यह तो सभी जानते हैं कि शहरों की आबादी और आकार लगातार बढ़ता जा रहा है. और इसके साथ ही, संसाधनों के शोषण की समस्या भी बढ़ रही है. ग्रामीण क्षेत्रों के संसाधनों की लूट से शहरों का तथाकथित विकास ही संभव हो पा रहा है. पानी भी एक ऐसा ही संसाधन है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पहुंचाया जा रहा है. यह समस्या केवल हमारे देश की ही नहीं है, बल्कि दुनियाभर में ऐसा ही हो रहा है. हमारे देश में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में पानी कहीं और से आ रहा है.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के वैज्ञानिकों ने एनवायर्नमेंटल मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर डॉ डस्टिन गैरिक की अगुवाई में इस समस्या का बृहत् अध्ययन किया है और इसे एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया है. इनके अनुसार, यह विश्वव्यापी समस्या है और इसमें अमेरिका और एशिया के देशों में लगभग 69 शहरों की 38.3 करोड़ आबादी ग्रामीण क्षेत्रों से लाये गए 16 अरब घनमीटर पाने से अपनी जरूरतों को पूरा कर रही है. ग्रामीण क्षेत्रों के पानी से अपनी प्यास बुझाते शहरों की संख्या और आबादी लगातार बढ़ती जा रही है. पर, इस समस्या पर कोई भी विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है. वर्ष 1960 के दशक से अबतक शहरी आबादी चार गुना से अधिक बढ़ चुकी है और वर्ष 2050 तक के एक अनुमान के अनुसार इस आबादी में 2.5 गुना और बृद्धि होगी. इन 69 शहरों में से 21 शहरों में पानी की समस्या लगातार बनी रहती है. इसके उदाहरण चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु और अम्मान (जॉर्डन) हैं.

पानी के प्रबंधन के मामले में दुनिया की स्थिति एक जैसी ही है. इंग्लैंड को हमेशा से पानी की बहुलता वाला देश माना जाता था, पर अगले 25 वर्षों में वहां भी पानी की कमी होने लगेगी. अमेरिका के अनेक शहर और कसबे इस समस्या से पिछले कई वर्षीं से जूझ रहे हैं. हमारे देश में यह समस्या तो गंभीर है, पर मीडिया में या सरकारी स्तर पर इसकी चर्चा नहीं होती. ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों तक पानी पहुंचाने में सबसे बड़ा नुक्सान ग्रामीण क्षेत्रों को होता है और यहीं खेती भी होती है जिससे शहरों का पेट भरता है. इसके बाद भी ऐसी किसी भी परियोजना के डिजाईन से लेकर इसे चालू करने तक, किसी भी स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र की आबादी को शामिल किया ही नहीं जाता. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में असमानता और असंतोष बढ़ता जाता है. जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के असर से यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है.

पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र में खुलासा किया है कि दुनिभर के शहरों में अब जनसंख्या बढ़ने के हिसाब से पानी की खपत कम हो रही है. यानि शहरों में पानी के प्रबंधन पर जोर दिया जाने लगा है. इस अध्ययन से यह भी पता चला कि ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की बचत या फिर इसके प्रबंधन से सम्बंधित कोई योजना नहीं होती.

साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से शहरों में बाढ़ की समस्या बढ़ी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या कम होती जा रही है. इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिकों ने 160 देशों में स्थित 43000 जगहों पर वर्षा के आंकड़ों और नदियों के बहाव को मापने के 5300 केन्द्रों के आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर किया है. जाहिर है, यह अपने तरह का सबसे बड़ा अध्ययन है और इसे वास्तविक आंकड़ों के आधार पर किया गया है. अध्ययन के अनुसार, तापमान बृद्धि के कारण जमीन पहले से अधिक शुष्क होती जा रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए अधिक जमीन होती है जिससे बाढ़ का पानी जल्दी ही अवशोषित हो जाता है. शहरों में कंक्रीट पर पानी अधिक समय तक रुका रहता है और अधिक तबाही मचाता है.

दुनियाभर में पानी की किल्लत को लेकर प्रभाव देखने को मिल रहे हैं, पर इस मसले पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. तमाम अध्ययन यही बताते हैं कि तापमान बृद्धि के कारण यह समस्या और गंभीर होती जायेगी. फिर भी, जमीनी स्तर पर कहीं कुछ नहीं किया जा रहा है. वर्तमान में शहर तो गाँव के पानी से फलफूल रहे हैं, पर जब वहां भी पानी नहीं होगा तब क्या होगा?