादग्रस्त करता है और कुछ लोग इससे इतने प्रभावित होते हैं कि आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. समस्या तो यह है, आने वाले वर्षों में तापमान बृद्धि की प्रबल संभावना है. तापमान बृद्धि को रोकना तो कठिन है, पर बढे तापमान में लोगों को अकेले नहीं छोड़ा जाए, कुछ हद तक यह संभव है. यदि एकाकीपन को मिटाया जा सके तब आत्महत्या में कमी लाई जा सकती है.