यूरोपियन यूनियन के स्पेस एजेंसी से वर्ष 2020 में छोड़े जाने वाले मंगल (मार्स) के लिए अंतरिक्ष यान के साथ भेजे जाने वाले मार्स रोवर (मंगल की सतह पर चलने वाला वाहन) का नाम ब्रिटेन की वैज्ञानिक रोसलिंड फ्रैंकलिन के नाम पर रखा गया है. रोसलिंड फ्रैंकलिन की उपलब्धियां महान थीं पर अन्य महिला वैज्ञानिकों की तरह वे उपेक्षित ही रहीं. मार्स रोवर के नाम के लिए जनता से सुझाव मांगे गए थे, और कुल 36000 सुझावों में से रोसलिंड फ्रैंकलिन का नाम चुना गया.

वैज्ञानिक मौरिस विल्किंस के सुझाव पर इंग्लैंड की महिला विज्ञानिक रोसलिंड फ्रैंकलिन ने वर्ष 1952 में एक्स-रे क्रिस्टलोंग्राफी की मदद से डीएनए की खोज की थी. इसके बाद वाटसन ने फ्रांसिस क्रीक के साथ बिना फ्रैंकलिन को बताये और बिना इजाजत लिए इस काम को आगे बढ़ाया और इसकी संरचना को अपने नाम से प्रकाशित किया. वर्ष 1953 में प्रतिष्ठित जर्नल नेचर ने वाटसन और क्रीक का शोध पत्र प्रकाशित किया. यह महज संयोग ही था कि इसी अंक में विल्किंस और फ्रेंक्लिन का भी शोधपत्र प्रकाशित किया गया था. पर, इसके बाद वाटसन और क्रीक डीएनए की खोज के पर्याय बन गए और विल्किंस और फ्रैंकलिन को लगभग भुला दिया गया. महज 37 वर्ष की आयु में वर्ष 1958 में ओवेरियन कैंसर के कारण फ्रैंकलिन की मौत हो गयी. वर्ष 1962 में वाटसन और क्रीक के साथ विल्किंस को भी नोबेल पुरस्कार मिला पर, रोसलिंड फ्रैंकलिन के काम को किसी ने याद नहीं किया.

इस मार्स रोवर के 6 पहिये हैं और यह यंत्रों के साथ-साथ मंगल की सतह पर जीवन के चिह्न खोजने का काम भी करेगा. अनेक वैज्ञानिकों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि जिसने जीवन के मौलिक परमाणु (डीएनए) को खोजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अब उनके नाम का रोवर मंगल पर जीवन तलाशने का काम करेगा. रोसलिंड फ्रैंकलिन की बहन जेनिफर ग्लिन ने मार्स रोवर के नाम को रखे जाने पर बहुत खुशी जताई. जेनिफर ग्लिन ने याद करते हुए बताया कि रोसलिंड फ्रैंकलिन अपने अंतिम वर्ष में जब बहुत बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती थीं, तभी सोवियत संघ ने अंतरिक्ष में स्पुतनिक यान भेजा था. इस समाचार से फ्रैंकलिन बहुत खुश थीं. जेनिफर ने कहा कि इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि फ्रैंकलिन का नाम मार्स रोवर को दिया गया है जो उनकी मृत्य के 60 वर्ष बाद उनके नाम का रोवर मंगल तक पहुँच जाएगा.

वर्तमान में विज्ञान में महिलाओं को सम्मान दिलाने की एक मुहिम छिड़ी हुई है. अनेक स्टारों पर इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं. नोबेल प्राइज में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का नाम नहीं आने से इसके कमेटी की चारों तरफ भर्त्सना होने लगी थी. इसके बाद, पिछले वर्ष से कमेटी को विशेष तौर पर हिदायत दी गयी थी कि वे महिला वैज्ञानिकों के नाम की उपेक्षा नहीं करें, इसके परिणामस्वरुप पिछले वर्ष भौतिक शास्त्र और रसायन विज्ञान दोनों क्षेत्रों में पुरस्कार पाने वालों में एक-एक महिला वैज्ञानिक भी थीं.

अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी अपनी तरफ से एक पहल कर रहे हैं. इन वैज्ञानिकों ने पापुलेशन बायोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं के कार्यों को उजागर करने का प्रयास किया है. इसके लिए इस दल ने पापुलेशन बायोलॉजी के क्षेत्र में 1970 से 1990 के बीच प्रकाशित 883 शोध पत्रों को खंगाला. जर्नल्स में प्रकाशित शोधपत्रों में शीर्षक के बाद लेखकों का नाम होता है और माना जाता है इनका भरपूर योगदान है. शोधपत्र के अंत में सन्दर्भ के ठीक पहले आभार (एक्नौलेजमेंट) होता है, जिसमें अपेक्षाकृत कम योगदान देनेवालों का नाम होता है. पर, जर्नल में प्रकाशित शोधपत्रों में लेखकों का कितना योगदान होगा और आभार में जिनका नाम है उनके योगदान का कोई निश्चित प्रारूप है. सामान्यतया, शोधपत्र के मुख्य लेखक का ही निर्णय अंतिम होता है कि वह किसका नाम लेखक के तौर पर दे और किसके लिए सिर्फ आभार प्रकट करे.

सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के दल ने सभी 883 शोधपत्रों के लेखकों के नाम की और आभार में डाले गए नामों की अलग-अलग सूचि बनाई और फिर इनका विश्लेषण करने के बाद पता चला कि लेखकों में मात्र 7.4 प्रतिशत महिलायें थीं जबकि आभार में 43.2 प्रतिशत नाम महिलाओं के थे. कुछ महिलाओं के नाम तो अनेक शोध पत्रों में थे, पर केवल आभार में. इन महिला वैज्ञानिकों के काम की जानकारी जुटाने पर पता चला कि आभार में जिन महिला वैज्ञानिकों के नाम थे, उनमें से अधिकतर वैज्ञानिकों का काम शोधपत्र के लेखकों से अधिक महत्वपूर्ण था. जेनेटिक्स नामक जर्नल के फरवरी अंक में सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है. इसमें कहा गया है कि इस दल में हालाँ कि केवल पापुलेशन बायोलॉजी के शोधपत्रों पर अध्ययन किया है, पर वे विज्ञान के अन्य विषयों पर भी ऐसा ही अध्ययन करेंगे. इस दल का अनुमान है कि विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी यही स्थिति होगी.

इतना तो स्पष्ट है कि महिलाओं की विज्ञान में बहुत उपेक्षा की गयी है, पर अब इस चलन को बदलने की तैयारी है. यह महिलाओं के लिए तो अच्छा होगा पर इससे विज्ञान का स्तर सुधारने में भी मदद मिलेगी.