दिल्ली में रामलीला के साथ साथ एक और लीला शुरू होती है, वह है प्रदूषण लीला. रामलीला तो दस दिनों में ख़तम हो जाती है पर प्रदूषण लीला लगभग ५ महीनों तक चलती है. प्रदूषण लीला एक ऐसे चक्रवर्ती सम्राट की कहानी है जिसके अधिकार में पूरे दिल्ली- एनसीआर का चप्पा-चप्पा है. राम लीला रावण को मार कर ख़त्म हो जाती है, पर प्रदूषण लीला में तो लोग ही मरते हैं. वायु प्रदूषण तो दिल्ली-एनसीआर में अजर अमर हो चुका है. कहा जाता है, दिल्ली सात बार उजड़ी और सात बार बसी, पर प्रदूषण की विभीषिका देखकर लगता है कि अब आठवीं बार इसके उजड़ने की बारी है. यदि उजड़ी नहीं तब जीवन-विहीन जरूर हो जायेगी.

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की बानगी का एक उदाहरण तो हाल में ही देखने को मिला. कनाडा के गायक ब्रायन एडम्स अपने भारत दौरे के दौरान गुरुग्राम में कन्सर्ट कर रहे थे. रात का समय था और उनके ठीक पीछे का परिवेश धूल और धुएँ से भरा था. इस दौरान किसी ने दूर से एक तस्वीर खींची जिसमें धुएँ के बादलों पर दर्शकों के ऊपर ब्रायन एडम्स ही परछाई उभरती है. ब्रायन एडम्स को शायद यह नहीं मालूम था कि यह तस्वीर प्रदूषण का खाका खींच रही है, उन्हें तो लगा मानो वे दर्शकों के ऊपर कहीं स्वर्ग जैसी जगह पर हैं. उन्होंने इन्स्ताग्राम पर यह तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, यह अभूतपूर्व है, जादुई है, नमस्ते इंडिया. और इस तस्वीर के साथ ही दिल्ली-एनसीआर का वायु प्रदूषण पूरे दुनिया तक पहुँच गया.

इस वर्ष के शुरू में क्लीन एयर फॉर देलही कैंपेन शुरू किया गया था. तब पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इसकी सफलता के तमाम दावे किये थे. इसके बाद भी अनेक वक्तव्य डॉ हर्षवर्धन की तरफ से जारी किये गए, जिसमें उन्होंने जोर देकर कहा था, इस बार हम सर्दियों में वायु प्रदूषण से निपटने को पूरी तरह तैयार हैं. पर सर्दियां अभी आई ही नहीं और दिल्ली-एनसीआर ने अपनी वायु गुणवत्ता से सारे दावों की पोल खोल दी. डॉ हर्षवर्धन का काम था वक्तव्य देना, सो उन्होंने दे दिया, जनता से उन्हें ही नहीं पूरी सरकार को कोई सरोकार नहीं है. सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री भी दिल्ली को “गैस चैम्बर” बता चुके हैं. पर, उनके सरकार के नियंत्रण में जितने भी प्रदूषण नियंत्रण के उपाय हैं उनमे से एक भी जमीन पर दिखाई नहीं देते.

दशहरे के दिन पूरे दिल्ली-एनसीआर में हरेक जगह रावण दहन का आयोजन किया गया. सबको पता था अगले दिन दिल्ली की हवा और खराब होगी और ऐसा ही हुआ भी. पर, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और दूसरे दिग्गज नेता भी इस प्रदूषणकारी आयोजन में शामिल होते हैं, और यही सरकार की प्रदूषण नियंत्रण की मंशा को भी उजागर करता है. आश्चर्य तो तब होता है, जब राष्ट्रपति महोदय रावण दहन के ठीक पहले प्रदूषण की चर्चा भी करते हैं. डॉ हर्षवर्धन भी समय-समय पर प्रदूषण से सम्बंधित अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हैं – कभी कहते हैं प्रदूषण से नवजात प्रभावित होते हैं, कभी कहते हैं प्रदूषण से कोई मरता नहीं, कभी कहते हैं दैनिक दिनचर्या में सुधार कर प्रदूषण का असर ख़त्म किया जा सकते है और कभी प्रदूषण में योग करने की सलाह देते हैं. पर, कभी गलती से भी कोई वक्तव्य ऐसा नहीं होता जो प्रदूषण को ख़त्म करने से सम्बंधित है.

ठीक यही हालत उन तथाकथित सरकारी योजनाओं की है, जो प्रदूषण के नियंत्रण के लिए बनाए जाते हैं. एक भी योजना ऐसी नहीं है, जिसका सम्बन्ध प्रदूषण हो ही नहीं इससे सम्बंधित है. अभी बार बार जिस ग्रेडेड रिस्पांस सिस्टम का जिक्र आता है, वह भी जब प्रदूषण एक स्तर तक पहुँच जाएगा तब आपको क्या करना है, या सरकार क्या कदम उठायेगी, इसका खाका है.

अभी कुछ वर्ष पहले तक सरकारी तंत्र के अनुसार दिल्ली का अधिकतर प्रदूषण वाहनों से उत्पन्न होता था, अब एकाएक यह पड़ोसी राज्यों के कृषि अपशिस्ट जलाने से होने लगा. बात यहीं ख़त्म नहीं होती, पिछले वर्ष डॉ हर्षवर्धन ने राज्य सभा को बताया कि दिल्ली का वायु प्रदूषण गल्फ देशों की उड़ती रेत के कारण हो रहा है. इन सब बयानों के बीच केवल हवा का रूख ही दिल्ली में वायु प्रदूशण लाता है या इससे मुक्ति दिलाता है. जितने भी प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित संस्थान है वे केवल लूट के लिए बने है.

कृषि अपशिस्ट जलने को दिल्ली में वायु प्रदूशण का सबसे बड़ा कारण मान भी लें तब भी कुछ सवालों के जवाब कोई नहीं देता. क्या हरेक दिशा से हवा प्रदूषण के साथ दिल्ली में ही आती है और यदि ऐसा है तब फिर दिल्ली की प्रदूषित हवा कहाँ जाती है? यदि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से फसलों के अपशिस्ट का प्रदूषण दिल्ली तक आता है, तब तो इसके रास्ते में दिल्ली के पहले पड़ने वाले शहर दिल्ली से भी अधिक प्रदूषित होने चाहिए, पर ऐसा होता नहीं है.